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तहजीब और वतनपरस्ती की मिसाल बनी एजाज की कलम

अमित शर्मा, धामपुर : 'हम अपने हौंसलों से सरहदें महफूज रखते हैं, ना हम अपने पड़ोसी को कभी नुकसान देते

By Edited By: Updated: Sat, 13 Aug 2016 10:09 PM (IST)

अमित शर्मा, धामपुर : 'हम अपने हौंसलों से सरहदें महफूज रखते हैं, ना हम अपने पड़ोसी को कभी नुकसान देते हैं।

हमारी गैरतों को इस तरह ललकारने वाले, हम ¨हदुस्तान वाले हैं वतन पर जान देते हैं।'

शायरी के इसी अंदाज के दम पर शहर की गलियों से निकली एक आवाज आज पूरे मुल्क को तहजीब और वतन परस्ती का सबक सौंप रही है। देश के हर कोने में घूमकर अपनी शायरी की अमिट छाप छोड़ने वाले शायर ऐजाज धामपुरी कलम के जरिए ही देश भक्ति की अलख जगा रहे हैं। युवा पीढ़ी को मंच से देश प्रेम की आवाज लगाने वाले ऐजाज मुल्क की आबोहवा में शांति-सद्भाव और अ¨हसा का अहसास घोलने की हसरत सीने में पाले हैं।

नगर के मोहल्ला बंदुक्चियान निवासी 60 वर्षीय शायर ऐजाज धामपुरी के जहन में वतनपरस्ती का जज्बा कूट-कूटकर भरा है। अगस्त 1958 को यौमे आजादी की वर्षगांठ के दिन मरहूम शायर नजर धामपुरी के घर चमके इस सितारे की कलम आज शहर या जिले ही नहीं देश भर में मिसाल बनी है। शायरी के राष्ट्रीय मंचों पर वह देश के हर कोने में अपनी आवाज पहुंचा चुके हैं। उनका हर कलाम देश भक्ति की अलख जगाता है और युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनता है।

'सितारा बनके वो ही जगमगाना जानते हैं, जो सिर को देश की खातिर कटाना जानते हैं।

कभी गमों के सिवा उनको कुछ नहीं मिलता, जो घर में बैठकर आंसू बहाना जानते हैं।

वतन पे आंच जो आए कसम तिरंगे की, हम अपनी जान की बाजी लगाना जानते हैं।' जैसी उनकी रचनाएं आज युवा दिलों पर राज करती हैं। चेन्नई में संगीतकार एआर रहमान, दिल्ली में पदमश्री गोपाल दास नीरज, पदम श्री प्रोफेसर अख्तरुल वासे समेत बशीर बद्र, राहत इंदौरी, प्रोफेसर वसीम बरेलवी, मंजर भोपाली, डा.हरिओम पंवार, मुनव्वर राना जैसे देश के नामचीन शायरों के साथ उनकी कलम से उकेरे गए शब्द आम लोगों की आवाज बन चुके हैं। मौजूदा दौर में वह अपनी इसी कलम के जरिए समाज में देश भक्ति का जज्बा घोलने की हसरत रखते हैं। उनके हर कलाम से देश भक्ति की गूंज साफ सुनाई पड़ती है। युवाओं के बीच वतन परस्ती का जज्बा कायम करने को ही वह अपना सपना मानते हैं।

सांस्कृतिक विरासत को संभाले युवा

धामपुर : उम्र के 60 बसंत देख चुके ऐजाज मुशायरों की महफिल का बड़ा नाम है। मौजूदा समय युवाओं के इस ओर घटते रूझान को लेकर वह खासे ¨चतित हैं। उनके मुताबिक मुशायरे और कवि सम्मेलन हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक हैं। युवाओं को इस ओर आगे आते हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत को संभालने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। स्थानीय स्तर पर युवाओं को इस ओर जागरूक करने के लिए उन्होंने साहित्यिक संस्थाओं से भी आगे आकर प्रयास करने की अपील की।

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