हमें माफ करना बाबा राघवदास
By Edited By: Updated: Fri, 06 Jul 2012 06:53 PM (IST)
(देवरिया) : क्रांतिकारी संत बाबा राघवदास से देवरिया, खासकर बरहज की पहचान है। वे सामाजिक कुरीतियों के विरोधी और धर्म के पैरोकार थे। आदर्शवादी, राजनीतिज्ञ और स्त्री शिक्षा के पक्षधर बाबा बरहज के कण-कण में महसूस किए जाते हैं। बरहज को शहीदे आजम रामप्रसाद बिस्मिल के समाधि स्थल का गौरव दिलाने वाले राघवदास आज अपने ही क्षेत्र में उपेक्षित हैं। उनके नाम पर बने पार्क तथा अन्य स्थलों का पुरसाहाल नहीं है।
राष्ट्रीयता एवं आध्यात्मिकता के प्रतीक परमहंस आश्रम के द्वितीय पीठाधीश्वर बाबा राघवदास थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बरहज आश्रम क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना। बाबा क्रांतिकारियों को आश्रम में संरक्षण दिया करते थे। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का बाबा राघवदास से विशेष जुड़ाव था। राघवदास से उनका अगाध प्रेम ही था कि उन्होंने मरने के बाद अपनी समाधि बरहज में बनाने की इच्छा जताई थी। बिस्मिल को फांसी दिए जाने के बाद बाबा ने आश्रम में उनकी समाधि बनवा बरहज को गौरवान्वित किया। यह देश में बिस्मिल की एक मात्र समाधि है। बाबा राघवदास का मानना था कि अगर देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना है तो जनता को जागरूक करना होगा और यह तभी संभव है जब लोग शिक्षित हों। शिक्षाविद् के रूप में उन्होंने श्रीकृष्ण इंटर कालेज तथा सरोजनी बालिका विद्यालय की स्थापना की। आश्रम परिसर में स्थापित संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना का श्रेय भी बाबाजी को ही जाता है। इस महाविद्यालय में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों, यहां तक कि विदेशी छात्र भी आते थे। कुष्ठ रोगियों और दलितों के साथ भेदभाव से बाबा काफी दु:खी होते थे। गांधी जी प्रेरणा से उनके कुष्ठ सेवा मिशन को गोरखपुर में कुष्ठ सेवा आश्रम स्थापित कर आगे बढ़ाया। बिहार के मैरवा स्थित कुष्ठ सेवा आश्रम, देवरिया व पूर्वाचल में संचालित हो रहे अन्य कुष्ठ सेवा आश्रमों की स्थापना का श्रेय बाबा राघवदास को ही है। बाबाजी के योगदान को देखते हुए 1968 में बरहज के तत्कालीन नपाध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी ने नगर में राघवदास पार्क का निर्माण कराया। उसमें संगमरमर की प्रतिमा लगी, जिसका लोकार्पण 31 जनवरी 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया। यह नगर का एक मात्र पार्क है। सुंदरीकरण और नगर की पेयजल व्यवस्था ठीक करने के नाम पर पार्क पर नपा की नजर लग गई। वर्ष 2005 में नपा ने पार्क की बाउन्ड्री तोड़कर उसमें पानी की टंकी बनवा डाली। नपा की इस मनमानी पर राजनैतिक दल और आश्रम के लोग भी चुप्पी साधे रहे। रही-सही कसर 2008 में प्रशासन ने पार्क के बगल में मछली और मांस बाजार बनाकर पूरी कर दी। अब हालत यह है कि अहिंसा के पुजारी बाबा राघवदास की प्रतिमा के निकट प्रतिदिन हिंसा का खेल खेला जाता है। जानवरों के कटते समय खून के छींटे बाबाजी की प्रतिमा और पार्क की दीवारों पर पड़ते हैं। रखरखाव के अभाव में प्रतिमा में दरार आ चुकी है। प्रशासन और राजनीतिक दलों ने तो जैसे राघवदास को भुला ही दिया है। राष्ट्रीय पर्वो पर भी पार्क और प्रतिमा की सफाई नहीं होती।
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