अयोध्या: रामनगरी में रामदूत की अनेक प्रतिष्ठित पीठ हैं, इनमें वासुदेवघाट स्थित प्रसिद्ध पीठ हनुमानबा
By Edited By: Updated: Mon, 09 Nov 2015 11:08 PM (IST)
अयोध्या: रामनगरी में रामदूत की अनेक प्रतिष्ठित पीठ हैं, इनमें वासुदेवघाट स्थित प्रसिद्ध पीठ हनुमानबाग में विराजे हनुमान जी भी हैं। उत्तराभिमुख हनुमान जी को मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है और यहां के हनुमान जी का नाम है रसिक हनुमान। यानी मानवीय आकांक्षाओं एवं भावनाओं के विभिन्न रसों का प्रतिनिधित्व करने वाले आराध्य। यह नाम हनुमान जी की छवि से मेल भी खाती है। पूरी भव्यता से सजे संवरे बजरंगबली को निहारते ही करुणा की ऐसी डोर बंधती है कि जीवन की सारी ¨चताएं पीछे छूट जाती हैं और दर्शनार्थी हनुमान जी के व्यक्तित्व की तरह परम वीतराग को उपलब्ध होते हैं। इसके पीछे मंदिर के वर्तमान महंत जगदीशदास की देखरेख में हनुमान जी की इस पीठ में संचालित सेवा-संस्कार एवं उपासना-अनुष्ठान की अनुशासित परंपरा है ही यहां के हनुमान जी को करीब एक शताब्दी पूर्व स्थापित करने वाले स्वामी रामवल्लभाशरण जैसे दिग्गज संत की विरासत भी है। तदुपरांत इस परंपराको आगे बढ़ाने में महंत जयरामदास एवं महंत रामगोपालदास की भी महती भूमिका रही। यहां के आचार्य परंपरा की प्रखर साधना एवं हनुमान जी का प्रताप ही रहा कि हनुमानबाग लंबे समय से रामनगरी की प्रमुख पीठों में शुमार है। भव्य वास्तु की नजीर आश्रम का नयनाभिराम परिसर एवं गो सेवा-संत सेवा का प्रकल्प, अतिथि गृह एवं धर्मशाला से संयुक्त हनुमानबाग धार्मिक जगत की चु¨नदा पीठों में शामिल होने की हैसियत वाला है। महंत जगदीशदास के अनुसार यहां जो भी शांति-समृद्धि है, उसके मूल में हनुमान जी की ही कृपा है।
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यहां हनुमान जी गिरे थे पहाड़ लेकर फैजाबाद: सुप्रसिद्ध बहू बेगम के मकबरे के कुछ ही फासले पर स्थित नाका हनुमानगढ़ी पौराणिक परंपरा का वाहक है। मान्यता है कि लंका में युद्ध के दौरान मूर्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी से संयुक्त द्रोणगिरि पर्वत लेकर जब हनुमान जी हिमालय से लंका जा रहे थे, तभी कुछ किलोमीटर के फासले पर ही तपस्यारत भरत ने राक्षस समझ उन पर बाण का संधान कर दिया। बाण के प्रहार से जख्मी हनुमान जी जिस स्थान पर गिरे, वह यही स्थान था। युगों की विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाला यह स्थान काल के थपेड़ों से उपेक्षित हो चला था। वह तो 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस स्थल पर आए निर्मोही अखाड़ा से जुड़े राजा बाबा थे, जिन्होंने इस स्थल को उसकी गरिमा के अनुरूप जाग्रत किया। तदुपरांत इस सथल की महिमा पुन: आरोह की ओर उन्मुख हुई। करीब छह पीढ़ी के बाद वर्तमान पीठाधिपति महंत भास्करदास के संरक्षण में यह स्थान अयोध्या-फैजाबाद की प्रमुख पीठों में शुमार है। आश्रम की ओर से संचालित सेवा-संस्कार के अनेक प्रकल्पों सहित आश्रम परिसर को खांटू श्याम दरबार, मां दुर्गा, साईं बाबा, शनि देव के मंदिर परिपूर्णता प्रदान करते हैं, तो प्राय: विधि-विधान से संचालित होने वाले अनुष्ठान और श्रद्धालुओं का हुजूम शानदार विरासत को जीवंत करती है। मंदिर से जुड़ी पौराणिकता की तस्दीक पास ही आबाद पहाड़गंज मोहल्ले से होती है। माना जाता है कि मोहल्ले का पहाड़गंज नाम उसी द्रोणागिरि पहाड़ की स्मृति में है, जिसे लेकर हनुमान जी यहां गिरे थे। पीठ के प्रशासक पुजारी रामदास के अनुसार यहां के हनुमान जी को संकट मोचक माना जाता है।
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