राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान को लेकर असमंजस
-अभियान के लिए चालू वर्ष के बजट में नहीं है धन आवंटित
-शिक्षण संस्थानों की फंडिंग में होगी केंद्र व राज्य की हिस्सेदारी
जागरण ब्यूरो, लखनऊ : उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान का शिगूफा छेड़ने से राज्य सरकार असमंजस में है। उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के मकसद से घोषित किये इस अभियान के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों की फंडिंग में केंद्र व राज्य सरकारों की हिस्सेदारी एक निश्चित अनुपात में होगी। राज्य सरकार की बड़ी दुविधा यह है कि यदि केंद्र ने चालू वित्तीय वर्ष में योजना को शुरू करने का फैसला किया तो राज्य को अपना अंशदान देने में दिक्कत आयेगी क्योंकि राज्य के बजट में इसके लिए धनराशि नहीं आवंटित है।
केंद्र सरकार के इस अभियान का मकसद उच्च शिक्षा की मौजूदा प्रवेश दर को 18.8 से बढ़ाकर 2020 तक 30 प्रतिशत तक पहुंचाना है। बारहवीं और तेरहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान प्रस्तावित इस अभियान का मकसद उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और उत्कृष्टता हासिल करना भी है। देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की फंडिंग की जाएगी। योजना पर होने वाले खर्च में केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी 65:35 के अनुपात में होगी। उप्र समेत अन्य राज्यों को अभियान के बारे में जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फरवरी में भोपाल में बैठक की थी। केंद्र ने राज्यों से अभियान के बारे में सुझाव मांगे थे। जिस समय यह सब चल रहा था उस वक्त तक चालू वित्तीय वर्ष के लिए राज्य सरकार के बजट को अंतिम रूप दिया जा चुका था।
सरकार की दूसरी दुविधा है कि अभियान के तहत उच्च शिक्षण संस्थाओं को फंडिंग राज्यों में गठित उच्च शिक्षा परिषदों के जरिये प्रस्तावित है। उप्र में राज्य उच्च शिक्षा परिषद साढ़े चार साल से निष्क्रिय है। चूंकि उप्र समेत देश के सिर्फ पांच राज्यों में ही उच्च शिक्षा परिषद गठित है। बैठक में कई राज्यों ने इस पर आपत्ति जतायी थी। ऐसे में केंद्र सरकार फंडिंग के लिए राज्य उच्च शिक्षा परिषद को ही माध्यम बनाती है या इसमें बदलाव करती है, यह भी स्पष्ट नहीं है। राज्यों से सुझाव मिलने के बाद केंद्र ने पूरे मसले पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है जिससे राज्य सरकार अभियान को लेकर असमंजस में है।
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