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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अब यूपी की कांग्रेस सीएम कैंडीडेट

उत्तर प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने आज नई दिल्ली में शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 15 Jul 2016 09:49 AM (IST)

लखनऊ (वेब डेस्क)। उत्तर प्रदेश के 14 प्रतिशत ब्राह्मण वोट पर नजर रखने वाली कांग्रेस ने शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कैंडीडेट घोषित किया है। उत्तर प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने आज नई दिल्ली में शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किया।

कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर अनुभवी शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बाद मैदान में उतर रही है। यह तय है कि कांग्रेस आलाकमान अब उत्तर प्रदेश की बहू शीला दीक्षित के लंबे अनुभव का उत्तर प्रदेश में लाभ लेने को तैयार है।

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दिल्ली की लंबे समय तक मुख्यमंत्री के पद पर रहीं शीला दीक्षित को विकास की राह दिखाने वाली महिला का भी तमगा हासिल है। उत्तर प्रदेश मेें शीला दीक्षित का उन्नाव के बाद कन्नौज से बड़ा कनेक्शन है। वह कन्नौज से सांसद रहीं थी और उत्तर प्रदेश की राजनीति छोडऩे के बाद वह प्रदेश सक्रिय राजनीति से दूर थीं। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में राज बब्बर को अध्यक्ष बनाने के बाद अब शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने का मन बना लिया था। आज शाम को गुलाम नबी आजाद ने उनको उम्मीदवार घोषित कर दिया।

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित के बहाने 14 फीसदी ब्राह्मण वोट को समेटना चाहती है। इससे पहले यहां पर ब्राह्मण वोट बहुजन समाज पार्टी के साथ था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण वोट बिखर गया था। इस बार कांग्रेस को अपने पुराने वोट बैंक की याद आई है। कांग्रेस से अन्य पार्टियों में ब्राह्मणों की उपेक्षा पर इस संगठित वोट बैंक दांव लगाया है। इसी कारण कांग्रेस ने शीला दीक्षित जैसे तथा सवर्ण चेहरा के रूप में यह दांव चला है। शीला अनुभवी के साथ कांग्रेस का सवर्ण चेहरा होंगे। शीला के पास दिल्ली के बेहतर विकास का तमगा भी है।
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कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी कांग्रेस हाई कमांड को सुझाव दिया था कि दलित मायावती को नहीं छोड़ेंगे। उसे परम्परागत वोट बैंक ब्राह्मण और मुस्लिम पर फोकस करना चाहिए। इस सुझाव को मानते हुए गुलाम नबी आजाद को प्रदेश कांग्रेस का प्रभारी नियुक्त किया गया। जिसके बाद उम्मीद थी कि कोई ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष बन सकता है. लेकिन कांग्रेस ने जातीय समीकरण को ध्यान रखते हुए पिछड़ा वर्ग से राज बब्बर को अध्यक्ष बनाया। इससे पार्टी ने ओबीसी वोट को अपने पाले में लाने का प्लान बनाया है। अब उम्मीद के मुताबिक कांग्रेस ने भीड़ से अलग एक ब्राह्मण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को सीएम कैंडिडेट बनाकर प्रदेश के 14 फीसदी वोट बैंक को यह संदेश दे दिया है कि वह ही उनकी सच्ची नुमाईंदगी कर रही है। इसके लिए शीला दीक्षित पर कांग्रेस ने दांव लगा दिया है।

देखें तस्वीरें-दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बनी यूपी की सीएम कैंडीडेट
शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश की बहू

शीला दीक्षित का विवाह उत्तर प्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित उमाशंकर दीक्षित के बेटे स्वर्गीय विनोद दीक्षित से हुआ था। विनोद दीक्षित आइएएस अधिकारी थे। शीला दीक्षित पंजाबी हैं। उनका जन्म पंजाब के कपूरथला में हुआ है और उनका विवाह उत्तर प्रदेश के बड़े ब्राह्मण नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे से हुआ था। इस लिहाज से शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश की बहू हैं। शीला दीक्षित कन्नौज से कांग्रेस की सांसद भी रह चुकी हैं।

देखें वीडियोः कॉग्रेस ने शीला दीक्षित को यूपी चुनाव के लिए CM उम्मीदवार घोषित किया

शीला दीक्षित के सफर पर एक नजर

उम्र: 78 साल

कपूरथला में जन्म, उन्नाव में शादी

यूपी कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित की बहू

1984 में कन्नौज से सांसद बनीं

राजीव गांधी सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री

प्रधानमंत्री कार्यालय की राज्य मंत्री भी रहीं

लगातार तीन बार बनीं दिल्ली की मुख्यमंत्री

1998 से 2013 के बीच दिल्ली की मुख्यमंत्री

2010 के कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी में विवाद

टैंकर और मीटर घोटाले के आरोप में उछला नाम

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 26 वर्ष से सत्ता का बाहर है। सूबे में 1989 में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री एनडी तिवारी थे। अब पार्टी को लगता है कि शीला दीक्षित की बेदाग छवि, समाज में स्वीकार्यता और ब्राह्मण चेहरा कांग्रेस की खोई ताकत में जान फूंक सकता है और पार्टी को सत्ता की दहलीज तक ला सकता है। 2012 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस 28 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस के भीतर काफी लंबे समय से किसी बड़े ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश में मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के रूप में पेश करने की चर्चा चल रही थी और आखिरकार शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लग गई।

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कांग्रेस के भीतर लोगों का मानना रहा है अगर कांग्रेस यूपी में ब्राह्मण को एकजुट करने में कामयाब हो जाती है तो दूसरे लोग भी साथ आ जाएंगे। कांग्रेस नेताओं का ये भी मानना रहा है कि शीला ने बतौर सीएम दिल्ली में बहुत ही अच्छा काम किया है और उनकी इस छवि के सहारे यूपी को जीता जा सकता है। आंकड़ों की कसौटी पर शीला के नाम के चयन का विश्लेषण किया जाए तो उत्तर प्रदेश में 12-14 फीसदी ब्राहमण मतदाता हैं। ब्राहमण लंबे समय से कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ब्राह्मण का सिर्फ दो फीसदी वोट मिला था। फिलहाल उत्तर प्रदेश में अब ज्यादातर ब्राह्मण बीजेपी और बीएसपी के साथ हैं। ऐसे में जहां विपक्षी पार्टियां ओबीसी और दलित चेहरे को प्रोजेक्ट करने में व्यस्त हैं। इसको देखते हुए कांग्रेस प्रदेश के 14 प्रतिशत ब्राह्मण वोट को अपने खेमे में करना चाहती है। इसी को साधने के लिए कांग्रेस शीला दीक्षित पर दांव लगाया है।

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