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ज्ञान पर व्यवस्था का अंधेरा

By Edited By: Updated: Fri, 22 Jun 2012 01:47 AM (IST)

सोनाक्षी शर्मा, मेरठ

अपने बलबूते मेरठ की किताबें सात समंदर पार पहुंच चुकी हैं। विदेशों को किताबें निर्यात कर तीन सौ से अधिक प्रकाशक करीब सात सौ करोड़ का कारोबार कर रहे हैं। किड्स पुस्तकों की विदेश में आपूर्ति के मामले में प्रदेश में मेरठ का कोई सानी नहीं है। इसके बावजूद मेरठ महानगर का एक मात्र राजकीय पुस्तकालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।

हालत यह है कि पाठक पुस्तकालय तलाश रहे हैं, फिर भी व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है।

मेरठ के कस्बा सरधना की बेगम समरू ने ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद पहली प्रिटिंग मशीन लगाई। बाद में इसे क्रांतिकारी साहित्य छपने के डर से अंग्रेजी सरकार ने बंद करा दिया लेकिन प्रकाशन उद्योग के विकास का रास्ता अपने बलबूते आगे बढ़ता गया। अब तस्वीर यह है कि चिल्ड्न बुक में हर 15 वें दिन यहां की कोई न कोई बुक बाजार में आ रही है। देश के विभिन्न राज्यों के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ ईस्ट एशिया, सिंगापुर व दुबई आदि देशों में मेरठ में छपी पुस्तकों की डिमांड है। सबके बावजूद प्रदेश सरकार का ध्यान मेरठ के राजकीय पुस्तकालय पर नहीं है।

देश की आजादी के साथ ही राजकीय इंटर कालेज के बराबर में राजकीय पुस्तकालय की स्थापना हुई। इस पुस्तकालय का 60 के दशक में हाल यह रहा कि राजनीति में होते हुए भी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह इस पुस्तकालय में आकर अध्ययन किया करते थे। उनके द्वारा लिखित पुस्तकों में भी इसका उल्लेख है। शासन की नजर में यह पुस्तकालय ए ग्रेड का है। 37 हजार पुस्तकें भी यहां हैं। 5700 नियमित सदस्य भी है। 500 से अधिक दुर्लभ पुस्तकें भी पुस्तकालय में है। अधिकांश पुस्तक ऐसी है, जो आला अफसर अपने साथ ले गए पर उन्हें वापस नहीं किया। पुस्तकालय के कम्प्यूटरीकरण को तीन कम्प्यूटर जरूर आए हैं पर इंटरनेट का कनेक्शन दो साल से नहीं मिला। इस कारण यह कम्प्यूटर डिब्बे से बाहर नहीं निकल पाए। स्थान सीमित होने के कारण पुस्तक रखने को जगह कम पड़ गई है।

पुस्तकालय अध्यक्ष आरसी निमोकर बताते है कि बच्चों की पुस्तक होने से यहां बच्चे बड़ी संख्या में आते है। इतना जरूर है कि पुस्तकालय के लिए शासन स्तर से बजट नही मिल रहा है।

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