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'बापू' ने कालाकांकर में जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली

By Edited By: Published: Mon, 01 Oct 2012 07:15 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2012 07:16 PM (IST)

गांधी जयंती पर विशेष

बापू ने बेल्हा में भी जगाई थी असहयोग आंदोलन की अलख

प्रतापगढ़ : अहिंसा के रास्ते देश को आजाद कराने वाले बापू का नाम आते ही बेल्हावासियों में उनकी याद ताजा हो जाती है। वैसे तो महात्मा गांधी दो बार यहां आए और लोगों में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा कर गए। बेल्हा में पहले से ही किसान आंदोलन चल रहा था। आजादी की लड़ाई के दौरान वर्ष 1917 में पट्टी में बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में चलाया जा रहा था। गांधी जी को लगा कि किसानों के सहयोग से अंग्रेजों को देश से जल्दी भगाया जा सकता है। 29 नवंबर वर्ष 1920 में प्रतापगढ़ शहर आए उनके साथ पं. मोती लाल नेहरू मौलाना अबुल कलाम आजाद सौकत अली खान भी साथ थे। गांधी जी यहां अपने मित्र इंद्र नारायण चड्ढा के घर पर कुछ पल विश्राम करने के बाद स्टेशन क्लब स्थित मैदान में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उस समय यहां के कलेक्टर बीएन मेहता थे। उनसे मिलने गांधी जी पैदल ही उनके आवास तक गए। इसके बाद 14 नवंबर 1929 को दूसरी बार गांधी जी कालाकांकर गए वहां उन्होंने कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के साथ गांधी चबूतरे पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वहां गांधी चबूतरा अभी भी मौजूद है। वरिष्ठ साहित्यकार इंतियाजुद्दीन खान एवं डा. हरदेव प्रसाद शास्त्री अभी भी बापू की यादें समेटे हुए हैं। जागरण से बातचीत में श्री खान व शास्त्री ने बताया कि गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की धार पूरे देश में घूम-घूमकर दी थी।

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फोटो : 01आरएनआई01-08

बभनमई में पढ़ाया था आत्मनिर्भरता का पाठ

रानीगंज, प्रतापगढ़ : गांधी जी का जिक्र आने पर रानीगंज तहसील के बभनमई गांव की चर्चा जरूर होती है। इस गांव में बापू ने चरखा चलाया था। गांधी जयंती पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन बभनमई में कुछ ज्यादा उल्लास रहता है।

यहां 1938 में पहली बार गांधी जी आये और डाक बंगले में रुके। गांधी आश्रम में चरखे को अपने हाथों से कातकर लोगों को संदेश दिया किन्तु आज शासन प्रशासन की उदासीनता से गांधी चबूतरा व डाक बंगले का अस्तित्व मिटता जा रहा है। गांधी जी की याद में महज मिट्टी का चबूतरा व जर्जर कुआं ही बचा है।

प्रतापगढ़-बादशाहपुर राजमार्ग के किनारे बभनमई गांव में गांधी जी के नाम से बना डाक बंगला जहां पूरी तरह से समाप्त होता जा रहा है। वहीं कुआं भी जर्जर हो चुका है। चबूतरे के नाम पर महज मिट्टी ही बची है। 1936 में आचार्य कृपलानी के साले धीरेन्द्र भाई की देखरेख में बभनमई गांव में गांधी आश्रम डाकबंगले व चरखे केन्द्र का उद्घाटन हुआ। इसका संचालन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. श्यामनारायण उपाध्याय ने किया था। यहां पर डाकबंगले में देश के कोने कोने से लोग आकर रुककर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे। 1938 के करीब महात्मा गांधी बभनमई गांव स्थित डाक बंगला पहुंचे। यहां उन्होंने चरखा चलाया और लोगों को संदेश दिया कि विदेश कपड़े छोड़ स्वदेशी कपड़े पहने। यहां तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचित्रा कृपलानी भी आयीं थीं। यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पं. श्यामनारायण उपाध्याय, देवी प्रसाद तिवारी, झूरी शर्मा, गिरिजा रमण शुक्ल सहित लोगों ने चरखे की ट्रेनिंग लेकर लोगों को सिखाया था। गांव के बुजुर्ग ओम निरंकार देव उपाध्याय का कहना है कि 1936 में बभनमई गंाव में गांधी डाक बंगले व चरखा ट्रेनिंग का उद्घाटन धीरेन्द्र भाई ने किया था। बुजुर्ग शंभूनाथ उपाध्याय, कृष्णदेव उपाध्याय, संजय कुमार ओझा, पशुपति उपाध्याय, अजय ओझा सहित लोगों का कहना है कि जहां पर कभी आजादी के पहले व बाद में चहल पहल थी। आज वहां वीरानी है।

लालगंज प्रतिनिधि के अनुसार गांधी जी के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए जसमेढ़ा रामपुरबावली निवासी परमसुख घर से बिना बताए 18 वर्ष की आयु में जा पहुंचे। देश के प्रति समर्पण देख गांधी जी ने इन्हें अपनी खास टोली में शामिल किया। फिर क्या देश की आजादी का रंग व जुनून ऐसा चढ़ा कि उन्होंने पीछे लौटना मुनासिब नहीं समझा। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1972 में इन्हें मरणोपरान्त ताम्र पत्र इनकी पत्‍‌नी पया कुमारी को दिया और इसी क्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने भी ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। इनका स्वर्गवास 20 सितम्बर 1959 में महज 45 वर्ष की अवस्था में ही हो गया।

फोटो : 01आरएनआई09-11

स्मृतियां फांक रही है धूल

क्रासर - मिटती जा रही बाबू की निशानी

फोटो परिचय - 09टूटा पड़ा अशोक चक्र10 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का शिलापट व 11 क्षतिग्रस्त स्तम्भ

जामताली, प्रतापगढ़ : गांधी जी ने देश की आजादी के लिए तमाम मुश्किलों का सामना किया और अंत में देश को आजादी दिला कर ही राहत की सांस ली। जामताली में बना गांधी चबूतरा व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का टूटा स्थल, जमीन पर पड़े साथियों के पवित्र नाम, अशोक चक्र धूल फांक रहे हैं। जिससे शासन प्रशासन की कलई खुलती नजर आ रही है। प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान न दिये जाने से क्षेत्रीय जनता में जहां आक्रोश है। वहीं देश को आजाद कराने वाले गांधी जी के सपनें साकार होते नजर नही आ रहे हैं।

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