60 किमी में एक भी रेलवे क्रा¨सग नहीं
ओबरा (सोनभद्र) : सबसे व्यस्ततम मालवाहक रेल मार्गों में एक चोपन-¨सगरौली रेलमार्ग के रेणुकापार के आदिव
ओबरा (सोनभद्र) : सबसे व्यस्ततम मालवाहक रेल मार्गों में एक चोपन-¨सगरौली रेलमार्ग के रेणुकापार के आदिवासी अंचल से गुजरने को इस क्षेत्र के लिए विकास का प्रतीक कहा जा सकता है,लेकिन यह प्रतीक यह साबित करता है कि रेणुकापार को कालापानी क्यों कहा जाता है। जनपद में मौजूद देश की सबसे बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए लाइफ लाइन कहे जाने वाले इस रेलमार्ग की वजह से पूरे मानसून सत्र के दौरान रेणुकापार का बहुत बड़ा हिस्सा देश दुनिया से कट जाता है। आधुनिक विकास का प्रतीक यह रेलमार्ग इस आदिवासी अंचलों में ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचता है जिसे पार करना इस आधुनिक युग में भी खतरनाक हो जाता है।
रेलवे को भारी राजस्व देने वाले इस रेलमार्ग के दोनों और रहने वाले आदिवासियों के लिए रेलवे की नीति कई सवाल खड़ा कर रही है। रेणुकापार के 60 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र से गुजरने वाले इस मार्ग पर रेलवे ने एक भी क्रा¨सग नहीं बनाया है। जिसके कारण इतनी दूरी तक चारपहिया सहित भारी वाहनों के गुजरने की कोई व्यवस्था नहीं है। यही नहीं दोपहिया वाहनों को भी रेलमार्ग को पार करने के लिए जान जोखिम में डालना पड़ता है। इसके बावजूद आजतक रेलवे ने इतने बड़े मार्ग पर एक भी क्रा¨सग या ओवरब्रिज बनाने की नहीं सोची। हालात यह है कि कई बड़े नालों पर बने ओवरब्रिज के नीचे से ही सूखे मौसम के दौरान वाहन जा पाते हैं लेकिन मानसून के दौरान ये वैकल्पिक मार्ग खतरनाक हो जाते हैं। गत कुछ वर्षों के दौरान दो बार रेल-रोको आन्दोलन के साथ तत्कालीन केंद्रीय श्रम मंत्री के आश्वासन के बावजूद अभी तक एक भी जगह पर रेलवे क्रा¨सग नहीं बनाया गया। ऐसे में बारिश के दौरान फफराकुंड, करमसार, कररी, जुर्रा, खाडर, खैराही, चोरपनिया, धनबहवा, अमरस्त्रोता, बकिया, भोरार, पल्सो एवं कड़िया पश्चिम सहित दर्जनों गांव तक बड़े वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। रेलवे की निरंकुशता का आलम यह है कि रेलमार्ग को क्रास करने वाले मार्ग पर प्रतिरोधक खम्भे लगा दिए गए हैं। रेलमार्ग को पार करते हुए सैकड़ों बार दोपहिया चालक घायल हो चुके हैं। भारी वाहनों के लिए पार होने की कोई व्यवस्था न हो पाने का सीधा असर विकास कार्यक्रमों पर पड़ता है। सबसे बुरा असर एंबुलेंस के न जा पाने से पड़ता है। करमसार के रामविलास दुबे के अनुसार मानसून के दौरान रेणुकापार के आदिवासियों का भगवान ही मालिक है।
दर्जनों स्थान हैं संवेदनशील
ओबरा(सोनभद्र): चोपन-¨सगरौली रेलवे मार्ग पर दर्जनों ऐसी जगहें हैं जहां से पटरियों को पार करना जान- जोखिम में डालने जैसा है। चूंकि रेणुका पार का पूरा क्षेत्र पहाड़ी बाहुल्य क्षेत्र है इसलिए ज्यादातर जगहों पर पहाड़ियों को काटकर रेलवे लाइन बनायी गयी है। इस मार्ग पर पर तीव्र घुमाव भारी संख्या में है। ओबरा डैम रेलवे स्टेशन तथा फफराकुंड के बीच अरंगी और कडिया, फफराकुंड तथा करैला रोड स्टेशन के बीच खैराही, मिर्चाधुरी, टेढ़ीतेन, बैरपुर सहित दर्जन भर ऐसी जगहें हैं जहां से सदियों से आदिवासी आते रहते हैं,लेकिन इन जगहों पर 30 मीटर के करीब जब ट्रेन आ जाती है तब जाकर ट्रेन दिखाई पड़ती है, जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनती है।