रिवर्स फ्लिक के बादशाह थे हाकी के जादूगर मोहम्मद शाहिद
शाहिद ने हॉकी की एबीसीडी कमिश्नरी मैदान से सीखी। स्पोर्ट्स हॉस्टल लखनऊ में उनके हॉकी कौशल ने परवान पकड़ा, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
वाराणसी (जेएनएन)। खेल के मैदान पर मोहम्मद शाहिद जितने चपल दिखाई देते थे, वहीं मैच से पहले गंभीरता ओढे रहते थे। उस्ताद मैच से आधे घंटे पहले से दिमाग में मैच की रूपरेखा बनाते थे। यह कहना है पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नागेंद्र सिंह का। उन्होंने बताया कि वह सबसे पहले किट पहन कर तैयार होते थे। उनके लिए हॉकी से बड़ा कोई नहीं था। 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेले नागेंद्र का कहना है कि डॉज देने और रिवर्स फ्लिक लगाने में उनको महारत हासिल थी। कई बार तो विपक्षी खिलाड़ी डॉज खाकर मैदान पर गिर जाते थे। शाहिद का शव दिल्ली से इंडिगो एयरलाइन्स के विमान से रात्रि 7:45 बजे लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर पंहुचा। वहां शव को लेने के लिए डीरेका खेलकूद संघ के चीफ सेक्रेटरी एसके कटियार, माधव बटवाल, रविन्द्र मिश्रा, सीएम यादव, राकेश मल्होत्रा सहित कई खिलाड़ी और डीरेका के कर्मचारी हवाईअड्डे पर आए। पहले से ही फूलमाला से सजे वाहन में ताबूत में बंद शव को रखा गया इसके बाद शव को लेकर परिजन 8:10 पर शहर के लिए निकल गये।
नहीं रहा भारतीय हॉकी का ये दिग्गज सितारा, देखें तस्वीरें-राजेंद्र सहगल, पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ीरेलवे की मजबूत टीम बनाने में उनका बड़ा योगदान : नागेंद्र सिंह ने बताया कि वर्ष 1984 में नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में उत्तर प्रदेश और रेलवे के मध्य राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में फाइनल खेला जा रहा था। उत्तर प्रदेश ने रेलवे को पराजित कर दिया। सबसे बड़ी बात रही कि फाइनल सुबह 10 बजे से खेला जा रहा था। रेलवे की ओर से खेल रहे शाहिद ने इसके बाद कई उभरते हुए खिलाडिय़ों को रेलवे की ओर से जोड़ा और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में रेलवे का कोई मुकाबला करने वाला नही था। मैं और राजेंद्र सहगल इस मैच में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था। प्रतियोगिता के बाद रेलवे से जुड़ गए।पूर्वोत्तर रेलवे से शुरू की नौकरी : पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल में 1980 में हित निरीक्षक के पद से मुहम्मद शाहिद ने अपनी नौकरी की शुरुआत की। पूर्वोत्तर रेलवे मेें 14 वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे 1994 में डीरेका में क्रीड़ाधिकारी पद पर चले गए। अंतिम समय वे वरिष्ठ क्रीड़ाधिकारी पद पर कार्यरत थे।गीत और गजल के थे शौकीन : फुरसत के क्षणों में मुहम्मद शाहिद मुहम्मद रफी के गाने को सुनते और गुनगुनाते थे। साथ गुलाम अली की शायरी के भी दीवाने थे। वह अपने खास मित्रों के साथ जुड़ी महफिल में खुद ही रफी के गाने गाते थे और गुलाम अली की गजल सुनाते थे। उनके में दो से तीन घंटे तक गाने का दमखम था। पूर्व रणजी क्रिकेटर अरविंद श्रीवास्तव ने बताया कि शाहिद भाई अपने से मिलने वालो को बिना खिलाये नहीं भेजते थे। अक्सर वह दोस्तों के साथ दावत का आयोजन करते थे।पिता का था होटल : शाहिद के पिता सलाउउल्लाह अर्दली बाजार क्षेत्र में छोटा-मोटा होटल चलाते थे। 12 सदस्यीय परिवार में सात भाई और तीन बहनें थी। भाईयों में शाहिद सबसे छोटे थे। व्यापार और अन्य कारणों से भाई अन्य स्थानों पर चले गए। एक भाई और एक बहन का इंतकाल हो चुका है।एक बेटी और एक बेटा : मुहम्मद शाहिद का निकाह वर्ष 1990 में परवीन सुल्तान से हुआ था। शाहिद एक पुत्री और एक पुत्र के पिता थे। बड़ी बेटी हीना का विवाह हो चुका है और वो नोएडा में रहती है। बेटा सैफ श्री हरिशचंद्र कालेज में बी. काम में अध्ययनरत है।कमिश्नरी मैदान से शुरू हुई थी कहानी : हॉकी की दुनिया में दबदबा रखने वाले शाहिद ने हॉकी की एबीसीडी कमिश्नरी मैदान से सीखी। जेपी मेहता कालेज के छात्र रहे शाहिद की शुरू से हॉकी में बहुत रूचि दी। स्पोट्र्स हॉस्टल लखनऊ में उनके हॉकी कौशल ने परवान पकड़ा, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।दोस्तो के दोस्त थे : डीरेका में कार्यरत वरिष्ठ क्रिकेटर मुकुल घोष और राकेश मल्होत्रा का कहना है कि जो कोई भी उनके पास काम की समस्या लेकर आता था, वह पूरे मन से उसकी समस्या को हल करते थे। खिलाड़ी अधिकतर पर उनके पास कई तरह की समस्या लेकर आते थे लेकिन वह कभी ऊंची आवाज में आदेश नहीं देते थे। घर पर तो वह अपने मित्रों के लिए दूसरे शाहिद भाई होते थे। सच कहे तो उनकी जगह कोई नहीं ले सकेगा। वह दोस्तों के दोस्त थे।