मां नंदा भगवती सिद्धपीठ आइए, पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं
चमोली स्थित मां भगवती सिद्धपीठ के दर्शन करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां भगवती की पूजा का नवरात्रों में अपना अलग ही महत्व है।
चमोली, [जेएनएन]: मां नंदा भगवती सिद्धपीठ कुरुड़ चमोली जिले के विकासनगर घाट में स्थित है। यहां मां नंदा देवी अपने चतुर्भुज शिलामूर्ति के रूप में विराजमान है। कुरुड़ धाम में मां नंदा देवी की डोली दो रूपों में निवास करती है। मां नंदा कुरुड़-बधाण की डोली व मां नंदा कुरुड़-दशोली की डोली। कुरुड़-बधाण नंदा की जात हर साल बधाण क्षेत्र में आती है एवं वेदनी कुंड में पूजा कर वापस अपने ननिहाल देवराड़ा जाती है। नंदा देवी की वार्षिक जात में हजारों भक्त शामिल होते हैं। देवराड़ा में नंदा की डोली छह माह निवास करने के बाद फिर कुरुड़ में विराजती है। कुरुड़-दशोली की जात सप्तकुंड बालपाटा में समाप्त होती है।
आपको बता दें कि दक्ष पुत्री सती का विवाह कैलाशपति शिव से होने का प्रमाण पौराणिक ग्रंथों से अवगत होता है। दूसरे जन्म में सती हिमालय पुत्री होकर पार्वती नाम से विख्यात हुई और तपस्यारत रहकर त्रिलोकपति शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया। मां पार्वती को ही गौरा, नंदा नामों से जाना गया। कुरुड़ में मां को नंदा देवी के रूप में पूजा जाता है। मां नंदा देवी मंदिर की स्थापना को लेकर माना जाता है कि जब कन्नौज के राजा यशधवल हिमालय की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने यहां पर अपनी ईष्ट देवी नंदा की स्थापना की थी।
महात्म्य
उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है। सिद्धपीठ कुरुड़ में नवरात्रों पर सुबह-सायं मां नंदा देवी की पूजा अर्चना होती है। श्रद्धालुओं के लिए दिनभर मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। यह मंदिर सालभर पूजा अर्चना के लिए खुला रहता है।
इस तरह पहुंचे मां नंदा भगवती सिद्धपीठ
ऋषिकेश से सिद्धपीठ कुरुड़ पहुंचने के लिए 190 किमी नंदप्रयाग तक हाईवे से पहुंचने के बाद यहां से नंदप्रयाग घाट मोटर मार्ग पर नंदप्रयाग से 25 किमी दूरी पर कुरुड़ में नंदा देवी का सिद्धपीठ मौजूद है। नंदप्रयाग से कुरुड़ मंदिर तक टैक्सी, बस के अलावा छोटे बड़े वाहनों की सुविधा उपलब्ध है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। मंदिर तक सड़क सुविधा न होने के कारण इस सिद्धपीठ में पैदल आवाजाही होती है।
नंदा देवी कुरुड़ मंदिर के पुजारी किशोर चंद्र गौड़ बताते हैं कि नंदा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रों में मां की पूजा फलदायी मानी जाती है। इस दौरान नौ दिनों तक श्रद्धालु लगातार यहां पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं।
वहीं मंदिर के थाकेदार हकहकूकधरी वीरेंद्र सिंह रावत बताते हैं कि मां नंदा देवी यहां की आराध्य देवी है। मां नंदा के आशीर्वाद से ही यहां के लोग अपने कार्य प्रारंभ करते हैं।
प्रतिवर्ष खेतों में होने वाली फसल को अपने उपयोग में लाने से पूर्व ग्रामीण मां नंदा के लिए अलग से रखते हैं। इसे नाली का नाम देकर पुजारियों के माध्यम से मां नंदा के प्रसाद के लिए समर्पित किया जाता है। मां नंदा को यहां कुलदेवी के साथ - साथ ध्याणी के रूप में माना जाता है। प्रतिवर्ष लोकजात के माध्यम से नंदा की डोली गांव-गांव भ्रमण कर अपने भक्तों को आर्शीवाद देती हैं।
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