बिन पानी के सूना होता जा रहा उत्तराखंड का यह गांव
उत्तराखंड में डेढ़ सौ परिवारों की 700 से अधिक आबादी वाले इस गांव में अब सिर्फ 45 परिवार ही बचे हैं। लेकिन, इनके लिए भी सुकून नहीं है। कारण पानी न होना।
गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: चीन सीमा से लगे चमोली जिले के नारायणबगड़ विकासखंड का मनोड़ा गांव। यहां नेताजी हमेशा पानी उपलब्ध कराने का सपना दिखाकर वोट लेते हैं, मगर जीतने के बाद फिर इधर झांकते भी नहीं। नतीजा, कभी डेढ़ सौ परिवारों की 700 से अधिक आबादी वाले इस गांव में अब सिर्फ 45 परिवार ही बचे हैं। लेकिन, इनके लिए भी सुकून कहां है।
गर्मी का मौसम आते ही आसपास के पेयजल स्रोत सूख जाते हैं। ऐसे में इन्हें गांव से तीन किमी दूर सिलोड़ी व छेकुड़ा स्रोत से पानी ढोकर घर की जरूरतें पूरी करनी पड़ती हैं। वैसे मनोड़ा में पेयजल का एक स्रोत है, मगर इस पर नाममात्र को ही पानी आता है। वह भी बरसात और शीतकाल के दौरान। गर्मियों में स्रोत के सूख जाने से घर की जरूरतें तो ग्रामीण दूर-दराज के स्रोतों से पूरी कर लेते हैं, मगर सबसे बड़ा संकट है मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था करना।
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खेतों के पास एक अन्य पेयजल स्रोत है भी, मगर उस पर भी बारहों महीने मारामारी की स्थिति रहती है। गांव के लिए वर्ष 2009 में स्वेप योजना के तृतीय चरण में झिंझोणी के घटगदेरा तोक से दस किमी लंबी पेयजल योजना स्वीकृत हुई थी। इसकी डीपीआर भी बन गई थी।
तब ग्रामीण इस कदर खुश थे कि उन्होंने योजना के लिए अंशदान के रूप में एक-एक हजार रुपये प्रति परिवार भी जमा करा दिए। साथ ही श्रमदान से स्रोत पर टैंक भी बना दिया गया। मगर, ग्रामीणों की खुशियां तब फुर्र हो गईं, जब विभाग ने बताया कि तृतीय चरण में योजना के निर्माण के लिए बजट नहीं है।
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वर्ष 2015 में ग्रामीणों को एक बार फिर तब उम्मीद जगी, जब पेयजल निगम ने गांव के लिए 45.06 लाख की पेयजल योजना का खाका खींचा। मगर, विडंबना देखिए कि बजट आवंटित न होने के कारण इस योजना पर आज तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।
ग्राम प्रधान गीता देवी बताती हैं कि पुरखों का बसाया गांव आज उजड़ रहा है। अधिकतर परिवार पलायन कर चुके हैं और जो बचे भी हैं, वे भी यही हाल रहा तो लंबे समय तक रुके नहीं रह पाएंगे।
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