नि:संतानों की झोली भरती हैं हिंग्लादेवी
जनपद मुख्यालय की शीर्ष चोटी में बसे शक्ति स्थल मां हिंग्ला देवी मंदिर की अलग मान्यता है। मंदिर के पुजारी चंद वंशीय राजा के कुलपुरोहित पवेत गांव के पांडेय लोग हैं।
चंपावत। जनपद मुख्यालय की शीर्ष चोटी में बसे शक्ति स्थल मां हिंग्ला देवी मंदिर की अलग मान्यता है। मंदिर के पुजारी चंद वंशीय राजा के कुलपुरोहित पवेत गांव के पांडेय लोग हैं।
पुजारी गिरिश पांडेय बताते हैं कि सातवीं सदी से पूर्व चंद राजा के साथ यहां आए और उन्हें व्यास गुरु के रूप में राजा के यहां मान्यता मिली। स्वप्न में मां भगवती ने दर्शन देकर कहा कि शीर्ष चोटी में उनकी शक्ति के साथ ही झूला भी जमीन के अंदर गड़ा हुआ है। मां ने स्वप्न में ही यहां मंदिर बनाने के आदेश दिए। इसके अनुसार खुदाई करने पर यहां मां का शक्तिस्थल और झूले के अवशेष दिखे। विधि-विधान से मंदिर की स्थापना की गयी और व्यास गुरु के भाई को पुजारी के रूप में मंदिर के निकट पवेत गांव में स्थान दिया गया। तभी से यह स्थान शक्तिस्थल के रूप में पूजा जाने लगा। यहां पूजन करने से ऋद्धि-सिद्धि के साथ ही नि:संतान दंपत्तियों की मनोकमना देवी पूरा करते आई है। उन्होंने कहा कि जाता है कि इस स्थान से मां भगवती अखिलतारिणी चोटी तक झूला (हिंग्ला) झूलती थी। इसी वजह से इस स्थान को हिंग्ला देवी कहा जाता है। नवरात्र पर्व में तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। जिले ही नहीं अपितु कुमाऊं के अन्य हिस्सों से भी यहां आकर अपनी मुरादें पूरी करते हैं।
शिला पर बनी है चंपावत की आकृति
मां हिंग्लादेवी के मंदिर में स्थापित शक्तिस्थल की अपनी विशेषता है। यहां के शक्तिपिंड में चम्पावत की प्रतिआकृति देखने को मिलती है। जिसे लोग प्रकृति की चित्रकारी मानते हैं। के धाम में हर एक की मुराद पूरी होती है। ऋद्धि-सिद्धि के साथ नि:संतान दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होने के कारण यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
तीन हिरण हैं हिंग्लादेवी में
हिंग्लादेवी मंदिर में अब तीन हिरण हैं। जिनका नाम सती, गौरी, रवि है। यह तीनों अभी काफी छोटे हैं और भक्तों द्वारा उन्हें दुलारने से अब वह घुल-मिल से गए हैं। मंदिर के महंत श्री श्री 1008 श्री दिगंबर अशोक गिरि जी महाराज जी बताते हैं कि लोगों की रक्षा के लिए मां का आशीर्वाद हमेशा रहता है। सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की मुराद जरूर पूरी होती है।
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