देवीधूरा में सात मिनट तक चला पत्थरों का युद्ध, चार दर्जन योद्धा और दर्शक घायल
मां बाराही के आंगन खोलीखाड़ दूबाचौड़ मैदान में हर साल की तरह इस बार भी रणबाकुरों के बीच पाषाण युद्ध हुआ। इस युद्ध में चार दर्जन के करीब दर्शक और योद्धा घायल हुए।
देवीधूरा, चंपावत, [जेएनएन]: मां बाराही के आंगन खोलीखाड़ दूबाचौड़ मैदान में हर साल की तरह इस बार भी रणबाकुरों के बीच पाषाण युद्ध हुआ। करीब सात मिनट तक चले इस युद्ध में चार दर्जन के करीब दर्शक और योद्धा घायल हुए।
भारी बारिश के बीच लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में अपराह्न 2:21 बजे से पहले चारों खामों (गहड़वाल, चम्याल, वालिक व लमगड़िया) के योद्धाओं ने एक-दूसरे की तरफ फल फेंके। देखते ही देखते पत्थरों की बारिश शुरू हो गई। सात मिनट तक चला युद्ध अपराह्न 2:28 बजे पुजारी के घंटी बजाने के साथ खत्म हुआ। पत्थर लगने से बग्वाली वीरों के साथ ही दर्शक भी घायल हुए हैं। इस युद्ध में करीब 48 लोगों के जख्मी होने की सूचना है।
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जंग के मैदान में उतरने के लिए कठिन तप से गुजर रहे बग्वाली वीरों ने बुधवार का पूरा दिन मां बाराही की आराधना में गुजारा। दूरदराज से लोग इस युद्ध को देखने के लिए देवीधुरा पहुंचे। रक्षाबंधन पर खेला जाने वाला यह युद्ध लंबा सफर तय कर चुका है, लेकिन न मां बाराही के प्रति आस्था खत्म हुई और न युद्ध का तरीका बदला।
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मां के दरबार में चार खामों (गांववासियों का समूह) गहड़वाल चम्याल, वालिक व लमगड़िया के योद्धाओं ने बिना किसी जीत-हार की चिंता के युद्ध में पराक्रम दिखाया। बग्वाल का समय मंदिर के पुजारी व युद्ध के बीच विराम के लिए बजने वाली घंटी की आवाज पर निर्भर रहा। लड़ाई तब तक जारी रही, जब तक एक व्यक्ति के बराबर रक्त नहीं बहा। जब युद्ध चरम था तो माइक से पुजारी इसकी गाथा बताते रहे।
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लोक मान्यता है कि किसी समय देवीधुरा के सघन वन में 53 हजार वीर और 64 योगनियों का जबरदस्त आतंक था। स्थानीय लोग इनसे भयभीत थे। लोगों को मां बाराही ने आतंक से मुक्ति दिलाकर प्रतिफल के रूप में नर बलि की इच्छा जताई। समय के साथ नरबलि की प्रथा बंद हो गई, लेकिन इसका विकल्प तलाशा गया। पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के खून के बराबर निकले रक्त से देवी को तृप्त किया जाएगा।
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