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राहगीरों की प्यास बुझाने को बनी 52 टंकियां गुम, आरटीआइ हुआ खुलासा

करीब 20-25 साल पहले शहर के विभिन्न हिस्सों में बनाई गई पानी की 52 सार्वजनिक टंकियों में से अधिकांश धरातल पर नहीं रह गई हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 02 Jun 2017 05:33 PM (IST)
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राहगीरों की प्यास बुझाने को बनी 52 टंकियां गुम, आरटीआइ हुआ खुलासा

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: शहरीकरण की बढ़ती भूख ने जनसामान्य की प्यास बुझाने के साधन को ही निगल लिया। करीब 20-25 साल पहले शहर के विभिन्न हिस्सों में बनाई गई पानी की 52 सार्वजनिक टंकियों में से अधिकांश धरातल पर नहीं रह गई हैं। इनकी जगह आज कहीं बहुमंजिला भवन खड़े हैं, तो कहीं दुकानें। जो टंकियां बची भी हैं, उनका भी अधिकांश हिस्सा कब्जे की जद में है। गंभीर यह कि नगर निगम के पास उन जमीनों के दस्तावेज ही नहीं हैं, जहां ये टंकियां बनाई गई थीं।

आरटीआइ कार्यकर्ता भूपेंद्र कुमार की ओर से नगर निगम से मांगी गई सूचना में धरातल से गायब हो चुकी पानी की टंकियों का सच सामने आया। आरटीआइ दस्तावेजों के मुताबिक नगर निगम के रिकॉर्ड में इन 52 टंकियों की सूची उनके स्थल के नाम समेत मौजूद है। यह टंकियां एक बिस्वा जमीन से लेकर 12 बिस्वा तक के क्षेत्रफल में बनाई गई थीं। इस जमीन की कीमत वर्तमान में बाजार भाव से ही करोड़ों रुपये है। ऐसे में टंकियों का अस्तित्व समाप्त होना नगर निगम की भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। अब निगम के अधिकारी टंकियों की जमीनों के रिकॉर्ड न होने की बात कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। 

यहां थी टंकियां

स्थल------------------------क्षेत्रफल 

झंडा मोहल्ला--------------12 बिस्वा

मोती बाजार---------------10 बिस्वा

जाटिया मोहल्ला----------10 बिस्वा

कहचरी परिसर------------09 बिस्वा

सर्कुलर रोड----------------09 बिस्वा

लिंटन रोड-----------------07 बिस्वा

ईसी रोड-------------------05 बिस्वा

न्यू कैंट रोड--------------03 बिस्वा

जल संस्थान ने नहीं दिए रिकॉर्ड: मेयर

मेयर विनोद चमोली का कहना है कि पूर्व में जल संस्था और नगर निगम एक ही एजेंसी थे। करीब 20-25 साल पहले टंकियों का निर्माण जल संस्थान ने ही किया था। इसके बाद जब जल संस्थान अलग विभाग बना तो वहां से जमीनों के पूरे रिकॉर्ड नहीं मिल पाए। कुछ समय पहले निगम ने टंकियों के स्थल के पहचान के प्रयास किए थे, लेकिन बात जमीनों के रिकॉर्ड पर आकर अटक गई। अब दोबारा से जमीनों के सत्यापन के प्रयास किए जाएंगे।

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