उत्तराखंड में भाजपा सरकार चली कांग्रेस की राह, सत्ता बदली पर मुद्दे वही
उत्तराखंड में भाजपा सरकार भी पिछली कांग्रेस सरकार की राह पर चल पड़ी है। सत्ता बदली, लेकिन सरकार को कांग्रेस की पिछली सरकार की तरह स्टैंड लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल़]: हिमालयी राज्य उत्तराखंड के सियासी मैदान में बाजी मारने के लिए सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों के बीच उछलकूद भले ही कितनी हो, लेकिन सच ये है कि केंद्र यानी डबल इंजन की विशेष मदद के बगैर पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की गाड़ी चढ़ाना मुमकिन नहीं है। नतीजा देखिए, प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार को भी कांग्रेस की पिछली सरकार की तरह स्टैंड लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार के साथ आगामी 13 नवंबर को देहरादून में होने वाली बैठक में ग्रीन बोनस, विशेष आयोजनागत सहायता (एसपीए), पर्वतीय क्षेत्रों में ढांचागत विकास में अधिक लागत से निपटने को विशेष रियायत समेत कई मुद्दों को उठाने की तैयारी है। ये मुद्दे वे ही हैं, जिन्हें लेकर बीते वर्षों में कांग्रेस की पिछली हरीश रावत सरकार नीति आयोग में दस्तक देती रही है।
अलबत्ता, इस दफा उक्त मामलों को लेकर राज्य की नई सरकार उत्साहित है। उसे उम्मीद है कि डबल इंजन का दम नीति आयोग को राज्य की परिस्थितियों के अनुकूल रुख अपनाने को मजबूर कर सकता है।
विषम भौगोलिक क्षेत्र और सीमित संसाधन के साथ पर्यावरणीय बंदिशों ने उत्तराखंड में विकास की राह बेहद कंटीली कर दी है। चाहे आर्थिक परिस्थितियां हों या वन अधिनियम व भागीरथी इको सेंसिटिव जोन जैसे केंद्रीय कानूनी प्रावधानों के पेच उत्तराखंड के लिए हालात 'पांव फैलाओ तो दीवार पर सिर लगता है' सरीखे हैं।
नतीजा ये है कि केंद्र और राज्य में चाहे एक ही दल की सरकारें हों या परस्पर विरोधी दलों की सरकारें, राज्य के हित को लेकर उन्हें केंद्र की ओर टकटकी लगाना मजबूरी है। मजेदार ये है कि बीते वर्षों में राज्य से जुड़े मुद्दों पर केंद्र में पैरोकारी को लेकर पिछली कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए विपक्ष भाजपा के तरकश से निकलने वाले तीर सियासी निशाने को भेदने में कामयाब भले ही हो गए, लेकिन सत्ता मिलने के बाद अब भाजपा सरकार के लिए इन तीरों की चुभन से बचना आसान नहीं है।
पर्यावरण सुरक्षा का मिले लाभ
नीति आयोग के मामले में ऐसा ही है। लगभग 71 फीसद वन क्षेत्रफल, वन अधिनियम, भागीरथी इको सेंसिटिव जोन समेत देश को पर्यावरणीय सुरक्षा का कवच मुहैया कराने के लिए खुद उत्तराखंड को बड़ी कीमत उठानी पड़ रही है। इस वजह से जन अपेक्षाओं के अनुरूप विकास कार्यों को अंजाम देने के लिए राज्य को भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है तो साथ में संसाधन बढ़ाने का रास्ता तैयार होने में अड़चनें पेश आ रही हैं।
लिहाजा राज्य की ओर से बार-बार पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में ग्रीन बोनस देने की मांग की जा रही है। इसीतरह भागीरथी इको सेंसिटिव जोन के सख्त प्रावधानों में ढील नहीं दी गई तो पूरे जोन में ही विकास की राह अवरुद्ध होना तय है।
एसपीए-आर के हैं 300 करोड़
यही नहीं, पर्वतीय भूभाग में अवसंरचनात्मक ढांचा खड़ा करने की लागत देश के मैदानी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा आ रही है। ऐसे में राज्य सरकार पर एसपीए की तर्ज पर विशेष परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त केंद्रीय मदद चाहती है। वर्ष 2013 की आपदा के कहर से निपटने को विशेष आयोजनागत सहायता-पुनर्निर्माणकी तकरीबन 300 करोड़ की राशि केंद्र को देनी है।
वहीं आपदा के प्रति संवेदनशील गांवों के विस्थापन को एकमुश्त केंद्रीय मदद की दरकार है। पिछली कांग्रेस सरकार इन मुद्दों को लेकर नीति आयोग में लगातार दस्तक देती रही। कमोबेश इसी राह पर राज्य की नई भाजपा सरकार को भी बढऩा पड़ रहा है।
आयोग उपाध्यक्ष पर टिकी निगाहें
नीति आयोग के उपाध्यक्ष उत्तराखंड दौरे में 13 नवंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, वित्त मंत्री प्रकाश पंत समेत राज्य के आला अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में उक्त मुद्दों को पुरजोर तरीके से रखा जाएगा। हालांकि, उक्त मुद्दों के साथ नमामि गंगे, ऑल वेदर रोड जैसे सौ फीसद केंद्रीय मदद वाली महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को लेकर भी राज्य सरकार उत्साहित है।
वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि नीति आयोग के सामने ग्रीन बोनस, एसपीए की तर्ज पर विशेष परियोजना आधारित केंद्रीय सहायता का मुद्दा आयोग उपाध्यक्ष के सामने रखा जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति के लिए अतिरिक्त मदद की मांग की जाएगी।
यह भी पढ़ें: लोकायुक्त बिल को लेकर पूर्व सीएम खंडूड़ी आहत, नहीं लड़ेंगे अगला चुनाव
यह भी पढ़ें: शीतकालीन सत्र से पहले गैरसैंण जाएंगे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत
यह भी पढ़ें: भाजपा मुख्यालय में सीएम त्रिवेंद्र रावत ने सुनी जनसमस्याएं