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उत्तराखंडः सियासी उठापठक के बीच चेहरों ने भी बदले रंग

सियासी घमासान के बीच दलों के चेहरों के रंग भी मंगलवार को बदलते नजर आए। कांग्रेस के चेहरों पर उत्साह झलक रहा था, तो भाजपा के चेहरों की चमक गायब दिखी।

By sunil negiEdited By: Updated: Tue, 10 May 2016 03:15 PM (IST)
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देहरादून। सियासी घमासान के बीच दलों के चेहरों के रंग भी मंगलवार को बदलते नजर आए। कांग्रेस के चेहरों पर उत्साह झलक रहा था, तो भाजपा के चेहरों की चमक गायब दिखी। हालांकि फ्लोर टेस्ट के नतीजे आज घोषित नहीं होने हैं, लेकिन भीतरखाने दलों को अपनी ताकत का अहसास अच्छी तरीके से हो गया। यही वजह रही कि जिन नेताओं की जुबां पर एक रोज पहले तक दावों की झड़ी लग रही थी, आज वो खामोश से नजर आए।

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सुप्रीम कोर्ट का फ्लोर टेस्ट का आदेश आने के बाद से ही भाजपा और कांग्रेस में अंको का गणित शुरू हो गया था। हालांकि सदन के भीतर दोनों के अंकों में मामूली अंतर है, लेकिन कांग्रेस के साथ पीडीएफ के शुरू से ही कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने के चलते संख्या बल में वह भाजपा से भारी नजर आ रही थी।

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फ्लोर टेस्ट का ऐलान होने के बाद दोनों ही दलों ने अंको के इस गणित पर नए सिरे से कसरत शुरू की। भाजपा खेमे में तब उत्साह नजर आने लगा जब बसपा के दो विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर यह ऐलान कर दिया कि उनका पीडीएफ से कोई लेना देना नहीं। बसपा स्वतंत्र दल है और वह सदन में वही करेगा जो पार्टी की सुप्रीमो मायावती आदेश देंगी।

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सियासी परिदृश्य में भाजपा ने इसे अपने लिए मुफीद माना और बसपा विधायकों के साथ मानमनोवल की कोशिशें होने लगी। बीती रात तक भाजपा इसी आस में थी कि फ्लोर टेस्ट में बसपा के विधायक उनका समर्थन कर सकते हैं। हालांकि भाजपाइयों के चेहरों की हवाइयां सुबह उस वक्त उड़ गई, जब बसपा के दोनों विधायक कांग्रेस के पाले में खड़े नजर आए। फिर भी भाजपा ने आस नहीं छोड़ी, लेकिन तब उनकी निराशा हुई, जब बसपा सुप्रीमो ने फ्लोर टेस्ट से कुछ क्षण पहले साफ तौर पर कांग्रेस को समर्थन का ऐलान कर डाला।

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भाजपा को कांग्रेस के खेमे से भी कुछ विधायकों का साथ मिलने की उम्मीद थी। उसके नेता पिछले कई दिनों से दावा कर रहे थे कि कांग्रेस के ये विधायक भले ही सीधे तौर पर उनके साथ खड़े नहीं हैं, लेकिन सदन में उन्हें समर्थन जरूर मिलेगा। भाजपा का यह भ्रम भी तब टूट गया, जब इनमें से अधिकांश विधायक न केवल कांग्रेस के साथ खड़े दिखे, बल्कि भाजपा विधायकों से भी अंतरात्मा की आवाज पर मतदान करने की अपील करते दिखे।

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भाजपा के लिए सुकून देने का एकमात्र पहलू यह रहा कि वह कांग्रेस के खेमे में सेंध मारकर एकमात्र विधायक रेखा आर्य को अपने साथ खड़ा कर सकी। वहीं, विधायक भीमलाल आर्य को तमाम दबाव और दूसरे प्रयासों के बावजूद भाजपा अपने परिवार के बीच नहीं रोक पाई। वह कांग्रेस के साथ खुलकर दिखे।

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रही सही कसर बागियों को अदालत से मिले झटके ने पूरी कर दी। भाजपा को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से बागियों को राहत मिलेगी तो वह फ्लोर टेस्ट में शिरकत कर पाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यही वजह रही कि भाजपा के नेताओं के चेहरों पर आज उदासी साफ तौर पर पढ़ी जा रही थी।

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कांग्रेस काफी हद तक अपने कुनबे को सहेजने में कामयाब रही। खुद निवर्तमान सीएम हरीश रावत और उनके कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री रहे डॉ. इंदिरा हृदयेश और यशपाल आर्य विधायकों को साथ रखने की पुरजोर कोशिशो में जुटे थे। उनकी कोशिशें रंग लाती तब दिखी जब सदन में पार्टी के विधायक बेहद आत्मविश्वास और आत्मीयता से उनके साथ दिखे। यही बड़ी बजह थी जिसने कांग्रेस के तमाम शीर्ष नेताओं के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी।
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