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केदारनाथ आपदाः कदम तो बढ़े, मगर आहिस्ता-आहिस्ता

प्रदेश में तीन वर्ष पूर्व आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद आपदा प्रबंधन को दुरुस्त करने की दिशा में कदम तो उठाए गए लेकिन अभी इनकी रफ्तार धीमी ही है।

By BhanuEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2016 11:31 AM (IST)
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देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में तीन वर्ष पूर्व आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद आपदा प्रबंधन को दुरुस्त करने की दिशा में कदम तो उठाए गए लेकिन अभी इनकी रफ्तार धीमी ही है। एसडीआरएफ का गठन और राहत बचाव उपकरण की खरीद के साथ ही प्रशिक्षण कार्यक्रम चला कर भविष्य में आपदा से निपटने की दिशा में पहल की गई।

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हालांकि, प्रदेश में अभी भी आपदा के दौरान प्रभावी संचार व्यवस्था के लिए सेटेलाइट फोन की खरीद और मौसम संबंधी सटीक पूर्वानुमान के लिए डॉप्लर रडार स्थापित करने का कार्य नहीं हो पाया है।
प्रदेश में जून 2013 में आई आपदा ने आपदा प्रबंधन तंत्र की पोल खोल कर रख दी थी। आपदा प्रबंधन की अधूरी तैयारियों के कारण प्रदेश को जान माल का खासा नुकसान उठाना पड़ा। सेना और पुलिस के जवानों के सहयोग से विभिन्न स्थानों पर फंसे लोगों को बाहर निकाला गया।


प्रदेश के आपदा प्रबंधन तंत्र को लेकर उठे सवालों के बाद प्रदेश सरकार इस दिशा में सक्रिय हुई। इस घटना के तीन वर्ष बाद प्रदेश में अब आपदा प्रबंधन को लेकर उठाए गए कदमों की तस्वीर सामने आने लगी है। आपदा प्रबंधन के लिए सबसे अहम काम जो हुआ है, वह राज्य आपदा प्रतिवादन बल का गठन है।
प्रदेश सरकार ने बल को अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया है। इस पर तकरीबन 25 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सभी जिलों में राज्य आपदा प्रबंधन केंद्रों का गठन किया गया है। विश्व बैंक व एडीबी के माध्यम से आपदा प्रबंधन के कार्य किए जा रहे हैं। जितने भी नए स्कूल बनाए जा रहे हैं, उनमें भूंकपरोधी तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।

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जिलों में आपदा प्रबंधन से जुटे कर्मचारियों को वॉकी टॉकी दिए जा रहे हैं ताकि संचार तंत्र ध्वस्त होने की सूरत में प्रभावित क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों से संबंधित क्षेत्र के अधिकारी जानकारी ले सकें। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया है।


सुनने में ये सारी चीजें अच्छी लग रही हैं लेकिन अभी इन व्यवस्थाओं की परीक्षा होनी बाकी है। कई आवश्यक चीजें हैं जिन पर सरकार अभी ठोस कार्य नहीं कर पाई है। प्रदेश में अभी तकरीबन 20 सेटेलाइट फोन हैं।
आपदा के बाद इनकी संख्या नाकाफी मानी गई थी लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद सेटेलाइट फोन की खरीद आज तक नहीं की जा सकी है। मौसम के संबंध में सटीक पूर्वसूचना देने के लिए डॉप्लर रडार लगाने प्रस्तावित किए गए थे, लेकिन अभी तक मौसम विज्ञान केंद्र इसकी स्थापना नहीं कर पाया है। जमीन का न मिल पाना इसका एक मुख्य कारण बताया गया है।

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आपदा से निपटने को आइआरएस सिस्टम
शासन ने आपदा से निपटने के लिए अब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से विकसित इंसीडेंट रिस्पांस सिस्टम (आइआरएस) अपनाया है। अभी तक प्रदेश में सात विभागों के आपसी सामंजस्य वाला सेवन डेस्क सिस्टम लागू था लेकिन इसकी कार्यप्रणाली जटिल होने के कारण राहत बचाव कार्य प्रभावित होते थे।

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अब शासन ने आइआरएस सिस्टम अपनाया है। इस प्रारूप में आपदा प्रबंधन कार्य को तीन भागों में बांटा गया है। पहले चरण में आपदा से निपटने की योजना बनाई जाएगी। दूसरे चरण में कर्मचारियों और आपदा से निपटने के लिए उपकरणों का प्रबंध किया जाएगा और तीसरे चरण में बचाव राहत कार्य किया जाएगा। सेना भी इसी प्रकार से कार्य करती है। प्रदेश में इस व्यवस्था को हाल ही में जंगलों की आग से निपटने के लिए अपनाया गया था।

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