दस साल में हरी-भरी हो गई सूखी पहाड़ी
पौड़ी जिले में उफरैंखाल से लगी गाडखर्क की यह पहाड़ी 'पाणी राखो ' आंदोलन के सूत्रधार सच्चिदानंद भारती के प्रयासों से हरी भरी हो गई।
देहरादून, [केदार दत्त]: सूखी रहने वाली जिस पहाड़ी पर कभी बारिश की बूंद तक नहीं ठहरती थी, आज वहां न सिर्फ हरा-भरा जंगल है बल्कि जलस्रोत रीचार्ज होने से बरसाती नदी भी जी उठी। पौड़ी जिले में उफरैंखाल से लगी गाडखर्क की यह पहाड़ी 'पाणी राखो ' आंदोलन के सूत्रधार सच्चिदानंद भारती के प्रयासों की गवाही दे रही है। पहाड़ी पर वर्षाजल संरक्षण को जलतलैयां (छोटे-छोटेतालाब) खोदी गई तो एक दशक में वहां न सिर्फ बांज, बुरांस, उतीस का जंगल अस्तित्व में आ गया, बल्कि पहाड़ी से लगी बरसाती नदी भी सदानीरा में बदल गई। 2010 से लोग इसी नदी का पानी पीने के उपयोग में ला रहे हैं। भीषण गर्मी में भी इसमें तीन एलपीएम पानी रहता है। यही नहीं, जंगल में नमी रहने का ही परिणाम रहा कि इस बार जहां समूचे राज्य में जंगल आग की गिरफ्त में आए, वहीं यह जंगल महफूज रहा।
एक दौर में चिपको आंदोलन से जुड़े रहे सच्चिदानंद भारती बताते हैं कि वर्ष 1979 में जब वह अपने गांव गाडखर्क (उफरैंखाल) लौटे तो दूधातोली वन क्षेत्र में भी पेड़ों का कटान हो रहा था। इसे देखते हुए शुरू हुई पेड़ों को बचाने की मुहिम। 1987 में सूखा पड़ा तो इस क्षेत्र में भी व्यापक असर पड़ा। फिर बारिश की बूंदों को सहेजकर पेड़ बचाने के लक्ष्य से कार्य शुरू किया गया। आंदोलन को नाम दिया गया 'पाणी राखो'। इसके तहत क्षेत्र के महिला मंगल दलों समेत ग्रामीणों की मदद से गाडखर्क की 40 हेक्टेयर में फैली पहाड़ी पर छोटे-छोटे तालाब खोदने का कार्य शुरू किया। इन्हें नाम दिया गया जलतलैंया।
वर्ष 1990 में मुहिम के तहत जलतलैंयां खोदी गई। साथ ही जल संरक्षण में सहायक उतीस, बांज, बुरांस, पंय्या, अखरोट जैसे पेड़ों के पौधे लगाए गए। फिर तो यह सिलसिला लगातार चलता रहा। 1999 में इसके नतीजे सामने आए और गाडखर्क की पहाड़ी न सिर्फ हरी-भरी हो गई, बल्कि बरसाती नदी में भी वर्षभर पानी रहने लगा। भारती बताते हैं कि इस पहाड़ी पर 4000 से अधिक जलतलैंया खोदी गई हैं और दो लाख पौधे लगाए गए हैं।
जलतलैंया खोदने की पहल गाडखर्क तक ही नहीं, बल्कि दूधातोली क्षेत्र के अंतर्गत बीरोंखाल व थलीसैण ब्लाकों के 100 से ज्यादा गांवों में भी पसरी है। भारती के मुताबिक पूरे दूधातोली क्षेत्र में 30 हजार से अधिक जलतलैंया बनाई जा चुकी हैं। मोहनपुर, गाडखिल, डुल्मोट, गाडखर्क, ओखल्यूं, कफलगांव ऐसे उदाहरण हैं, जहां इन जलतलैंयों के कारण जलस्रोत रीचार्ज हुए हैं और वहां हरियाली भी बरकरार है। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में इस वर्षाकाल में जलतलैंयों के निर्माण के साथ ही जल संरक्षण में सहायक पौधों का रोपण किया जाएगा।पढ़ें:-दैनिक जागरण का 'मिशन एक करोड़ पौधे' अभियान का शुभारंभ