कल है मौण मेला, जानिये क्या है इतिहास...
उत्तराखंड में एक ऐसा मेला है, जिसमें मछलियों का सामूहिक शिकार होता है। इसमें 10-50 लोग नहीं, बल्कि हजारों संख्या में लोग नदी में मछली को पकड़ते हैं इस बार यह मेला 27 जून को है।
देहरादून, [ सुनील नेगी ] : उत्तराखंड अपने रीति रिवाजों और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। आज भी यहां कई ऐसी परंपराएं जिंदा हैं, जिसे पढ़कर आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे। जी हां, इनमें से एक है मौण मेला। इस मेले के तहत साल में एक बार अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने का ऐतिहासिक त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह मेला 27 जून को है। आइए आपको बताते हैं मौण मेले के बारे में।
क्या है मौण
मौण, टिमरू के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश करने में प्रयोग किया जाता है। टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है।
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ऐसे तैयार किया जाता है मौण
मौण के लिए दो महीने पहले से ही ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। मेले से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को आग में हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है।
इसलिए मनाया जाता है मौण
अगलाड़ नदी के पानी से खेतों की सिंचाई भी होती है। मछली मारने के लिए नदी में डाला गया टिमरू का पाउडर पानी के साथ खेतों में पहुंचकर चूहों और अन्य कीटों से फसलों की रक्षा करता है।
राजशाही से चली आ रही है परंपरा
ये मेला टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह ने स्वयं अगलाड़ नदी में पहुंचकर शुरू किया था। वर्ष 1844 में आपसी मतभेदों के कारण यह बंद हो गया। वर्ष 1949 में इसे दोबारा शुरू किया गया। राजशाही के जमाने में अगलाड़ नदी का मौण उत्सव राजमौण उत्सव के रूप में मनाया जाता था। उस समय मेले के आयोजन की तिथि और स्थान रियासत के राजा तय करते थे।
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इस बार 27 जून को है मौण मैला
इस बार ऐतिहासिक त्योहार मौण मेला 27 जून को मनाया जाएगा। मेले में इस बार टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड, देहरादून के जौनसार और उत्तरकाशी के गोडर खाटर पट्टियों के छह से दस हजार लोगों के भाग लेने की उम्मीद लगाई जा रही है।
टिमरू का पाउडर तैयार करने को बैठक
टिमरू का पाउडर तैयार करने वाले पांतीदार लालूर पट्टी के आठ गांवों के लोगों की बैठक जाखधार म्याणी में देवन के पूर्व प्रधान शांति सिंह मलियाल की अध्यक्षता में हुई। जिसमें 27 जून को मौण मेला मनाने का निर्णय लिया गया। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि नैनबाग के समीप बहने वाली भद्रीगाड में इन दिनों पानी कम होने के कारण मानसून शुरू होने के बाद मौण मनाया जाएगा। इस साल लालूर पट्टी के देवन, घंसी, खड़कसारी, मिरियागांव, छानी, टिकरी, ढकरोल और सल्टवाड़ी गांव पाउडर बनाने का काम कर रहे हैं।
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एकता का प्रतीक है मौण मेला
मौण को मौणकोट नामक स्थान से अगलाड़ नदी के पानी में मिलाया जाता है। इसके बाद हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और वृद्ध नदी की धारा के साथ मछलियां पकड़नी शुरू कर देते हैं। यह सिलसिला लगभग चार किलोमीटर तक चलता है, जो नदी के मुहाने पर जाकर खत्म होता है। विशेषज्ञों के अनुसार टिमरू का पाउडर जलीय जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाता। इससे मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुंडियाड़ा, फटियाड़ा, जाल और हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती, वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं।
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