उत्तराखंड में हर तीसरे-चौथे साल भयावह हो रही वनाग्नि
देवभूमि उत्तराखंड में हर तीसरे और चौथे साल में जंगल की आग सबसे अधिक विकराल रूप धारण कर रही है। बीते एक दशक में हुई वनाग्नि की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो यही तस्वीर सामने आती है।
By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 01 May 2016 04:44 PM (IST)
केदार दत्त, [देहरादून]। देवभूमि उत्तराखंड में हर तीसरे और चौथे साल में जंगल की आग सबसे अधिक विकराल रूप धारण कर रही है। बीते एक दशक में हुई वनाग्नि की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो यही तस्वीर सामने आती है। विभाग के आला अधिकारी भी मानते हैं कि दावानल के मामले में तीसरे और चौथे साल का चक्र भारी पड़ता है। इस मर्तबा भी चौथे साल का चक्र है, जब जंगल इतने बड़े पैमाने पर धधक रहे हैं।
विभागीय आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2005 में दावानल की चपेट में आकर 3652 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसके चौथे साल यानी 2009 में वनाग्नि से क्षति का आंकड़ा 4115 हेक्टेयर पहुंच गया। फिर तीसरे साल 2012 में वनाग्नि से क्षति हुई 2826.3 हेक्टेयर। अब चौथे साल यानी 2016 में जंगल की आग इतनी भयावह हुई है कि अब तक 2269 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। साफ है कि तीसरे व चौथे साल वनाग्नि विभाग को खूब पसीना छुड़ा रही है। विभागीय अधिकारी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं।
मुख्य वन संरक्षक एवं नोडल अधिकारी वनाग्नि बीपी गुप्ता बताते हैं कि हर तीसरे-चौथे साल जंगल में पेड़ों से गिरने वाली पत्तियों की जमीन में परत मोटी हो जाती है। ऐसे में गर्मी तेज पडऩे या फिर सूखे की स्थिति में वनों में आग अधिक लगती है। ऐसा चक्र तीसरे-चौथे साल ही पड़ता है। इस बार भी चौथे साल का चक्र पड़ा है। हालांकि, विभाग की ओर से वनाग्नि से निबटने को पूरे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन बारिश न होने और तापमान बढऩे के साथ ही तेज हवा के कारण यह अधिक फैल रही है।
पहाड़ में चीड़ सबसे खतरनाक
दावानल को भड़काने में चीड़ का भी अहम रोल है, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में। दरअसल, राज्य में करीब 18 फीसद हिस्से में चीड़ का फैलाव है। हर साल बड़े पैमाने पर चीड़ की पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं। भूमि में पिरुल की परत बिछ जाती है, जो गर्मियों में सूखने पर आग का बड़ा कारण बनती है। इसके अलावा चीड़ का फल भी नीचे गिरकर लुढ़कता है, जो वनाग्नि के फैलने की वजह बनता है।
राज्य में वनाग्नि से क्षति
वर्ष | (हेक्टेयर में) |
2005 | 3652 |
2006 | 562.44 |
2007 | 1595.5 |
2008 | 2369 |
2009 | 4115 |
2010 | 1610.82 |
2011 | 231.71 |
2012 | 2826.3 |
2013 | 2823 |
2014 | 384.5 |
2015 | 701.61 |
2016 | 2269.29 (अब तक) |
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