पीएनबी के दो रिटायर्ड अधिकारियों को चार-चार साल की सजा
सीबीआइ कोर्ट ने टिहरी बांध निर्माण के दौरान प्रभावितों के लिए जारी मुआवजा हड़पने के मामले में पीएनबी के पीएनबी के दो रिटायर्ड अधिकारियों को चार-चार साल की सजा सुनाई।
देहरादून, [जेएनएन]: सीबीआइ कोर्ट ने टिहरी बांध निर्माण के दौरान प्रभावितों के लिए जारी मुआवजा हड़पने के 36 साल पुराने मामले में पीएनबी के दो रिटायर्ड अधिकारी तत्कालीन प्रबंधक और सहायक प्रबंधक को चार-चार साल की सजा सुनाई। साथ ही अदालत ने उन पर 25-25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जबकि इस मामले में आरोपी एक एसएलएओ को दोषमुक्त कर बरी कर दिया गया है।
सीबीआइ की अधिवक्ता अमिता वर्मा ने बताया कि टिहरी डैम निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि के लिए केंद्र सरकार से मुआवजा दिया गया था। मुआवजा आवंटन के लिए उस वक्त आए एक करोड़ रुपये पीएनबी के तत्कालीन टिहरी प्रबंधक विनोद कुमार और सहायक प्रबंधक अशोक कुमार गावा दोनों निवासी पीएनबी एनक्लेव शिमला बाईपास, देहरादून ने पात्रों को मुआवजा देने के बजाए बैंक में फर्जी दस्तावेजों से खाता खुलाया और एफडीआर बनाकर रकम जमा कर दी।
उक्त जमा रकम पर मिला ब्याज आरोपियों ने हड़प लिया और इसके बाद पात्रों को उनकी मुआवजा राशि बांटी। अधिवक्ता अमिता ने बताया कि सीबीआइ की तरफ से इस मामले में 1991 में मुकदमा दर्ज करते हुए दोनों बैंक अधिकारियों के साथ ही टिहरी के तत्कालीन एसएलएओ एसडी भट्ट, क्लर्क मोहन दास और डीपी काला को आरोपी बनाया गया।
आरोपियों के खिलाफ जून 1997 को अदालत में धारा 120 बी, 420, 468, 471, 477 ए, लोक सेवक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल की गई। इसके बाद अदालत में ट्रायल शुरू हुआ। तीन दशक तक चले ट्रायल में सीबीआइ की विशेष अदालत में अभियोजन की ओर से कुल 32 गवाह पेश किए गए।
इसके बाद अदालत ने फैसला सुनाया। अदालत ने तत्कालीन बैंक प्रबंधक वीके सिन्हा और अशोक कुमार गावा को मुआवजा आवंटन में गड़बड़ी का दोषी पाते हुए चार-चार वर्ष की सजा सुनाते हुए कुल 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। जबकि एसएलएओ एसडी भट्ट को दोषमुक्त पाते हुए बरी कर दिया गया। तत्कालीन क्लर्क मोहन दास और डीपी काला की ट्रायल केदौरान ही मौत हो चुकी है।