स्वच्छ ईंधन से महरूम उत्तराखंड की आधी आबादी
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में पहाड़ी जिले स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने के मामले में मैदानी जिलों से बहुत पीछे हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 15 Mar 2017 05:03 AM (IST)
देहरादून, [नेहा सिंह]: उत्तराखंड की आधी आबादी को स्वच्छ ईंधन की दरकार है। हाल में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि प्रदेश की 51 फीसद आबादी ही स्वच्छ ईंधन का प्रयोग कर रही है। खासकर, पहाड़ी जिले स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने के मामले में मैदानी जिलों से बहुत पीछे हैं। सबसे बुरी स्थिति बागेश्वर जिले की है, जहां मात्र 23 फीसद आबादी ही स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल कर रही है। इस मामले में 84.9 फीसद के साथ सबसे आगे चल रहे देहरादून जिले को छोड़ दें तो बाकी जिलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती।
पिछले कुछ समय से गरीब परिवारों को भी स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने की मुहिम जोर पकड़ रही है। केंद्र सरकार की ओर से भी उज्ज्वला योजना के तहत देश के हर परिवार तक स्वच्छ ईंधन पहुंचाने के दावे हो रहे हैं। लेकिन, उत्तराखंड की स्थिति पर गौर करें तो यहां स्थिति सुकून वाली नहीं कही जा सकती।
यहां दुर्गम क्षेत्रों में बसे लोग आज भी जंगल से लकडिय़ां चुनकर खाना पकाने को मजबूर हैं। केंद्र की ओर से जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड की आधी आबादी ही स्वच्छ ईंधन का उपयोग कर रही है। यह सोचने का विषय है कि 51 फीसद लोगों को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने में जब आजादी के बाद 69 साल लग गए, तो बाकी की आधी आबादी को न जाने कब तक इंतजार करना पड़ेगा।
यह है स्वच्छ ईंधन
स्वच्छ ईंधन के अंतर्गत न सिर्फ एलपीजी गैस ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक व बायोगैस भी आती हैं। हालांकि, अधिकतर लोग एलपीजी का ही इस्तेमाल करते हैं। प्राकृतिक गैस और बायोगैस का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बेहद सीमित है।
दून आगे, बागेश्वर सबसे पीछे
स्वच्छ ईंधन उपयोग करने के मामले में देहरादून जिला सबसे आगे है। जिले की 84.9 फीसद आबादी स्वच्छ ईंधन का उपयोग करती है। जबकि, बागेश्वर (23 फीसद), अल्मोड़ा (26.6 फीसद), उत्तरकाशी (28.2 फीसद) में स्थिति काफी खराब है।
जिलों की स्थिति पर एक नजर
जिला------------स्वच्छ ईंधन का उपयोग (प्रतिशत में)
देहरादून--------------84.9
नैनीताल--------------62.8
उत्तरकाशी-----------28.2
बागेश्वर--------------23.0
चमोली---------------34.8
पिथौरागढ़-----------36.8
हरिद्वार-------------46.2
टिहरी गढ़वाल------35.1
पौड़ी गढ़वाल--------35.4
रुद्रप्रयाग-------------32.5
अल्मोड़ा-------------26.6
चम्पावत------------30.0
ऊधमसिंहनगर------52.6
आने वाले दिनों में बायो-गैस की मुहिम सफल होगी
उरेडा के मुख्य परियोजना अधिकारी एके त्यागी का कहना है कि पहाड़ पर घरों में बायो गैस के लिए पर्याप्त जानवर व तापमान उपलब्ध नहीं हो पाता, जिस कारण दिक्कत आती है। हालांकि, उरेडा की ओर से तीन सौ लोगों को प्रशिक्षण देकर जागरूकता कार्यक्रम में लगाया गया है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बायो-गैस की मुहिम सफल होगी।
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