केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें...
विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के बारे में आप बहुत कुछ जानते होंगे। मगर आज हम आपको केदारनाथ के बारे में एक नई और अद्भुत बात बताने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था।
देहरादून। विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के बारे में आप बहुत कुछ जानते होंगे। मगर आज हम आपको केदारनाथ के बारे में एक नई और अद्भुत बात बताने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था। बावजूद इसके मंदिर सुरक्षित बचा रहा। 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग (Little Ice Age) आया था, जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था।
बाबा भोलेनाथ का निवास स्थान केदारनाथ करोड़ों आस्थाओं का केंद्र है। इस धाम में कदम-कदम पर आस्था की नई कहानी लिखी हुई है। धाम का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही वैज्ञानिक प्रमाण भी हैरत करते हैं। अब मंदिर के 400 साल तक बर्फ में दबे रहने की कहानी हैरत करती है।
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इतने साल तक केदारनाथ के मंदिर के बर्फ के अंदर दबे रहने के बावजूद यह मंदिर सुरक्षित रहा। लेकिन वह बर्फ जब पीछे हटी तो उसके हटने के निशान मंदिर में मौजूद हैं। इसकी वैज्ञानिकों ने स्टडी की, उसी आधार पर ही यह निष्कर्ष निकाला गया है।
13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था। मंदिर ग्लैशियर के अंदर नहीं था बल्कि बर्फ में ही दबा था। वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान हैं। ये निशान ग्लैशियर की रगड़ से बने हैं। ग्लैशियर हर वक्त खिसकते रहते हैं। जिसके कारण उनके मार्ग में आई हर वस्तुएं रगड़ खाती हुई चलती हैं।
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मंदिर का निर्माण : विक्रम संवत् 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को बनवाया था, लेकिन कुछ लोगों के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। बताया जाता है कि मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनवाया था।
मजबूत पत्थरों से बना है मंदिर: केदारनाथ मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है । इसकी दीवारें 12 फीट मोटी है और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। यह हैरतअंगेज है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। जानकारों का मानना है कि पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचोबीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।
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