उत्तराखंडः मंत्री पद के तलबगारों को अभी करना होगा इंतजार
हरीश रावत कैबिनेट में खाली चल रही दो सीटों पर ताजपोशी के तलबगार विधायकों को फिलहाल इंतजार ही करना होगा। निकट भविष्य में कैबिनेट विस्तार की कोई संभावना नहीं है।
विकास धूलिया, देहरादून। हरीश रावत कैबिनेट में खाली चल रही दो सीटों पर ताजपोशी के तलबगार विधायकों को फिलहाल इंतजार ही करना होगा। निकट भविष्य में कैबिनेट विस्तार की कोई संभावना नहीं है। मुख्यमंत्री हरीश रावत के मुताबिक बजट की गुत्थी सुलझ जाने के बाद ही इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा। यानी, मामला आगामी जुलाई तक तो खिंचना तय ही है।
राज्य कैबिनेट में मौजूदा समय में दो स्थान खाली चल रहे हैं। इनमें से एक स्थान तो एक साल से ज्यादा समय से रिक्त है। बसपा विधायक सुरेंद्र राकेश के गत वर्ष निधन के कारण मंत्रिमंडल में यह स्थान खाली हुआ था।
दूसरा स्थान हाल ही में कांग्रेस में नौ विधायकों की बगावत के बाद रिक्त हुआ। बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। मंत्रिमंडल में रिक्त इन दो स्थानों के लिए दावेदारों की कतार में कई विधायक खड़े हैं।
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इनमें कांग्रेस ही नहीं, बल्कि सरकार को समर्थन दे रहे और हालिया सियासी घटनाक्रम में अहम भूमिका निभाने वाले प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट के भी विधायक शामिल हैं।
दरअसल, छह विधायकों वाले पीडीएफ में तीन निर्दलीय और एक उक्रांद विधायक तो मंत्री हैं ही, बस बसपा के दो विधायक ही ऐसे हैं जिन्हें मंत्री पद नहीं मिला। ये हरिदास और सरवत करीम अंसारी हैं।
गत 10 मई को विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर दोनों पार्टी विधायकों ने कांग्रेस के ही पक्ष में मतदान किया। इस लिहाज से माना जा रहा है कि बसपा को कम से कम एक सीट तो कैबिनेट में मिलेगी ही।
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उधर, कांग्रेस में भी कई वरिष्ठ विधायक मंत्रिमंडल में जगह पाने के दावेदार हैं। खासकर, वे वरिष्ठ विधायक, जो पूर्व में मंत्री भी रहे हैं। इनमें नवप्रभात, हीरा सिंह बिष्ट और राजेंद्र भंडारी के नाम शामिल हैं।
साफ है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए अपनी टीम में दो नए चेहरे शामिल करना किसी चुनौती से कम नहीं। उनके सामने स्थिति 'एक अनार सौ बीमार' सरीखी है।
गौरतलब है कि गत 18 मार्च को कांग्रेस में हुई बगावत के मूल में एक बड़ा कारण मंत्रिमंडल के एक रिक्त स्थान को लंबे समय तक न भरा जाना भी रहा। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इसके लिए लगातार दबाव बनाते रहे मगर ऐसा हुआ नहीं।
इससे उपजे असंतोष की परिणति हुई नौ विधायकों की बगावत के रूप में। इसके अलावा सतपाल महाराज के नजदीकी समझे जाने वाले कुछ कांग्रेस विधायक भी मंत्री पद के तलबगारों में शुमार किए जा सकते हैं क्योंकि भरसक कोशिश के बावजूद ये फ्लोर टेस्ट के दौरान कांग्रेस के पक्ष में ही खड़े रहे।
मंत्री बनने की चाहत पाले इन विधायकों को अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। स्वयं मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस तरह के संकेत दिए हैं। 'जागरण' से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता राज्य का बजट है। एक बार बजट की गुत्थी सुलझ जाए, उसके बाद ही इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि केंद्र ने उत्तराखंड के विनियोग विधेयक को पारित मानने से इन्कार करते हुए चार महीने के लिए लेखानुदान की व्यवस्था की है। यानी जुलाई तक राज्य सरकार को इस व्यवस्था पर निर्भर रहना पड़ सकता है। साफ है कि मुख्यमंत्री इसके बाद ही मंत्रिमंडल में दो स्थान भरने को तवज्जो देंगे।
विलय का फैसला पीडीएफ पर: सीएम
देहरादून: मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि सरकार को समर्थन दे रहे गैर कांग्रेसी विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने या न होने का निर्णय वे स्वयं ही करेंगे। छह गैर कांग्रेसी विधायकों के गुट पीडीएफ के आगामी विधानसभा चुनाव के मदृदेनजर पार्टी में विलय संबंधी सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि पीडीएफ पूरी तरह सरकार के साथ है, अगला चुनाव वे किस तरह लड़ते हैं, इसका फैसला भी वे खुद ही करेंगे। कांग्रेस उनके हर निर्णय का सम्मान करती है।
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