फ्लोर टेस्टः उत्तराखंड में जोड़-तोड़ पर टिका बहुमत का गणित
कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता बहाल करने की याचिका हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी पारे ने करवट बदली है। बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए दोनों ही दलों को एक-एक विधायक जुटाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।
देहरादून। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता बहाल करने की याचिका हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी पारे ने करवट बदली है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कल फ्लोर टेस्ट की तैयारियों में जुटे भाजपा व कांग्रेस बागियों के मामले में हाई कोर्ट के फैसले को अपने-अपने नजरिये से देख रहे हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट ने ऐतिहासिक और स्पष्ट फैसला दिया है। इस फैसले से पीएम नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सबक लेना चाहिए। उधर, भाजपा के प्रदेश महामंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि बागी विधायक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हैं। अभी अंतिम फैसला आने का इंतजार करना चाहिए।
उत्तराखंड के सियासी संकट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट के फैसले के बाद सभी राजनीतिक दलों की निगाहें हाई कोर्ट में बागी विधायकों को लेकर आज के फैसले पर टिकी थी। हाई कोर्ट ने आज बागियों की याचिका खारिज कर दी। अब फ्लोर टेस्ट को लेकर संख्या बल के गणित को लेकर भाजपा और कांग्रेस में मंथन शुरू हो गया।
दोनों ही दल अभी तक यह दावा कर रहे हैं कि बहुमत उनके पास है। ऐसे में कल होने वाले फ्लोर टेस्ट को लेकर सियासी असमंजस चरम पर है। मौजूदा समय में विधानसभा में एक मनोनीत विधायक समेत कुल 62 सदस्य हैं। यदि दलगत आधार पर देखें तो कांग्रेस के पास 27 विधायक हैं। भाजपा के पास निलंबित एक विधायक समेत 28 की संख्या है। बसपा के पास दो, उक्रांद के पास एक और तीन निर्दलीय विधायक हैं।
बसपा, उक्रांद और निर्दलीय पूर्व में पीडीएफ के तहत एकजुट होकर कांग्रेस को समर्थन दे रहे थे, लेकिन अब बसपा ने पीडीएफ से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया है। बसपा विधायक हरिदास का कहना है कि पीडीएफ कोई दल नहीं है, जबकि बसपा राष्ट्रीय पार्टी है और उसकी अपनी सोच है।
बसपा विधायक हरिदास और सरवत करीम अंसारी दोनों का कहना है कि फिलहाल की स्थिति के अनुसार कल दोनों सदन से गैर हाजिर रहेंगे। उन्हें ऐसे ही निर्देश हैं। उन्होंने कहा कि वे बसपा सुप्रीमो मायावती से एक बार और बात करेंगे, अगर कोई नया आदेश हुआ तो उसका पालन किया जाएगा। नहीं तो वे सदन से गैर हाजिर रहेंगे।
इस तरह पीडीएफ के पास केवल चार विधायक ही रह जाते हैं और पीडीएफ पर न तो किसी तरह का व्हिप और न ही कोई दलगत प्रतिबद्धता है। ऐसे में पीडीएफ के ये चार विधायक भी अलग-अलग राह पकड़ सकते हैं। एक तरह से पीडीएफ ने ही सत्ता के गणित का संतुलन अपने पास रखा है और पीडीएफ के विधायक यह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि वे किसके साथ खड़े होने जा रहे हैं।
बहुमत के लिए सदन में 32 का चमत्कारिक आंकड़ा चाहिए। कांग्रेस को पांच और भाजपा को बहुमत तक पहुंचने के लिए चार विधायकों की जरूरत पड़ेगी। यदि भाजपा का एक निलंबित विधायक कम भी होता है तो भी उसे हर हालत में पांच विधायक की जरूरत होगी। यह तय है कि ऐसे में जो पीडीएफ और बसपा के विधायकों को अपने पाले में कर लेगा, उसकी सरकार बनेगी।
संख्या बल के इस गणित में एक समीकरण और है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस में से कोई भी दल बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएगा। यदि बसपा के दो विधायक भाजपा के साथ खड़े हो जाते हैं तो कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से पीछे रह जाएगी, लेकिन भाजपा के निलंबित विधायक भीमलाल के कांग्रेस के पक्ष में जाने से उसे बहुमत मिल सकता है। यदि पीडीएफ के चार विधायक और बसपा के दो विधायक भाजपा के साथ आ जाते हैं तो भाजपा बहुमत साबित कर सकती है। कुल मिलाकर बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए दोनों ही दलों को एक-एक विधायक जुटाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। बहुमत का गणित किसी के भी पाले में जाने के हालात हैं।
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