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तो अनुभवहीन खेवैय्या पार लगाएंगे नमामि गंगे की नैय्या

नमामि गंगे के लिए पेयजल निगम ने टेंडर निकाले, लेकिन किसी भी ठेकेदार ने उसमें हिस्‍सा नहीं लिया। इस कारण पेयजल निगम ने पांच साल का कार्यानुभव होने की शर्त खत्‍म कर दी।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 02 Oct 2017 10:38 PM (IST)
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तो अनुभवहीन खेवैय्या पार लगाएंगे नमामि गंगे की नैय्या
देहरादून, [अंकित सैनी]: पेयजल निगम केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे के काम अनुभवहीन हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहा है। योजना के तहत निगम को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और नाला टैपिंग का काम कराना है। जिसके लिए दो बार ऑनलाइन टेंडर निकाले जा चुके हैं, लेकिन किसी भी ठेकेदार द्वारा टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा न लेने के कारण अब निगम ने अपने नियमों में बदलाव कर दिया है।

 दरअसल, पूर्व में टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए निगम ने कम से कम पांच साल का कार्यानुभव होने की शर्त रखी थी। जिसके कारण ठेकेदार टेंडर से कन्नी काट रहे थे। जिसे देखते हुए यह बाध्यता खत्म कर दी गई। लेकिन, इससे यह आशंका भी जताई जा रही है कि अनुभवहीन हाथों में कमान सौंपने पर कहीं नमामि गंगे की नैय्या बीच मंझधार में डूब न जाए।

उत्तराखंड में नमामि गंगे योजना के तहत कुल 20 सीवरेज योजनाओं का निर्माण किया जाना है। एनएमसीजी (नेशनल मिशन क्लीन गंगा) इन योजनाओं के लिए छह महीने पहले निर्माण की अनुमति दे चुका है। लेकिन, अब तक पेयजल निगम को सिर्फ जगजीतपुर की एक, सराय की दो, उत्तरकाशी ज्ञानसू, तपोवन व कीर्तिनगर की एक-एक योजनाओं के लिए ही ठेकेदार मिल पाए हैं। 

जबकि, जगजीतपुर की दो, सराय की एक, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, चमोली-गोपेश्वर, नंदप्रयाग, श्रीनगर की दो, मुनिकीरेती-ढालवाला व स्वर्गाश्रम की एक-एक योजना का निर्माण करने के लिए ठेकेदार नहीं मिले हैं। जबकि, अब तक पेयजल निगम इन 14 योजनाओं के लिए दो बार ऑनलाइन टेंडर जारी कर चुका है। 

यही कारण है कि निगम ने अब योजनाओं के टेंडर के लिए मानकों में बदलाव किए हैं। नई व्यवस्था के अनुसार ठेकेदार अब बैंक गारंटी के जरिये भी टेंडर ले सकते हैं। बड़ी बात ये है कि अब निगम ने ठेका लेने के लिए पांच साल के अनुभव की बाध्यता को समाप्त कर दिया है। 

 पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक भजन सिंह का कहना है कि नमामि गंगे की पर्वतीय योजनाओं के लिए ठेकेदार आगे नहीं आ रहे हैं। यही कारण है कि इन योजनाओं के लिए मानकों में बदलाव किए गए हैं।

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