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शिव की अद्भुत माया, यहां प्रकृति करती है शिव का जलाभिषेक

उत्‍तराखंड की राजधानी देहरादून में एक शिव मंदिर ऐसा है, जिसका खुद प्रकृति जलाभिषेक करती है। मंदिर में शिवलिंग के ऊपर स्थित एक चट्टान से हमेशा जल की बूंदें टपकती रहती हैं।

By sunil negiEdited By: Updated: Thu, 21 Jul 2016 03:11 PM (IST)
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देहरादून, [सुनील नेगी]: सावन का महीना शुरू हो गया है। शिवालयों में शिवभक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इन्हीं मंदिरों में से एक है टपकेश्वर महादेव मंदिर। यहां प्रकृति शिव का जलाभिषेक खुद करती है। गुफा में स्थित मंदिर में शिवलिंग के ऊपर स्थित एक चट्टान से हमेशा जल की बूंदें टपकती रहती हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

भगवान शिव का प्रमुख धाम टपकेश्वर मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है। यह मंदिर देहरादून सिटी बस स्टैंड से साढ़े पांच किमी की दूरी पर नदी के किनारे बना है। यहां स्थित गुफा में मौजूद शिवलिंग के ऊपर स्थित एक चट्टान से हमेशा जल की बूंदें टपकती रहती हैं। इसी कारण इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा।
PICS: टपकेश्वर महादेव मंदिर, प्रकृति करती है जलाभिषेक
शिव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण स्थान
सावन के महीने में यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां कई उत्सवों का आयोजन भी किया जाता है। इस मंदिर में हर महीने की त्रयोदशी के समय महादेवजी का विशेष श्रृंगार किया जाता है, जिसे रुद्राक्षमय श्रृंगार कहा जाता है। दूर-दूर से भक्त इसमें शामिल होते हैं।

लोक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, यह स्थल गुरु द्रोणाचार्य की साधना स्थली भी है। उन्हीं के द्वारा यहां शिवलिंग स्थापना किए जाने कि लोक कथाएं प्रचलित हैं। मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है, भारत भ्रमण के दौरान गुरु द्रोणाचार्य इस जगह पर आए थे और उनकी मुलाकात एक महर्षि से हुई। द्रोणाचार्य ने महर्षि से भगवान शिव के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस अभिलाषा को पूरा करने के लिए महर्षि ने द्रोणाचार्य को ऋषिकेश जाने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि यात्रा के दौरान ही नदी किनारे एक दिव्य स्थान पर उन्हें शिवलिंग के दर्शन होंगे।
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द्रोणाचार्य ने की भगवान शिव की तपस्या
महर्षि की बातों को मानकार द्रोणाचार्य ऋषिकेश पहुंचे और भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए। द्रोणाचार्य की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद स्वरूप धनुर्विद्या का ज्ञान दिया और द्रोणाचार्य की पत्नी कृपी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। निश्चित समय पर कृपी को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ, परंतु माता कृपी अपने पुत्र को दूध पिलाने में असमर्थ थी। द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा के लिए दूध का प्रबंध करने के लिए राजा द्रुपद के पास गाय लेने पहुंचे। राजा ने गुरु द्रोणाचार्य को गाय देने से इन्कार कर दिया। दुखी द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र को समझाया कि सभी गाय भगवान शिव के पास हैं और उन्हीं के कृपा से तुम्हें दूध मिल सकता है।

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भगवान शिव हुए द्रवित, बहने लगी दूध की धारा
बालक ने मन ही मन भगवान शिव की आराधना करते हुए रोने लगा। उसके आंसुओं की कुछ बूंदें अनजाने में ही शिवलिंग पर गिरी जिससे भगवान शिव द्रवित हो गए। माना जाता है कि उनकी कृपा से इस गुफा से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के लिए भगवान शिव ने दूध की धारा बहाई थी। तब से हर माह की पूर्णिमा को दूध की धारा प्रवाहित होने लगी। इस दूध की धारा से सबसे पहले शिवलिंग का अभिषेक होता है, फिर बालक को दूध मिलता है। तभी से इस शिवलिंग को दुग्धेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारा जाने लगा, लेकिन अब वहां दूध की जगह शिवलिंग के ऊपर की एक चट्टान से जलधारा बहने लगी है।

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