निजी मेडिकल कालेजों को नोटिस भेजा, दाखिले तुरंत शुरू करने के दिए निर्देश
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कालेजों को नोटिस भेज छात्रों को केंद्रीयकृत काउंसिलिंग के तहत आवंटित सीटों पर प्रवेश देने के निर्देश दिये हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 30 Jul 2017 08:23 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: एमबीबीएस में प्रवेश के लिए सीट आवंटन व शुल्क निर्धारण के मुद्दे पर निजी मेडिकल कॉलेजों व सरकार के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कालेजों को नोटिस भेज छात्रों को केंद्रीयकृत काउंसिलिंग के तहत आवंटित सीटों पर प्रवेश देने के निर्देश दिये हैं। निजी मेडिकल कॉलेजों ने दाखिले पर रोक लगाई हुई है। जिसे विभाग ने न सिर्फ राज्य सरकार, बल्कि एमसीआइ व केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय के निर्देशों का भी उल्लंघन बताया है। मेडिकल कालेजों की कार्यशैली को उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना बताया है।
देशभर के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश अब राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) के माध्यम से होते हैं। राज्य में भी इस बार केंद्रीयकृत काउंसिलिंग के जरिये दाखिले किए जा रहे हैं। एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय प्रथम चरण में एमबीबीएस-बीडीएस की सीटें भी आवंटित कर चुका है। जिन पर अभ्यर्थियों को 31 जुलाई तक प्रवेश लेना है। राज्य में वर्ष 2012-2013 में निर्धारित शुल्क के आधार पर प्राइवेट मेडिकल कॉलजों में प्रवेश दिए जा रहे हैं।फीस का निर्धारण नए सिरे से होना है, पर यह प्रस्ताव अभी भी ठंडे बस्ते में है। अभी महज कामचलाऊ व्यवस्था ही चल रही है। ये मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी के तहत संचालित होते हैं। ऐसे में विवि एक्ट की दुहाई देकर यह भी तर्क दिया जा रहा है कि फीस व सीट निर्धारण का उन्हें पूरा अधिकार है। सरकार के प्रतिनिधि व मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के बीच एक राय न हो पाने के कारण छात्र-छात्राओं को भारी परेशानी से गुजरना पड़ रहा है।
सीट आवंटन के पश्चात छात्र शुल्क संबंधी ड्राफ्ट काउंसिलिंग बोर्ड में जमा कर चुके हैं पर निजी कालेज उन्हें प्रवेश नहीं दे रहे।जिसके बाद अब चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कालेजों को नोटिस जारी किया है।चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि प्रथम चरण में आवंटित सीटों पर प्रवेश की अंतिम तिथि 31 जुलाई है।
छात्रों के भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए कालेजों को आवंटित सीटों पर तुरंत प्रवेश शुरू करने को कहा गया है।अन्यथा उनकी कार्यशैली को उच्चतम न्यायालय, केंद्र व राज्य सरकार और एमसीआइ के निर्देशों की अवहेलना माना जाएगा।
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