Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में बाघ और हिरन खा रहे हैं पॉलीथिन की थैलियां

पॉलीथिन कैरीबैग पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के साथ ही बेजुबानों की असमय मौत का कारण भी बन रहे हैं। बाघ-गुलदार और हाथी जैसे जानवरों के पेट से भी पॉलीथिन की थैलियां मिल रही हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 22 Feb 2017 05:06 AM (IST)
उत्‍तराखंड में बाघ और हिरन खा रहे हैं पॉलीथिन की थैलियां
देहरादून, [केदार दत्त]: शहरी क्षेत्रों में गाय समेत दूसरे पालतू जानवरों की उम्र घट रही है तो वन्यजीवों के व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसकी वजह चौंकाने वाली है। आसान सुविधा के नाम पर जिस पॉलीथिन कैरीबैग का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है, वह पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के साथ ही बेजुबानों की असमय मौत का कारण भी बन रही। और तो और हिरन, बाघ-गुलदार और हाथी जैसे जानवरों के पेट से भी पॉलीथिन की थैलियां मिल रही हैं।

नेचर साइंस इनिशिएटिव एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की ओर से 'उत्तराखंड में कूड़े से उत्पन्न पारिस्थितिकीय प्रभाव' विषय पर किए जा रहे शोध में ये बातें निकलकर सामने आई हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि जंगल के आसपास लापरवाही से फेंके गए कूड़े के ढेर भोजन की तलाश में भटकते वन्यजीवों को आकर्षित कर रहे हैं। यदि यह सिलसिला नहीं थमा तो आने वाले दिनों में मानव-वन्यजीव संघर्ष में इजाफा हो सकता है।

असल में तेजी से बदलती जीवनशैली में जहां जरूरतें बदल रही, वहीं इसके गंभीर समस्याएं भी उभर रही हैं। शहरों व गांवों में लगातार बढ़ता कचरा भी ऐसी ही दिक्कत है, जिसकी गंभीरता हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा है। अधिकांश लोग कूड़े को महज सुंदरता बिगाड़ने वाला तत्व मानते हैं, लेकिन पर्यावरण पर इसके असर को ठीक से नहीं समझ पाते। इसी दिशा में पहल करते हुए नेचर साइंस इनिशिएटिव और जेएनयू के वैज्ञानिकों का दल 2015 से उत्तराखंड में शोध में जुटा है। शोध की प्रारंभिक रिपोर्ट में ही पॉलीथिन को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

यह भी पढ़ें: प्लास्टिक कैन किए जब्त, काटा चालान

शोधकर्ताओं ने पाया कि जंगल से सटे आबादी वाले क्षेत्रों में लापरवाही से बिखेरा गया कूड़ा पालतू जानवरों के साथ ही वन्यजीवों को प्रभावित कर रहा है। नेचर साइंस इनिशिएटिव के निदेशक एवं रिसर्च एसोसिएट रमन कुमार के मुताबिक हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, पौड़ी जनपदों में पाया गया कि वनक्षेत्र से सटे इलाकों में कूड़े के ढेर बंदर, हिरन जैसे जानवरों को आकर्षित कर रहे हैं। दरअसल, कूड़े के ढेर इनके लिए भोजन का आसान स्रोत बन रहे हैं।

यह भी पढ़ें: पॉलीथीन के इस्तेमाल पर 18 को नोटिस, पांच हजार जुर्माना

रमन के मुताबिक हरिद्वार समेत अन्य क्षेत्रों में मृत मिले कुछ बाघ-गुलदार जैसे जानवरों के पोस्टमार्टम में इनके पेट में पॉलीथिन मिली। साफ है कि बाघ-गुलदार ने ऐसे हिरन अथवा दूसरे जीव को खाया, जिसने पॉलीथिन निगली हुई थी। कुछेक स्थानों में हाथियों के मल में भी पॉलीथिन के टुकड़े पाए गए। जाहिर है कि पॉलीथिन के खतरों से निबटने के लिए जरूरी है कि कूड़े का सही ढंग से प्रबंधन सुनिश्चित किया जाए।

यह भी पढ़ें: गोमुख में ही अटक रही भागीरथी की सांसें, बिखरा पड़ा कचरा

ग्लेशियर से गाय के पेट तक

बेहतरीन आबोहवा वाले उत्तराखंड के पर्यावरण के लिए पॉलीथिन एक बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। ग्लेशियर से लेकर गाय-भैंस के पेट तक में पॉलीथिन के ढेर मिल रहे हैं। कभी न मिटने वाले गुण के कारण यह भूमि की उर्वरा शक्ति को क्षीण कर रहा तो गाय-भैंसों के इसे निगलने के कारण पॉलीथिन में मौजूद खतरनाक रसायन दूध के जरिये मानव शरीर में बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। बावजूद इसके सूबे में पॉलीथिन कैरीबैग का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। ये बात अलग है कि हाई कोर्ट की सख्ती के बाद राज्य सरकार पॉलीथिन के इस्तेमाल को बैन कर चुकी है।

यह भी पढ़ें: पॉलिथिन उन्मूलन के लिए हाई कोर्ट ने शासन को दिए निर्देश

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।