क्यों है यहां के पत्थरों की सेहत नासाज? जानने के लिए पढ़ें खबर
विश्वभर में विख्यात विश्व धरोहर खजुराहो के मंदिरों की सेहत नासाज है। मंदिर के पत्थर नमी का शिकार हैं और ये कमजोर पड़ते जा रहे हैं। गंभीर यह कि मंदिर समूह के संरक्षण की दिशा में अभी तक कारगर उपाय भी नहीं अपनाए जा सके हैं।
By sunil negiEdited By: Updated: Thu, 18 Feb 2016 07:18 PM (IST)
सुमन सेमवाल, देहरादून। अपनी स्थापत्य कला के लिए विश्वभर में विख्यात विश्व धरोहर (यूनेस्को संरक्षित) खजुराहो के मंदिरों की सेहत नासाज है। मंदिर के पत्थर नमी का शिकार हैं और ये कमजोर पड़ते जा रहे हैं। गंभीर यह कि मंदिर समूह के संरक्षण की दिशा में अभी तक कारगर उपाय भी नहीं अपनाए जा सके हैं। यह बात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की देहरादून स्थित विज्ञान शाखा के निदेशक डॉ. वीके सक्सेना के शोध पत्र में सामने आई। खजुराहो की हालत में सुधार के लिए विभाग ने पत्थरों के सैंपल (नमूने) भी लिए हैं।
देहरादून स्थित एएसआइ की विज्ञान शाखा में चल रही 'इमर्जिंग ट्रेंड्स इन दि कंजर्वेशन ऑफ कल्चरल हेरिटेज' कार्यशाला के समापन अवसर पर निदेशक डॉ. वीके सक्सेना ने शोध पत्र के माध्यम से मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो की दशा पर प्रकाश डाला। डॉ. सक्सेना के अनुसार खजुराहो के मंदिर एक के ऊपर एक कर रखे गए पत्थरों के ब्लॉक से बनाए गए हैं। पत्थरों को लोहे के क्लैंप (एक तरह का तार) से जोड़ा गया है। इस कारण मंदिर में बारिश का पानी आसानी से घुस जाता है, जिससे नमी की मात्रा बढ़ जाती है। नमी को बाहर निकालने के लिए मंदिरों में हवा के प्रवेश के मार्ग भी सीमित हैं। इसके चलते नमी बाहर नहीं निकल पाती और पत्थरों में घुसकर उन्हें कमजोर बनाती रहती है। सैकड़ों साल की इस अवधि पत्थरों पर ही नमी का असर नहीं पड़ा, बल्कि यहां की ऐतिहासिक मूर्तियां पर खराब हो रही हैं। पत्थरों पर पड़े असर के आकलन के लिए की गई सैंपलिंग की जांच भी शुरू कर दी गई है। रासायनिक परीक्षण कर पता लगाया जा रहा है कि खजुराहो के संरक्षण में किस तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाना संभव होगा।
खजुराहो मंदिर समूह की खासियत
खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। यह क्षेत्र चंदेल सामा्रज्य की प्रथम राजधानी था। चंदेल राजाओं ने 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच यहां के मंदिरों का निर्माण कराया। यहां बड़ी संख्या में हिंदू व जैन मंदिर हैं। इसी खजुराहो को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है और यहां के मंदिर विश्वभर में यह मुड़े हुए पत्थरों के लिए प्रसिद्ध हैं। खासकर काम कलाओं को मंदिरों को बेहद खास ढंग से उभारा गया है।
खजुराहो के खास मंदिर
लक्ष्मी, वराह, लक्ष्मण, कंदरिया महादेव, जगदंबा देवी, सूर्य (चित्रगुप्त), विश्वनाथ, नंदी, पार्वती, वामन, जावरी, जैन मंदिर आदि।
पढ़ें:-गंगा की धारा अवरुद्ध होने पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार से मांगा जबाब
खजुराहो मंदिर समूह की खासियत
खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। यह क्षेत्र चंदेल सामा्रज्य की प्रथम राजधानी था। चंदेल राजाओं ने 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच यहां के मंदिरों का निर्माण कराया। यहां बड़ी संख्या में हिंदू व जैन मंदिर हैं। इसी खजुराहो को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है और यहां के मंदिर विश्वभर में यह मुड़े हुए पत्थरों के लिए प्रसिद्ध हैं। खासकर काम कलाओं को मंदिरों को बेहद खास ढंग से उभारा गया है।
खजुराहो के खास मंदिर
लक्ष्मी, वराह, लक्ष्मण, कंदरिया महादेव, जगदंबा देवी, सूर्य (चित्रगुप्त), विश्वनाथ, नंदी, पार्वती, वामन, जावरी, जैन मंदिर आदि।
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