सरहद के निगहबान जवानों के बच्चे 'नायक' बनकर उभरे
पहाड़ का फौज से पीढ़ियों का नाता है। सरहद के निगहबान जवानों के बच्चे 'नायक' बनकर उभरे। अफसर बेटे के जज्बे को सैल्यूट करते पिता की आंखें नम थी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 11 Jun 2017 05:19 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: पहाड़ का फौज से पीढ़ियों का नाता है। यही वजह है कि मन में उफनती ख्वाहिशों ने न सिर्फ अपना मुकाम पाया, बल्कि अपनों की चाहत भी मुकम्मल की। सरहद के निगहबान जवानों के बच्चे 'नायक' बनकर उभरे। अफसर बेटे के जज्बे को सैल्यूट करते पिता की आंखें नम थी।
पौड़ी जिले के मनी गांव पौड़ी पंकज पटवाल ने जिंदगी का पहला सबक पिता से लिया। पिता लांस नायक (रिटा.) प्रेम सिंह ने हमेशा एक योद्धा की तरह अडिग रहने की सीख दी। तभी पंकज ने जीवन की चकाचौंध को कभी अपने अरमानों के आड़े नहीं आने दिया। अब पटवाल परिवार की तीसरी पीढ़ी फौज में है। उनके दादा सुरेंद्र सिंह भी सेना से नायक रिटायर थे। ऐसी ही कहानी ऊधमसिंह नगर जिले के पंतनगर निवासी देवेंद्र सिंह की है। उनका भी नाता एक सैन्य परिवार से है। पिता लाल सिंह फौज से सूबेदार रिटायर हैं। उनके लिए यह लम्हा जग जीत लेने जैसा था। बेटे ने वर्ष 2013 में बतौर जवान फौज ज्वाइन की और अब अपनी लग्न के बूते अफसर बन गया है।
परम्परा के पथ पर पग भरने वालों में मयकोटी गांव (रुद्रप्रयाग) के आदर्श उनियाल भी शामिल हैं। उनके पिता अनंत प्रकाश नौसेना से सेवानिवृत्त हैं। वह बताते हैं कि यूनिट अफसरों का आकर्षण उन्हें प्रभावित करता था। तमन्ना बेटे को अधिकारी बनते देखने की थी और उनकी इच्छा का बेटे ने सम्मान किया। ग्राम त्रिलोकपुर (कोटद्वार, जिला पौड़ी गढ़वाल) के सपूत रविंद्र सिंह रावत भी पिता के नक्शे कदम पर हैं। पिता वीरेंद्र रावत फौज से सूबेदार मेजर रिटायर हुए। वह बताते हैं कि वर्ष 2011 में उनका बेटा फौज में जवान भर्ती हुआ। सेना यह अवसर देती कि जवान अफसर बन सके। अपने परिश्रम के बूते रविंद्र ने मुकाम हासिल कर लिया। ग्राम लदोली रुद्रप्रयाग निवासी नवीन रावत का भी सैन्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता सहत सिंह रिटायर सूबेदार हैं। नवीन ने भी एसीसी के जरिए ही अफसर बनने की राह पर कदम रखा।
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