नारी सशक्तीकरण और सुशिक्षित समाज की नींव मजबूत कर रहा ये आश्रम, पढ़ें खबर
दक्षिण भारत से आए युवा तपस्वी को इस कदर झकझोरा कि वह कंदराएं छोड़ जागृति की मशाल ले निकल पड़ा और समय के साथ यह मशाल मिसाल बन गई।
किरण शर्मा, देहरादून। कुरीतियों से कसमसाते पहाड़ों के लिए यह नव जागरण की बयार थी। छुआछूत, बलि प्रथा, महिलाओं के हालात और अशिक्षा से फैले अंधकार ने दक्षिण भारत से आए युवा तपस्वी को इस कदर झकझोरा कि वह कंदराएं छोड़ जागृति की मशाल ले निकल पड़ा और समय के साथ यह मशाल मिसाल बन गई। साठ के दशक में केरल से आए स्वामी मन्मथन ने जन आंदोलन कर न केवल टिहरी जिले के प्रसिद्ध चंद्रबदनी मंदिर में सदियों से चली आ रही बलि प्रथा बंद करा दी, बल्कि गढ़वाल विश्वविद्यालय की नींव डालने में भी अहम् भूमिका निभाई।
15 वर्ष तक गढ़वाल में कई जन आंदोलनों का नेतृत्व कर वर्ष 1977 में स्वामी मन्मथन ने टिहरी जिले के अंजनीसैंण में श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम की नींव रखी। मकसद था 'खुशहाल बच्चा, खुशहाल परिवार और खुशहाल समाज'। यही है संस्था का सूत्र वाक्य। कारवां आगे बढ़ा तो अस्तित्व में आए महिला समूह और बाल मंच। महिला समूह के जरिये ग्रामीण महिलाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देने का काम तो शुरू हुआ ही, इसके अलावा उन्हें सामाजिक रूप से जागरूक करने का बीड़ा भी उठाया गया। वक्त बीता तो गांवों की तस्वीर और तकदीर में बदलाव नजर आने लगा।
श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम की अध्यक्ष 73 साल की चंखी देवी इसका उदाहरण हैं। पौड़ी जिले के थापली गांव रहने वाली चंखी ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। 15 साल की उम्र में विवाह हुआ, लेकिन यह सुख भी उनकी किस्मत नहीं था और एक साल बाद ही पति का निधन हो गया। 19 साल की आयु में वह भुवनेश्वरी महिला आश्रम से जुड़ीं और पीछे मुड़कर नहीं देखा। समाज सेवा को लक्ष्य बनाने वाली चंखी आज खुद ही संस्था की प्रमुख हैं। वह बताती हैं, 'आश्रम से महिलाओं के 750 समूह, 120 बालमंच और किशोरों के 200 समूह जुड़े हैं। आश्रम न केवल नारी सशक्तीकरण को दिशा दे रहा है, बल्कि सुशिक्षित समाज की नींव भी मजबूत कर रहा है।' चंखी कहती हैं कि आज आश्रम पहाड़ के 15 हजार गांवों तक पहुंच चुका है।
संस्था के सचिव ज्ञान सिंह कहते हैं, 'अब हमारा फोकस गांवों से पलायन रोकना है और इसके लिए जरूरी है स्थानीय स्तर पर आजीविका के संसाधनों का विकास। इस दिशा में काम चल रहा है।'
यूं बदली तस्वीर
-110 गांवों में स्वच्छ पेयजल।
-गांवों में 40 हजार शौचालयों का निर्माण।
-जैविक कृषि प्रोत्साहित करने को 16 हजार खाद पिट का निर्माण।
-वनों के संरक्षण के लिए ग्रामीणों को चार हजार गैस कनेक्शन दिलाए।
-ग्रामीण क्षेत्रों में 2500 कुक्कट पालन केंद्र खोले गए और 150 उन्नत नस्ल की गायें दी गईं।
-गुणवत्तापरक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 200 मॉडल स्कूल का संचालन।
-तीन सौ पंचायत प्रतिनिधियों को पंचायत राज से संबंधित प्रशिक्षण।
-चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी में 350 बालवाड़ी कार्यकत्रियों को प्रशिक्षण।
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