पहले युद्ध में दिखाई दिलेरी, अब खेल में बिखेर रहे जलवा
कारगिल युद्ध का यह हीरो अब खेल के मैदान में भी जलवे बिखेर रहा है। कैप्टन सतेंद्र सांगवान युद्ध में दिव्यांग होने के बावजूद अब खेल में मेडल बटोर रहे हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: एक सैनिक और सच्चे नागरिक के लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं होता। कितनी भी कठिनाइयां क्यों न सामने आएं, वह अपने जज्बे और हौसले को हारने नहीं देता। आज हम आपको ऐसे ही एक हीरो से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसने पहले तो सैनिक के रूप में देश की खातिर कारगिल युद्ध में अपनी जान तक दांव पर लगा दी और अब शारीरिक अक्षमता के बावजूद खेल प्रतियोगिताओं में देश का मान बढ़ा रहा है।
कारगिल युद्ध में यह जवान माइनस 19 डिग्री सेल्सियस तापमान में दुश्मनों पर आग बनकर टूट पड़ा था और दायां पैर गंवाने के बाद भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। इस शारीरिक अक्षमता ने भले ही उन्हें रण के मैदान से दूर कर दिया, मगर देश के प्रति दिलो-दिमाग में जो जज्बा कूट-कूट कर भरा था, वह उन्हें खेल के मैदान में ले आया।
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खेलों में यह सपूत देश की झोली में पांच स्वर्ण, चार रजत व एक कांस्य पदक डाल चुका है, जो यह बताने के लिए काफी है कि हौसलों की कभी हार नहीं होती। आसमान छूते हौसले की यह कहानी है रिटायर्ड कैप्टन सतेंद्र सांगवान की।
सांगवान की कहानी उनकी जुबानी
आइए जानते हैं उन्होंने किस तरह देश के लिए पहले रण और फिर खेल के मैदान में अपना जौहर दिखाया। बकौल कैप्टन सांगवान कारगिल युद्ध में हमें काली पहाड़ी को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने के आदेश मिले। सेकेंड राजपूताना रायफल के साथ मिलकर हमने अपनी 16-ग्रेनेडियर रेजीमेंट के कमांडो के साथ 29 जून 1999 को पहाड़ी पर बनी पाकिस्तानी चौकी नष्ट कर उस पर कब्जे का प्रयास किया।
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दुश्मनों की भारी गोलाबारी में राजपूताना रायफल के तीन अफसर शहीद हो गए। अंधेरे में यह तक पता नहीं चल रहा था कि फायरिंग कहां से हो रही है। इसी बीच मुझे दाएं छोर से अटैक करने का आदेश मिला। कमांडो के साथ मैं पहाड़ी पर चढऩे लगा।
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काली पहाड़ी से लगभग 100 मीटर पहले आपरेटर को छोड़ दिया। कुछ दूरी पर दुश्मन नजर आए तो मैंने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, यह देख दुश्मन भाग खड़े हुए। रात के साढ़े 11 बज चुके थे। अंधेरे में बामुश्किल 10 मीटर ही नीचे की ओर चला था कि दायां पैर माइन पर पड़ गया।
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मैं धमाके के साथ कुछ मीटर हवा में उड़ा और एक चट्टान से जा टकराया। उठने का प्रयास किया तो देखा कि दायां पैर ब्लास्ट से उड़ चुका था। मेरे कराहने की आवाज सुनकर जवान मेरी तरफ लपके, लेकिन मैने उन्हें पहाड़ी पर कब्जे के आदेश दिए। टांग गंवाने के बावजूद मुझे मिशन पूरा करने की खुशी थी।
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खेल में बिखेर रहे हैं जलवे
सेना से रिटायरमेंट के बाद उन्हें ओएनजीसी (देहरादून) में सेवा का मौका मिला और उन्होंने बैडमिंटन रैकेट थामकर यहां भी देश सेवा की राह चुनी। राष्ट्रीय स्तर पर सूबे का प्रतिनिधित्व कर रहे कैप्टन सांगवान पैराओलंपिकबैडमिंटन में नेशनल चैंपियन हैं। पैराओलंपिकबैडमिंट की विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में वह तमाम पदक देश के नाम कर चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न अन्य खेल प्रतियोगिताओं में भी उनका हौसला देश का मान बढ़ा रहा है। हाल ही में वह एवरेस्ट भी फतह कर चुके हैं।
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