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उत्तराखंड के जांबाज दोनों शहीदों को दी अंतिम विदाई, बाजार रहे बंद

पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ में एएसआइ मोहनलाल रतूड़ी और वीरेंद्र की शव यात्राओं में जन सैलाब उमड़ पड़ा। दोनों का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।

By BhanuEdited By: Updated: Sat, 16 Feb 2019 09:16 PM (IST)
उत्तराखंड के जांबाज दोनों शहीदों को दी अंतिम विदाई, बाजार रहे बंद
देहरादून, जेएनएन। पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ में एएसआइ मोहनलाल रतूड़ी का पार्थिव शव दून पहुंच गया। इस दौरान उनके घर में अंतिम दर्शन को जनसैलाब उमड़ पड़ा। हरिद्वार में सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई। वहीं, सुबह से दोपहर तक के लिए दून के साथ ही चंपावत और अल्मोड़ा बाजार बंद कर दिए गए। वहीं खटीमा के शहीद वीरेंद्र राणा का शव भी उनके गांव पहुंच गया। इसके बाद अंतिम संस्कार कर दिया गया। 

शहीद का पार्थिव शरीर पहुंचते ही परिवार में कोहराम मच गया। बच्चे और शहीद की पत्नी तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर पर चिपक गए। घर में सभी का रो-रोकर बुरा हाल है। शहीद का पार्थिव शरीर को घर में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। वहीं, मौके पर सांत्वाना देने और शहीद के अंतिम दर्शन को पहुंची भीड़ ने पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ जमकर नारे लगाए। साथ ही जब तक सूरज चांद रहेगा, मोहन तेरा नाम लगेगा, ये नारा भी गूंजता रहा। 

इस मौके पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, डीजीपी अनिल रतूड़ी, डीजी अशोक कुमार, विधायक विनोद चमोली, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी शहीद के घर पहुंचे। यहां लोगों ने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद सीएम ने स्वयं शहीद के पार्थिव शरीर को कंधा दिया। हरिद्वार में शहीद का अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान उनके बड़े बेटे शंकर ने मुखाग्नि दी। 

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शहीद मोहनलाल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। कहा कि शहीदों के परिजनों को सरकार नोकरी देगी। इसके लिए ज़िलाधिकरियों को दो नियुक्ति के अधिकार दिए गए हैं। वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि पूरा देश गम और गुस्से में है। हम सब एक साथ हैं। केंद्र सरकार को आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने चाहिए।

बंद रहे दून के बाजार बंद

पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हुए सैनिकों के शोक में शनिवार को दून में व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। दून उद्योग व्यापार मंडल के आह्वान पर व्यापारियों ने बाजार बंद में शामिल रहने का निर्णय लिया था। वहीं, बार एसोसिएशन देहरादून ने भी विधिक कार्यों से विरत रहने का एलान किया है। बाजार बंद को 260 से ज्यादा सामाजिक संगठनों ने भी समर्थन दिया है।

पांच घंटे तक पेट्रोल पंप भी बंद 

देहरादून पेट्रोल पंप वेलफेयर एसोसिएशन ने भी शहीद सैनिकों के शोक में पांच घंटे के लिए पेट्रोल पंप बंद रखने का एलान किया है। एसोसिएशन की बैठक में अध्यक्ष आशीष मित्तल व महामंत्री सचिन गुप्ता ने कहा कि देहरादून, विकासनगर, मसूरी के पेट्रोल पंप सुबह नौ से दोपहर दो बजे तक बंद रखे गए।

गुरुवार को शहीद हुए थे उत्तराखंड के दो लाल 

देश की रक्षा में उत्तराखंड के लाल हमेशा शहादत देने में आगे रहे हैं। गुरुवार को पुलवामा के गोरीपोरा (अवंतीपोरा) में सीआरपीएफ बटालियन पर हुए आतंकी हमले में भी प्रदेश के दो लाल शहीद हुए हैं। इनमें उत्तरकाशी, बनकोट के मूल निवासी और हाल निवासी कांवली रोड, एमडीडीए कॉलोनी के एएसआइ 55 वर्षीय मोहनलाल रतूड़ी भी शहीद हुए हैं। मोहन लाल रतूड़ी रामपुर ग्रुप सेंटर की 110 बटालियन में जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर रोड गश्त ड्यूटी में तैनात थे। 

मोहनलाल की शहादत की खबर सुनते ही परिजनों में कोहराम मचा है।  मोहनलाल की पत्नी सरिता देवी, बेटा शंकर, श्रीराम, बेटी अनुसूइया, वैष्णवी और गंगा के आंखों के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे हैं। रोते हुए सरिता देवी ने बताया कि 27 दिसंबर को उनके पति मोहनलाल एक माह की छुट्टी बिताकर ड्यूटी गए थे। जहां फोन कर उन्होंने जल्द घर आने की बात कही थी। 

देश की रक्षा को हर वक्त आगे रहते थे मोहनलाल 

बनकोट निवासी मोहनलाल रतूड़ी वर्ष 1988 में सीआरपीएफ के लुधियाना कैंप में भर्ती हुए थे। इसके बाद मोहनलाल ने श्रीनगर, छत्तीसगढ़, पंजाब, जालंधर , जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकी और नक्सल क्षेत्र में भी ड्यूटी की है। परिजनों ने बताया कि मोहनलाल हमेशा ही देश रक्षा के ऑपरेशन में आगे रहते थे। 

एक साल पहले ही मोहनलाल की झारखंड से पोस्टिंग पुलवामा हुई थी। मोहनलाल के बड़े बेटे शंकर रतूड़ी ने बताया कि पिता हमेशा देश की रक्षा को लेकर उनसे बातें करते थे। छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र इनके कई किस्से मोहनलाल ने बच्चों को सुनाए थे। 

वीआरएस लेने से किया मना 

दिसंबर में जब मोहनलाल घर पहुंचे थे तो उनके भतीजे सूर्यप्रकाश रतूड़ी, दामाद सर्वेश नौटियाल आदि ने उन्हें वीआरएस लेने का सुझाव दिया। मगर, मोहनलाल ने कहा कि देश को हमारी जरूरत है। देश की सेवा पूरी करने के बाद ही वह सेवानिवृत्ति होंगे। इस दुख की घड़ी में परिजनों को उनकी देश के लिए दी गई शहादत पर गर्व है। 

पति की शहादत से 24 घंटे तक बेखबर रहीं सरिता

पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हुए  आतंकी हमले की खबर से हर कोई चिंतित था। दून निवासी मोहनलाल रतूड़ी भी पुलवामा में तैनात थे। जब पुलवामा में आतंकी हमले की सूचना मोहनलाल के परिजनों को टीवी के माध्यम से मिली तो पत्नी सरिता देवी पति की सलामती के लिए पूरी रात ईश्वर से प्रार्थना करती रही। 

पति का फोन न लगने से रातभर बेचैनी रही। सुबह भी वह बच्चों को पति के सकुशल होने का ढांढस बांधती रही। मगर, शुक्रवार दोपहर को जैसे ही सीआरपीएफ के अफसर उनके घर पहुंचे तो सरिता टूट गई और रोने-बिलखने लगी। सरिता की सारी उम्मीदें और सपने पलभर में बिखर गए। 

जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर सीआरपीएफ पर आतंकी हमले की सूचना से हर कोई स्तब्ध है। सूचना पूरे देश में आग की तरह फैली। टीवी और सोशल मीडिया ने पल-पल की खबर दी। लेकिन फोन न लगने और पुख्ता सूचना न मिलने पर परिजन अपनों की सलामती की दुआ करते रहे। 

इसी तरह कांवली रोड एमडीडीए कॉलोनी निवासी मोहनलाल रतूड़ी की पत्नी सरिता भी हादसे की सूचना के बाद चिंतित थी। सरिता ने कई बार पति के मोबाइल पर फोन किया लेकिन वह हमेशा बंद ही मिला तो उसकी चिंता ओर बढ़ गई। रात भर बच्चों को ढांढस बंधाया और ईश्वर से पति की सलामती की प्रार्थना करती रही। 

सुबह जब दामाद सर्वेश नौटियाल घर आए तो उनसे पति की कुशलता की चिंता जाहिर की। सर्वेश ने अपने साले श्रीराम को ससुर की शहादत की सूचना दी लेकिन सासु सरिता को कुछ नहीं बताया। इसी बीच घर के बाहर भीड़ लगने लगी तो सरिता देवी ने बच्चों से भीड़ लगने का कारण पूछा। बच्चों ने उन्होंने बताया कि पुलवामा घटना को लेकर मीडिया वाले आए हैं। 

दोपहर करीब दो बजे सीआरपीएफ के डीआइजी दिनेश उनियाल के साथ अन्य अधिकारी घर पहुंचे तो सरिता सबकुछ समझ गई। उसके बाद वह रोने-बिलखने लगी। बच्चे भी मां से लिपट कर रोने लगे। घर में कोहाराम मच गया। 

हंसते-खेलते परिवार पर टूट गया दुखों का पहाड़  

मोहनलाल की शहादत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। 30 साल से मोहनलाल सीआरपीएफ में तैनात होकर देश की रक्षा में अपना योगदान दे रहे थे। ड्यूटी के दौरान घर परिवार के लिए वह कम ही समय दे पाए। अभी तक शहीद मोहनलाल अपना घर तक नहीं बना पाए थे, क्योंकि वह बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उन्हें काबिल बनाना चाहते थे। 

उनका कहना था कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद घर बनाएं अभी देश सेवा कर लें। अब सरिता देवी के ऊपर बच्चों की पढाई के साथ शादी की तमाम जिम्मेदारी आ गई है। बिना नौकरी के घर कैसे चलेगा यह भी परिजनों को चिंता सता रही है। 

बेटी बोली सर मेरे पापा लौटा दो... 

शहीद मोहनलाल की छोटी बेटी गंगा बार-बार पिता को बुला रही थी। इस बीच सीआरपीएफ अधिकारी गंगा को गले लगाते हुए समझाने लगे। मगर, गंगा ने रोते हुए कहा, सर मेरे पापा को लौटा दो। गंगा ने कहा कि मुझे सिर्फ पापा चाहिए। इससे आस-पास खड़े लोगों की आंखें भी नम हो गई। 

परिवार के बारे में

मूल रूप से बनकोट (दिचली) के रहने वाले मोहनलाल का परिवार पिछले तीन सालों से किराए के मकान में दून में रहता है। उनकी बड़ी बेटी अनुसूइया की शादी 2012 में सर्वेश नौटियाल से हुई। बेटा शंकर ऋषिकेश में योगा शिक्षक है। दूसरी बेटी वैष्णवी बीए कर रही है। गंगा 12वीं की परीक्षा देगी। छोटा बेटा श्रीराम नवीं में पढ़ रहा है। दोनों केंद्रीय विद्यालय आइटीबीपी सीमाद्वार में पढ़ते हैं। 

गुरुवार सुबह आठ बजे पत्नी को की थी अंतिम कॉल 

पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हुए मोहनलाल रतूड़ी ने बीती गुरुवार सुबह आठ बजे पत्नी सरिता देवी को कॉल की थी। फोन पर उन्होंने घर परिवार की कुशलक्षेम पूछी। इसके बाद मोहनलाल ने फोन काटते हुए फिर बात करने की बात कही थी।  

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा सेक्टर में तैनाती के बाद सीआरपीएफ के एएसआइ मोहनलाल अक्सर सुबह और देर शाम पत्नी और बच्चों से बात करते थे। घटना के रोज सुबह करीब आठ बजे मोहनलाल ने फोन किया तो पत्नी से बात हुई। बच्चों की पढ़ाई और अन्य जानकारी ली। दामाद सर्वेश नौटियाल ने बताया कि उन्होंने करीब चार मिनट तक बात की थी। 

इसके बाद जब टीवी के माध्यम से पुलवामा में आतंकी हमले की सूचना मिली तो परिजन लगातार उनका फोन मिलाते लेकिन फोन नही मिला। फोन न मिलने पर छोटा बेटा श्रीराम फफक-फफक कर रोने लगा। उसे नहीं पता था कि सुबह आई कॉल उसके पिता की आखिर कॉल साबित होगी। 

वीरेंद्र का पार्थिव शरीर घर पहुंचते ही पूरा गांव रो पड़ा

वीरेंद्र का पार्थिव शरीर घर पहुंचते ही पूरा गांव शोक में डूब गया। हजारों की भीड़ शहीद को श्रद्धांजलि देने उनके गांव पहुंची। काठगोदम सीआरपीएफ से 35 जवानों की बटालिन अंतिम सलामी को गांव पहुंची। मौजूद भीड़ के वीरेंद्र जिंदाबाद, वीरेंद्र अमर रहे के नारो से गांव गूंज गया। इस दौरान केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा विधायक पुष्कर सिंह धामी, पूर्व विधायक गोपाल सिंह राणा जिलाधिकारी डॉ नीरज खैरवाल, एसएसपी बरिंदर सिंह, एसडीएम विजय नाथ शुक्ला सीओ कमला बेस्ट,  कोतवाल संजय पाठक आदि मौजूद रहे। इसके बाद शव यात्रा में सैकड़ों लोग पहुंचे। शहीद का अंतिम संस्कार गांव के ही प्रतापपुर नगला श्मशान घाट पर किया गया। शहीद के ढाई वर्षीय पुत्र बयान.  भतीजे कमल सिंह, राहुल, पुष्पेंद्र, पंकज मुखाग्नि दी। 

गम व गुस्से से चीख उठा शहीद बीरेंद्र का गांव

सीआरपीएफ के जवान बीरेंद्र राणा की शहादत की सूचना से उधमसिंह नगर जिले के मोहम्मदपुर भुड़िया गांव में गुस्सा व मातम का माहौल है। शहीद के साथी ने परिजनों को शहादत की जानकारी दी, जिसके बाद पूरा गांव गमजदा है। परिजनों को सांत्वना देने के लिए लोग उमड़ रहे हैं। लोग भारत सरकार से आतंकियों को जल्द सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं।

खटीमा से 18 किलोमीटर दूर है मोहम्मदपुर भुड़िया गांव। 80 वर्षीय किसान दीवान दीवान सिंह राणा के तीन बेटों में सबसे छोटे बीरेंद्र राणा (35) आतंकी हमले में शहीद हुए हैं। बीरेंद्र गांव के स्कूल से दसवीं पास करने के बाद 2004 में सीआरपीएफ में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हो गए थे। 

वर्तमान में वह श्रीनगर क्षेत्र में तैनात थे। दीवान ङ्क्षसह के सबसे बड़े बेटे जयराम ङ्क्षसह बीएसएफ से दो साल पहले सेवानिृवत्त हो चुके हैं। वहीं मझले पुत्र राजेश खेती करते हैं। बीरेंद्र शहादत से दो दिन पहले ही 20 दिन की छुट्टी बिताकर लौटे थे।

गुरुवार को जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोर के पास गोरीपारा में हुए आंतकी हमले की खबर गांव पहुंची तो परिजन ङ्क्षचतित जरूर थे, लेकिन उम्मीद थी कि उनका बेटा सकुशल है। जैसे-जैसे दिन ढलता गया घर पर लोगों के कुशलक्षेम पूछने को फोन घनघनाने लगे। रात्रि में ही गांव वालों को शहादत का पता चल गया, लेकिन परिजन को इस पर विश्वास नहीं हो रहा था। शुक्रवार की सुबह आठ बजे बीरेंद्र की पत्नी रेनू के पास फोन आया। कॉलर ने खुद को बीरेंद्र का दोस्त प्रेम बता कहा कि वह कल घर आएगा। दोस्त बीरेंद्र ने देश के लिए कुर्बानी दी है। इतना सुनते ही पत्नी गश खाकर वहीं गिर पड़ी। बीरेंद्र का ढाई वर्षीय बेटा बयान ङ्क्षसह व चार वर्षीय बेटी रुई है। 

मोदी जी अब बदला लो बदला...

मोदी जी बदला लो बदला, कब तक हम सहते रहेंगे...। कब तक हमारे बेटे ऐसे मरते रहेंगे। ये शब्द शहीद बीरेंद्र के 80 वर्षीय पिता दीवान सिंह राणा के हैं। बेटे की शहादत की सूचना पर पिता की नजर बेटे बीरेंद्र के मासूम बच्चों की तरफ नजर पड़ी तो वह फफक पड़े। उन्होंने कहा कि बीरेंद्र उनका सबसे अधिक ख्याल रखता था। 

कभी सोचा नहीं था कि वक्त उनके साथ इस तरह पेश आएगा। पिता ने कहा कि 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री जी यदि अब भी चुप रहे तो मुझे अपने बेटे की शहादत का मलाल रह जाएगा। उन्होंने कहा कि मैं सपरिवार देश की आन, बान और शान के लिए तैयार हूं, लेकिन प्रधानमंत्री जी बदला तो लीजिए। 

चिंता मत करना रेनू मैं जम्मू पहुंच गया हूं...

शहीद बीरेंद्र की पत्नी रेनू को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे हुआ। 14 फरवरी की सुबह आठ बजे बीरेंद्र ने रेनू से फोन पर बात की थी। बताया था 'मैं जम्मू पहुंच गया हूं अपना ध्यान रखना, चिंता मत करना। जब से उसे शहादत की सूचना मिली, वह बेसुध है। होश में आने पर वह बच्चों के प्रति चिंता व्यक्त कर रही है। समझ नहीं पा रही है कि बच्चों को कैसे संभालेगी। रेनू का कहना है कि पति की शहादत बेकार नहीं जानी चाहिए। 

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