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केदारनाथ मंदिर की है अनोखी कहानी, भूमि में समा गए थे शिव

उत्‍तराखंड की रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित केदारनाथ मंदिर की अनोखी कहानी है। पांडवों के पीछा करने पर भगवान शिव यहां भूमि में समा गए थे।

By sunil negiEdited By: Updated: Fri, 22 Jul 2016 06:30 AM (IST)
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देहरादून, [सुनील नेगी]: देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

'स्कंद पुराण' में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, 'हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है।' केदारखंड में उल्लेख है, 'अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्' अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है।
PICS: केदारनाथ में भूमि में समा गए थे शिव
नर और नारायण ऋषि ने की थी तपस्या
पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।



पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे भगवान शंकर
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।


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केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80 वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। मंदिर की छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है।

सावन के महीने उमड़ते हैं कांवड़िये

सावन के महीने में कांवड़िये केदारनाथ में जल चढ़ाने को उमड़ते हैं। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।

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छह माह तक जलता रहता है दीपक

मंदिर के कपाट खुलने का समय : दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।



भीषण आपदा को झेल गया था मंदिर
केदारनाथ में 2013 में आयी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी और हजारों लोग देखते ही देखते उस पानी की लहर में समा गए थे। लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। मंदिर अपनी जगह खड़ा है।


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ऐसे पहुंचे

  • यात्री सुविधा: गौरीकुंड तक यात्रा मार्ग पर रहने के लिए जीएमवीएन व निजी विश्राम गृह। केदारनाथ पैदल मार्ग व केदारनाथ में फिलहाल अस्थाई टेंट व्यवस्था।
  • वायु मार्ग: जौलीग्रांट हवाई अड्डे तक हवाई सेवा उपलब्ध। फाटा व गुप्तकाशी में हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाने की सुविधा।
  • रेल मार्ग : ऋषिकेश व देहरादून तक ही रेल सुविधा उपलब्ध है।
  • सड़क मार्ग : ऋषिकेश से श्रीनगर व रुद्रप्रयाग होते हुए 214 किमी। मुनकटिया से 19 किमी पैदल। आपदा के बाद केदारनाथ की डगर काफी मुश्किल हो गई है। गौरीकुंड से पैदल 23 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर ही भक्त यहां पहुंच सकते हैं।
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