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उत्तराखंडः पीडीएफ विधायकों पर टिकी है उत्तराखंड की सियासत

सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड की सियासत अब पीडीएफ विधायकों की सदस्यता पर टिक गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों खुद को फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार होने का दावा कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि पीडीएफ विधायक ही सियासी समीकरण का केंद्र रहेंगे।

By BhanuEdited By: Updated: Sat, 07 May 2016 06:30 AM (IST)
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देहरादून। सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड की सियासत अब पीडीएफ विधायकों पर टिक गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों खुद को फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार होने का दावा कर रहे हैं। इसके बावजूद सच्चाई यह है कि पीडीएफ विधायक ही इस सियासी समीकरण का केंद्र रहेंगे।

दस मई को होने वाले फ्लोर टेस्ट को लेकर उत्तराखंड में दोनों ही दलों ने अपने-अपने विधायकों की किलेबंदी शुरू कर दी है। सभी से संपर्क करके उन्हें एकजुट रखने का प्रयास हर स्तर पर किया जा रहा है। सियासी हलकों से आ रही खबरों के मुताबिक भाजपा कांग्रेस दोनों ने ही अपने विधायकों को साथ रखने के लिए खास रणनीतिकारों को इस काम को लगाया है। बेचैनी दोनों खेमों में बागी विधायकों को लेकर है।
निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हम स्वागत करते हैं। हम फ्लोर टेस्ट को तैयार हैं। पहले भी राज्यपाल के समक्ष और फिर हाइकोर्ट के निर्देश पर बहुमत साबित करने को तैयार थे। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हम अपना बहुमत साबित कर देंगे।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का कहना है कि कांग्रेस पूरी तरह से फ्लोर टेस्ट को तैयार है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि हम बहुमत साबित करेंगे। वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हैं और फ्लोर टेस्ट को तैयार हैं। उम्मीद है कि कांग्रेस विधायक अंतरात्मा की आवाज पर फ्लोर टेस्ट में मतदान करेंगे।
बता दें कि बागी विधायकों की सदस्यता का मसला अभी नैनीताल हाई कोर्ट में विचाराधीन है। बागी विधायकों ने स्पीकर के सदस्यता रद करने के फैसले को चुनौती दी हुई है। इस पर कई दौर की सुनवाई हो चुकी है। आगे की सुनवाई हाई कोर्ट में शनिवार को होनी है। वहीं सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को झटका लग चुका है। बागी विधायक दस मई को होने वाले शक्ति परीक्षण में मतदान नहीं कर सकेंगे। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि स्पीकर का फैसला सही यो या गलत, लेकिन वे मताधिकार से वंचित रहेंगे।
पढ़ें- उत्तराखंड: बागी विधायकों की सदस्यता मामले में सुनवाई सात मई को
ऐसे में कांग्रेस और भाजपा दोनो की निगाह प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट (पीडीएफ) के विधायक पर टिकी है। हालांकि पीडीएफ विधायक कांग्रेस के साथ एकजुट खड़े हैं। ऐसे में कांग्रेस को कुछ राहत नजर आ सकती है।
नौ बागी विधायक हटाकर 61 सदस्यों की संख्या पर बहुमत साबित करने का गणित बना तो कांग्रेस के पास बागियों को हटाकर 27 विधायक हैं। भाजपा के पास निलंबित एक विधायक समेत 28 की संख्या है। बसपा के पास दो, उक्रांद के पास एक और तीन निर्दलीय विधायक हैं। बसपा, उक्रांद और निर्दलीय पीडीएफ के बैनर तले एकजुट हैं। इस तरह पीडीएफ के पास छह विधायक हैं। यदि छह विधायक कांग्रेस के साथ खड़े होते हैं तब कांग्रेस की संख्या बागियों को हटाकर 33 ही बनती है। वहीं भाजपा का प्रयास है कि पीडीएफ विधायक और कांग्रेस में सतपाल महाराज खेमे के विधायक उसके पक्ष में खड़े हो जाएं। ऐसे में भाजपा बार-बार अंतरात्मा की आवाज पर कांग्रेस विधायकों से मताधिकार का प्रयोग करने का राग अलाप रही है।
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