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उत्तराखंड राज्य संवारने को फिर से संघर्ष की दरकार

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की पहल पर देहरादून नगर निगम सभागार में आयोजित 'उत्तराखंड विमर्श' में राज्य को संवारने के लिए फिर से संघर्ष पर जोर दिया गया।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 02 Nov 2017 09:13 PM (IST)
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उत्तराखंड राज्य संवारने को फिर से संघर्ष की दरकार

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड अब युवावस्था में कदम रखने जा रहा है, लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं, जैसे राज्य गठन के वक्त थे। पर्वतीय क्षेत्रों में न तो सुविधाएं उपलब्ध पाईं और न रोजगार के अवसर ही सृजित हो पाए। नतीजतन, वहां से पलायन की रफ्तार थमने की बजाए और तेजी से बढ़ी है। गुजरे 17 सालों में राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड अब तक नहीं बन पाया है। लिहाजा, राज्य को बचाने और संवारने के लिए फिर से जोरदार संघर्ष की आवश्यकता है।

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की पहल पर देहरादून नगर निगम सभागार में आयोजित 'उत्तराखंड विमर्श' में यह बात उभरकर सामने आई। विमर्श में विभिन्न दलों और संगठनों के प्रतिनिधियों ने गुजरे 17 सालों में क्या खोया-क्या पाया और भविष्य की चुनौतियों पर मंथन किया।

कार्यक्रम संयोजक किशोर उपाध्याय ने कहा कि नौ नवंबर को उत्तराखंड 18 वें साल में प्रवेश करने जा रहा है। लिहाजा, अब उत्तराखंड उदय के मकसद से सरकार के सामने ठोस एजेंडा रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मंथन से जो भी बातें निकलेगी, उसे सरकार के समक्ष रखा जाएगा।

भाकपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य समर भंडारी ने कहा कि राज्य में स्थिति बद से बदतर हो गई है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क जैसे मूलभूत सवाल उठाते हुए राज्य में सत्तासीन रही दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि राज्य के इन हालात के लिए जितने दोषी कांग्रेस, भाजपा हैं, उतने ही दोषी तीसरे विकल्प की बात कहने वाले भी हैं। उन्होंने क्षेत्रीय दल उक्रांद की भूमिका पर भी सवाल उठाए।

उक्रांद के संरक्षक काशी सिंह ऐरी ने कहा कि उत्तराखंडवासियों ने खुशहाल राज्य का जो सपना देखा था, वह अभी तक आकार नहीं ले पाया है। समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रो.एसएन सचान ने कहा कि पक्ष-विपक्ष और ब्यूरोक्रेसी के गठजोड़ के चलते इस राज्य की दुर्दशा हुई है।

महिला मंच की नेता निर्मला बिष्ट ने कहा कि इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि 17 साल बाद हम यह सोच रहे हैं कि राज्य ने क्या खोया और क्या पाया। उन्होंने जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के साथ ही स्थायी राजधानी का मसला उठाया।

अध्यक्षता करते हुए महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत ने कहा कि जिस प्रकार सभी लोगों ने उत्तराखंड की लड़ाई लड़ी, उसी तरह शहीदों व आंदोलनकारियों के सपनों के अनुरूप राज्य बनाने के लिए फिर से संघर्ष करना होगा। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। 

इस मौके पर पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, बसपा के रमेश कुमार, कुमाऊं विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष गणेश उपाध्याय, सपा नेता महितोष मैठाणी, कांग्रेस नेता शंकर चंद्र रमोला समेत विभिन्न दलों और राज्य आंदोलनकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने विचार रखे। संचालन शांति प्रसाद भट्ट ने किया। अलबत्ता, भाजपा का कोई प्रतिनिधि कार्यक्रम में नजर नहीं आया।

द्वितीय सत्र में कई प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें राज्य के सुदूरवर्ती गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विकास के साथ ही रोजगार के अवसर सृजित करने, पहाड़ की महिलाओं के सिर से बोझ कम करने के लिए उन्हें ध्यान में रखकर योजनाएं बनाने, पर्वतीय क्षेत्रों में औद्येागिक इकाइयां खोलने, पलायन थामने को प्रभावी नीति बनाने, प्राकृतिक संपदा की लूटखसोट और भ्रष्टाचार रोकने के लिए ठोस कदम उठाने, राज्य में छोटी जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने, राज्य को करों में राहत देने, सतत विकास की नीति बनाने, जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैण राजधानी बनाने समेत 33 प्रस्ताव शामिल हैं।

उत्तराखंड विमर्श के बहाने एक तीर से कई निशाने

विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद हाशिये पर खिसकी कांग्रेस में चल रही धड़ेबाजी के बीच खुद का सियासी कद बढ़ाने की जुगत में जुटे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड विमर्श के बहाने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की। 

यह बात अलग है कि भाजपा ने उनके इस कार्यक्रम को तवज्जो नहीं दी, वहीं अपनों ने भी सवाल उठा दिए। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने विमर्श पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किशोर खुद सरकार में रहे हैं, लिहाजा सबसे पहले उन्हें जवाब देना चाहिए कि गुजरे 17 सालों में राज्य ने क्या खोया और क्या पाया।

विस चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं में एक प्रकार से अपनी ढपली, अपना राग की होड़ सी लगी है। इसके लिए वे पार्टी से इतर कार्यक्रम देने में भी पीछे नहीं हैं। फिर चाहे वह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत या फिर दूसरे नेता। अब खुद का सियासी कद बढ़ाने की कोशिश करने वालों की इस कड़ी में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का नाम भी जुड़ गया है। 

किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड के 18 वें साल में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में बुधवार को देहरादून में 'उत्तराखंड विमर्श: क्या खोया-क्या पाया और भविष्य की चुनौतियां' कार्यक्रम आयोजित किया। दावा किया गया कि राज्य से जुड़े इस विषय पर भाजपा समेत सभी दलों और आंदोलनकारी संगठनों को आमंत्रित किया गया, लेकिन भाजपा ने इससे दूरी बनाए रखी। इस कार्यक्रम के जरिये जहां उनकी मंशा भाजपा पर निशाना साधने की तो थी ही, कार्यक्रम में कांग्रेस के खिलाफ भी लोगों का गुस्सा फूटना स्वाभाविक था।

माना जा रहा है कि इसके जरिये वह यह संदेश भी देना चाह रहे थे कि राज्य और राज्यवासियों से जुड़े सवाल पर सियासी झमेला एक तरफ है, इसके लिए तटस्थ होकर सभी को सोचना पड़ेगा, लेकिन शायद यह भूल गए कि राज्य ने जो भी खोया और पाया, उसके लिए कांग्रेस और भाजपा ही जिम्मेदार हैं। 

वजह यह कि अब तक ये दोनों दल ही बारी-बारी सत्तासीन होते रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस की लीक से हटकर दिए गए इस कार्यक्रम को एक प्रकार से उनकी पार्टी ने भी अधिक तवज्जो नहीं दी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. इंदिरा हृदयेश से जब उत्तराखंड विमर्श से संबंधित सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि किशोर का मकसद क्या है, उन्हें नहीं मालूम।

फिर जो व्यक्ति सरकार में रहा हो सबसे पहले उसे ही जवाब देना चाहिए कि राज्य ने क्या खोया और क्या पाया। वहीं, भाजपा ने सधी प्रतिक्रिया व्यक्त की। पार्टी के प्रदेश महामंत्री एवं विधायक खजानदास ने कहा कि कोई राजनीतिक व्यक्ति इस प्रकार का कार्यक्रम करता है तो सबको साथ लेकर पहले चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन किशोर ने ऐसा नहीं किया।

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