...क्यों आया प्याले में तूफान
उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार अगर चुनावी साल में बगावत का शिकार हुई तो इसके एक नहीं, कई कारण रहे। अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की नाराजगी तो उन्हें भारी पड़ी ही, सतपाल महाराज खेमे ने भी मौके का फायदा उठाया।
विकास धूलिया, देहरादून। उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार अगर चुनावी साल में बगावत का शिकार हुई तो इसके एक नहीं, कई कारण रहे। अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की नाराजगी तो उन्हें भारी पड़ी ही, सतपाल महाराज खेमे ने भी मौके का फायदा उठाया। वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जता चुके वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत की ताकत और क्षमता के आकलन में भी मुख्यमंत्री चूक गए।
राजनैतिक अस्थिरता उत्तराखंड के साथ पैदाइशी जुड़ी हुई है और अब हरीश रावत सरकार भी इसी का शिकार हो गई। दरअसल, छोटा राज्य होने के कारण राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं यहां कुछ ज्यादा हैं, जिनकी पूर्ति किसी भी स्थिति में संभव नहीं।
हरीश रावत सरकार को इस स्थिति में पहुंचाने में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की बड़ी भूमिका रही। बहुगुणा पिछली दफा राज्यसभा जाना चाहते थे मगर उन पर देहरादून की पूर्व मेयर मनोरमा डोबरियाल शर्मा को तरजीह दी गई। मनोरमा का कुछ ही समय बाद आकस्मिक निधन हो गया तो भी विजय बहुगुणा नहीं, राज बब्बर को मौका मिला राज्यसभा जाने का। साथ ही विजय बहुगुणा खेमे के विधायकों को तमाम आश्वासनों के बावजूद सरकार में एडजस्ट नहीं किया गया, जिसने आग में घी का काम किया। गत लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज खेमा तो मानों इसी इंतजार में था और बगैर चूके हरीश रावत की घेराबंदी में जुट गया।
वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत लंबे समय से महत्वपूर्ण विभाग चाहते थे और तमाम आश्वासनों के बावजूद उन्हें टहलाया जाता रहा। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वह मन माफिक चुनाव क्षेत्र चाहते थे, मगर उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला। पिछले कुछ महीने से उनके विद्रोही तेवर जाहिर कर रहे थे कि ज्वालामुखी कभी भी आग उगल सकता है।
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