संजीवनी बूटी के सरकारी शोध पर आचार्य बालकृष्ण ने उठाए सवाल
पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आयुर्वेदाचार्य आचार्य बालकृष्ण का कहना है कि संजीवनी बूटी पर काफी काम हो चुका है, अब इसपर प्रयोगशाला में काम करने की जरूरत है।
हरिद्वार, [जेएनएन]: योगगुरु बाबा रामदेव के सहयोगी और पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आयुर्वेदाचार्य आचार्य बालकृष्ण ने संजीवनी बूटी की खोज की सरकारी कसरत पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि संजीवनी बूटी पर अब तक काफी काम हो चुका है, अब इसकी खोज को पहाड़ों की खाक छानने की बजाय प्रयोगशाला में काम करने की जरूरत है।
दैनिक जागरण से हुई बातचीत में आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि पतंजलि योगपीठ में पिछले 10 वर्षों से उनके नेतृत्व में संजीवनी पर शोध किया जा रहा है।
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इसके लिए पतंजलि योगपीठ का दल ने उनके नेतृत्व में चमोली स्थित द्रोणागिरि पर्वत पर गया था। वर्ष 2008 में संजीवनी बूटी की खोज के बाद उस पर लगातार शोध कार्य किया जा रहा है। बताया कि संजीवनी बूटी के 'एक्टिक कंपाउंड' को 'आइसोलेटेड' कर शोध करने पर उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं।
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उन्होंने दावा किया कि अब तक शोध में संजीवनी बूटी के इस्तेमाल से 'डेड ब्रेन सेल्स' को 'री-जनरेट' होने के बेहद उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं, इसके बाद ही इसके पेटेंट के लिए कार्रवाई शुरू की गई और पेटेंट को फाइल करा दिया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार बेवजह संजीवनी बूटी खोज के नाम पर पैसे की बर्बादी कर रही है।
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संजीवनी बूटी की खोज को पहाड़ों पर अभियान चला करोड़ों रुपया खर्च करने की बजाय सरकार को उस पैसों को प्रदेश में अत्याधुनिक प्रयोगशाला बनाने में खर्च करना चाहिए, ताकि प्रदेश की जनता को फायदा मिल सके। उन्होंने बताया कि पतंजलि योगपीठ ने करीब डेढ़ सौ करोड़ खर्च कर अत्याधुनिक शोध केंद्र की स्थापना की है। अब इस केंद्र में विषय विशेषज्ञों की तैनाती की जा रही है।
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