उर्दू भाषा के माध्यम से भी लोगों को मिलेगी योग की शिक्षा
अब उर्दू भाषा से भी लोगों को योग की शिक्षा मिलेगी। पाकिस्तान से आकर धर्मनगरी में रह रहे लक्ष्मण शर्मा ने पतंजलि योगपीठ की योग की दो पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद किया है।
हरिद्वार, [विनोद श्रीवास्तव]: जल्द उर्दू भाषा के माध्यम से भी लोगों को योग की शिक्षा मिलने लगेगी। पाकिस्तान से आकर धर्मनगरी में रह रहे लक्ष्मण शर्मा ने पतंजलि योगपीठ की योग की दो पुस्तकों का उर्दू अनुवाद कर इसकी राह आसान कर दी है।
पाकिस्तान से हरिद्वार में आकर परिवार समेत गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय परिसर में रह रहे लक्ष्मण शर्मा ने पाकिस्तान में रहते हुए उर्दू और पत्रकारिता में परास्नातक किया। पाकिस्तान में उत्पीड़न से त्रस्त होकर वे पहले खुद और बाद में पूरे परिवार समेत लांग टर्म वीजा पर भारत में रह रहे हैं। पतंजलि योगपीठ ने योग को वैश्विक स्तर पर लाने के लिए आचार्य बालकृष्ण की लिखी पुस्तक महर्षि दयानंद ग्राम दिव्य प्रकाशन की पुस्तक 'दैनन्दिन योगाभ्यास क्र' का लक्ष्मण शर्मा से उर्दू अनुवाद कराया।
उर्दू में इस पुस्तक को 'रोजाना योगाभ्यास' नाम दिया जा रहा है। इसके अलावा योगगुरु बाबा रामदेव के कहने पर लक्ष्मण शर्मा ने एक हजार पेज की गीता का भी उर्दू अनुवाद तो पूरा कर दिया है, लेकिन प्रकाशन को लेकर संशय है। लक्ष्मण शर्मा कहते हैं कि गीता के उर्दू अनुवाद का अपना काम तो उन्होंने कर दिया है। आगे उन लोगों की मर्जी। बताया कि इसके अलावा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का भी उर्दू अनुवाद उन्होंने किया है। ज्ञातव्य है कि लक्ष्मण शर्मा गुरुकुल कांगड़ी परिसर में रहकर पतंजलि व गुरुकुल की पुस्तकों के अनुवाद का कार्य कर रहे हैं।
कई भाषाओं में पढ़ने को मिलेगी दिल की गीता
पाकिस्तान के मशहूर लेखक ख्वाजा दिल मोहम्मद की उर्दू किताब दिल की गीता को उर्दू नज्मों के माध्यम से लक्ष्मण शर्मा ने अनुवाद किया है। गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. प्रदीप कुमार जोशी ने दिल की गीता को उर्दू के साथ ही संस्कृत, हिंदी में प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया है। वे खुद इसका संस्कृत और हिंदी में अनुवाद कर रहे है।
डॉ. जोशी ने बताया कि यह पुस्तक लोगों के लिए काफी लाभदायक साबित हुई है। इस पुस्तक में लिखे ज्ञान को लक्ष्मण शर्मा ने उर्दू नज्मों में जिस अलग अंदाज में अनुवाद किया है मेरा मानना है कि इसको हिंदी जुबान के लोग भी पूरे लगन के साथ पढ़ेंगे और सीखेंगे। बताया कि इस किताब के लेखक ख्वाजा दिल मोहम्मद को तत्कालीन अंग्रेजी शासकों ने एक हजार रुपये देकर पुरस्कृत किया था। पढ़ें:-योग गुरु बाबा रामदेव एक साथ दस करोड़ लोगों को कराएंगे योग