चैत्र नवरात्र के पहले दिन हुई मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक वासंतिक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इसके तहत आज से वासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है, जिसका समापन 15 अप्रैल को नवमी के दिन होगा।
हरिद्वार। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक वासंतिक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इसके तहत आज से वासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है, जिसका समापन 15 अप्रैल को नवमी के दिन होगा। नवरात्र के पहले दिन श्रद्धालुओं ने घट स्थापना कर मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की। वहीं, आज से 'नव संवत्सर' का प्रारंभ हो गया है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि में हर तिथि पर माता के एक विशेष रूप का पूजन करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। पहला दिन हिमालय की पुत्री मां शैलपुत्री का होता है। चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। इसलिए इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है। पहले दिन श्रद्धालुओं ने घरों में विधि विधान से घट स्थापना कर मां शैलपुत्री की आराधना की। नवरात्र से पूर्व की हरिद्वार के प्रमुख मंदिर मंसा देवी, चंडी देवी, माया देवी, शीतला माता मंदिर सहित सभी मंदिरों को विशेष रूप से सजाया गया है।
हिन्दू नव संवत्सर का आज प्रारंभ
हरिद्वार। नव संवत्सर के आरम्भकर्ता सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य थे। जिन्होंने इसकी शुरुआत लगभग 2,073 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से की थी। ज्योतिषाचार्य पंडित शक्तिधर शास्त्री ने बताया कि नव संवत्सर का पौराणिक महत्व पुराणों के अनुसार इस तरह है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को 'नव संवत्सर' पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
शकों के अत्याचारी शासन से कराया था मुक्त
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने देश के सम्पूर्ण ऋण को, चाहे वह जिस व्यक्ति का भी रहा हो, स्वयं चुकाकर 'विक्रम संवत' की शुरुआत की थी। सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से 'विक्रम संवत' का आरम्भ हुआ था।
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