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पौधे होंगे छोटे, सेब होगा दोगुना; मुनाफा होगा ज्‍यादा

अब उत्तराखंड में सेब उत्पादन बढ़ेगा। क्‍योंकि इसके लिए उद्यान विभाग अल्ट्रा हाई डेंसिटी फार्मिंग तकनीक का प्रयोग करेगा। इससे पौधे छोटे होंगे और सेब दोगुना होगा।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 02 Nov 2017 09:14 PM (IST)
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पौधे होंगे छोटे, सेब होगा दोगुना; मुनाफा होगा ज्‍यादा
हल्‍द्वानी, [सतेन्द्र डंडरियाल]: उत्तराखंड में सेब उत्पादन बढ़ाने के लिए उद्यान विभाग अल्ट्रा हाई डेंसिटी फार्मिंग तकनीक का प्रयोग करेगा। गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी, देहरादून और कुमाऊं में नैनीताल एवं अल्मोड़ा जिले में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर इस तकनीक को आजमाया जा रहा है। अभी तक बीस नाली (करीब दस बीघे) भूमि में सेब के केवल सौ पेड़ ही लगाए जाते थे, लेकिन अल्ट्रा हाई डेंसिटी (अत्याधिक घनत्व) तकनीक का प्रयोग करके काश्तकार बीस नाली भूमि में 1100 पौधे लगा सकेंगे। चार जिलों में अब तक सौ से ज्यादा किसान इस तकनीक को अपनाने के लिए आवेदन कर चुके हैं।

एक एकड़ भूमि में करीब 12 लाख के इस प्रोजेक्ट के लिए अस्सी प्रतिशत धनराशि उद्यान विभाग और 20 प्रतिशत धनराशि काश्तकार को देनी होगी। बगीचे की सुरक्षा के लिए सोलर फैंसिंग, ओलावृष्टि से बचाव के लिए सुरक्षा, टपक सिंचाई यंत्र भी लगाए जाएंगे। इस तकनीक से काश्तकार सेब की व्यवसायिक प्रजाति के सुपर चीप, रेड चीप, गेल, गाला, स्काटलेट सेब का कम खर्च में अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। 

पौधों की जड़ में किया जाता है बदलाव

राज्य के प्रभारी निदेशक उद्यान डॉ. बीएस नेगी ने बताया कि अल्ट्रा हाई डेंसिटी तकनीक में पौधों के रूट स्टॉक यानि की मूल वृंत जड़ में बदलाव लाकर पेड़ के आकार को छोटा कर दिया जाता है। जिससे पेड़ केवल ढाई से तीन फुट की ऊंचाई तक ही बढ़ता है। सामान्य तौर पर सेब के पेड़ में फल आने में चार से पांच साल का वक्त लगता है, जबकि अल्ट्रा हाई डेंसिटी तकनीक से लगाए गए सेब के पौधों में एक साल बाद ही फूल और फल आने लगते हैं। प्रदेश में पहली बार सेब उत्पादन में इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।

एक पेड़ से मिलेंगे 60 किलो सेब 

नैनीताल जिले के धानाचुली, अल्मोड़ा के ताड़ीखेत और उत्तरकाशी के मोरी ब्लाक एवं देहरादून के चकराता ब्लाक में अल्ट्रा हाई डेंसिटी तकनीक के तहत सेब की खेती होगी। इस तकनीक से लगाए गए सेब के एक पेड़ से तकरीबन 60 किलो सेब उत्पादन का अनुमान है। कम भूमि वाले किसानों को इस तकनीक से लाभ होगा। काश्तकार कम से कम बीस नाली भूमि में 1100 पौधे लगा सकते हैं। 

उद्यान विभाग (उत्तराखंड) के प्रभारी निदेशक डॉ. बीएस नेगी का कहना है कि उत्तराखंड में योजना को चार जिलों में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। काश्तकार भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं। इसलिए भविष्य में इस योजना का दायरा बढ़ाया जा सकता है। 

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