उत्तराखंड में हटा राष्ट्रपति शासन, रावत सरकार बहाल, होगा फ्लोर टेस्ट
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को गलत ठहराते हुए हाई कोर्ट ने इसे हटाने के आदेश दिए और 18 मार्च की स्थिति कायम करते हुए रावत सरकार को भी बहाल कर दिया। कोर्ट ने 29 अप्रैल को फ्लोर टेस्ट कराने को कहा है।
नैनीताल। उत्तराखंड के सियासी संकट पर नैनीताल हाई कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाकर हरीश रावत सरकार को बहाल कर दिया। अदालत ने सरकार को 18 मार्च की सदन की स्थिति के आधार पर 29 अप्रैल तक फ्लोर टेस्ट (सदन में बहुमत साबित करना) करने का आदेश दिया है। अदालत ने इस पूरे घटनाक्रम में केंद्र सरकार के साथ ही कांग्रेस के बागी विधायकों पर तल्ख टिप्पणी की है। कहा कि, एक दल में चुने जाने के बाद दूसरे में जाना संवैधानिक पाप है। राज्य में 35 दिनों से चली आ रही सियासी उथल-पुथल को लेकर आया हाई कोर्ट का फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका और हरीश रावत के लिए राहत वाला माना जा रहा है। हालांकि, केंद्र सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है। इधर, अदालत का फैसला आने के बाद सूबे में सियासी पारा चरम पर पहुंच गया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने-अपने विधायकों को देहरादून बुला लिया है। कांग्रेस खेमे में खासा उत्साह है।
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हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की संयुक्त खंडपीठ ने निवर्तमान सीएम हरीश रावत की राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने व लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार चार दिनों की सुनवाई के बाद दोपहर अपना फैसला सुनाया। खंडपीठ ने अपने फैसले में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को गलत और पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया। कहा कि अनुच्छेद-356 का प्रयोग आपातकाल में किया जाता है। उत्तराखंड में ऐसी स्थिति नहीं थी। वैसे भी राज्यपाल ने 18 मार्च को सदन में विनियोग विधेयक पर पैदा हुई स्थिति के बाद 28 मार्च तक बहुमत साबित करने के लिए निवर्तमान मुख्यमंत्री को कह दिया था।
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फैसले में खंडपीठ ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के आधारों को पर्याप्त नहीं माना। कोर्ट ने स्टिंग प्रकरण, विधायक भीमलाल आर्य को अंबेडकर जयंती समारोह समिति का उपाध्यक्ष बनाना, भाजपा विधायकों का हार्सट्रेडिंग के आरोपों के बावत राष्ट्रपति को ज्ञापन और विनियोग विधेयक गिरने को राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं माना। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि विनियोग विधेयक पारित नहीं हुआ था और 28 मार्च तक राजभवन तक नहीं पहुंचा था तो इसके लिए इंतजार किया जा सकता था। हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से स्पीकर को लेकर की गई जा रही टिप्पणी को गैरजरूरी बताते हुए माना कि राज्यपाल की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में से किसी में भी यह नहीं कहा गया था कि राज्य में संवैधानिक ब्रेक डाउन के हालात पैदा हो गए हैं। 18 मार्च को सदन में विनियोग विधेयक गिरने संबंधी केंद्र की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में अनुच्छेद 356 को अंतिम विकल्प बताते हुए टिप्पणी की कि केंद्र का फैसला संघीय ढांचे और लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
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खंडपीठ ने फैसले में कर्नाटक में एसआर बोम्मई केस को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट करने, विधि आयोग की सिफारिशें, बिहार में रामेश्वर प्रसाद प्रकरण और मद्रास हाई कोर्ट के फैसले समेत अन्य महत्वपूर्ण मामलों पर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी, असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, संविधान विशेषज्ञ हरीश साल्वे, निवर्तमान मुख्यमंत्री के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, अधिवक्ता देवीदत्त कॉमथ की दलीलों का भी सिलसिलेवार जिक्र किया है। खंडपीठ ने स्टिंग मामले में भी तल्ख टिप्पणी की है। कहा कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति कोर्ट की संवेदना व्यक्त नहीं की जा सकती, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हो। कानून के दायरे में ऐसे व्यक्ति का निर्णय होना चाहिए।
हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
- 'भारत संघीय ढांचा है, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को बिना ठोस साक्ष्य के नहीं गिराया जा सकता। अनुच्छेद-356 का उपयोग अंतिम विकल्प होना चाहिए, इसे सामान्यतया प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। एसआर बोम्मई केस में नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने साफ कहा है कि जब तक राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न न हो, राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जाना चाहिए।'
- 'सॉलीसिटर जनरल के 18 मार्च को मनी बिल सदन में गिरने का हवाला देकर राज्य सरकार के इस्तीफे देने की मांग के तर्क पर अदालत ने टिप्पणी की कि यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो इसका उपचार भी फ्लोर टेस्ट ही था। 28 मार्च को बिल गवर्नर के पास पहुंच गया था, तो उसे पास होना ही था।'
- 'उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का मामला ऐसा अकेला है, जिसमें केंद्र का राज्यपाल के साथ ही स्पीकर के अधिकारों पर भी प्रहार है। केंद्र के पास ऐसा कोई मटीरियल नहीं था, जिससे साबित हो कि राज्य में इमरजेंसी के हालात हैं। स्टिंग की सीडी बिना प्रमाणित किए हाथोंहाथ दिल्ली ले जाई गई। यदि 28 को फ्लोर टेस्ट हो जाता तो सीडी का भी कोई मतलब नहीं था। कोर्ट भ्रष्टाचार का कोई समर्थन नहीं करती। उच्च पदों पर आसीन लोगों को कामकाज में शुचिता लानी चाहिए।'
बागी विधायकों के मामले में कोर्ट की टिप्पणी
- 'एक दल में चुने जाने के बाद दल-बदल करना संवैधानिक पाप की श्रेणी में आता है। इसे सही नहीं ठहराया जा सकता।'
बागियों पर फैसला 23 अप्रैल को संभव
कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता के मसले पर हाई कोर्ट की एकल पीठ 23 अप्रैल को सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की अदालत में यह मामला विचाराधीन है। बागी विधायकों में से कुछ ने स्पीकर के सदस्यता रद करने के फैसले को चुनौती दी हुई है। माना जा रहा है कि इस मसले पर 23 को अदालत का फैसला आ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट जाएगी केंद्र सरकार
हाई कोर्ट के फैसले के बाद सकते में आई केंद्र सरकार अब सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है। फैसले के बाद मीडिया से मुखातिब असिस्टेंट सॉलीसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने कहा कि कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन लागू करने की अधिसूचना पर कुछ दिन की रोक लगाने का आग्रह नहीं माना। अटार्नी जनरल को फैसले के बारे में जानकारी दी गई है। जल्द फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी।
कोर्ट का फैसला जनता की जीतः हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि अनंतः सत्य की विजय हुई। हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। कोर्ट का फैसला जनता की जीत है। साथ ही पूरी तरह से साथ निभाने पर पीडीएफ विधायकों का भी उन्होंने आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वह उत्तराखंड की सेवा अंतिम सांस तक करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा की केंद्र सरकार के इस कदम से राज्य को अब तक 700 करोड़ का नुकसान पहुंचा है।
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उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार को पिछली बातों को किनारे कर उत्तराखंड के विकास में मदद करनी चाहिए। हम केंद्र सरकार से झगड़ा नहीं कर सकते, क्योंकि केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली है। केंद्र सरकार लोकतंत्र की भावनाओं के अनुरूप राज्य का सहयोग करे।
देश और प्रदेश की जनता से भाजपा मांगे माफी: इंदिरा
पूर्व मंत्री एवं नेत्री इंदिरा हृदयेश ने कहा कि हाई कोर्ट के निर्णय के बाद भाजपा के केंद्रीय नेताओं को देश और प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोर्ट ने 18 मार्च की स्थिति यथावत रखने को कहा है तो इसका मतलब है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। उन्होंने कोर्ट के फैसले को कानून और न्याय की जीत बताया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश होगा स्वीकार्यः विजय बहुगुणा
कांग्रेस बागी विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश अंतिम आदेश नहीं है। केंद्र सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट जाए। इसकी समीक्षा कर सुप्रीम कोर्ट जो भी आदेश देगा, वह स्वीकार्य है।
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