द ग्रेट खली ने हल्द्वानी में ठुकराई दावत, मजदूरों के साथ खाई मक्के की रोटी
द ग्रेट खली दिलीप सिंह राणा ने बीते रोज हल्द्वानी में बड़े होटल में रखी गई दावत को ठुकरा दिया और मजदूरों के साथ खाना खाया। इससे हर कोई उनका मुरीद हो गया।
हल्द्वानी। द ग्रेट खली। अंतरराष्ट्रीय रेसलर। नाम के मोहताज और न ही शानो-शौकत व धन-दौलत के। मजदूर वर्ग सामने दिखा तो खली उन्हें निहारते-निहारते अतीत में पल भर के लिए खो गए। उनके लंच का इंतजाम शहर के एक नामी होटल में था लेकिन खली ने आयोजकों से बेसख्ता कहा -‘नहीं करेंगे होटल में लंच।’ आज की रोटी मजदूरों संग ही खाएंगे।
गौलापार में बन रहे अंतरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम में पहुंचे खली ने वहां काम कर रहे मजदूरों के साथ खड़े होकर छककर खाया तो अतीत में संघर्ष के दिनों की याद भी ताजा की। खली के हाथ कभी हिमाचल के पहाड़ों में मेहनत-मजदूरी के लिए पत्थर तोड़ते थे, लेकिन उन्हीं हाथों की ताकत और हौसले की बदौलत उन्होंने रेसलिंग की दुनिया के बादशाह होने का ताज भी पहना। फर्श से अर्श तक का मुकाम हासिल करने के बाद आज उनका नाम दुनियाभर में भले ही ग्लैमर से चमक रहा हो, पर उन्होंने दिल की नजरों से अपने अतीत और सादगी को आज तक ओझल नहीं होने दिया है।
फौलादी चट्टान सरीखा शरीर, लेकिन चेहरे पर उतना ही भोलापन। हल्द्वानी में होने वाली प्रो-रेसलिंग के सिलसिले में खली जब हेलीकाप्टर से गौलापार अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में उतरे तो वहां लाल-पीली कैप पहने पत्थर तोड़ते मजदूरों को देख वह एकाएक पुरानी यादों में खो गए। कभी दिन के 15 घंटे तक पत्थरों पर हथौड़ा चलाने वाले खली की नजर जब स्टेडियम में सर्द हवाओं के झोंकों के बीच फटी-पुरानी शर्ट पहनकर ङोलते, धूल फांककर पथरीली जमीन पर नंगे पैर चलते मजदूरों पर पड़ी तो महाबली से रहा नहीं गया और उन्होंने मजदूरों के सम्मान में एक आलीशन होटल में किए गए लजीज खाने का ठुकरा दिया। मेहनतकश मजदूरों के बीच ही खड़े हुए और वहीं भोजन करना पंसद किया। खुद की इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए स्टेडियम में मजदूरों के लिए किए गए सामूहिक भोज में पहुंचे।
खाने के लिए धक्का-मुक्की और भीड़ के बीच खुद ही प्लेट उठाई। एक के बाद एक टेबिल पर पहुंचकर सलाद, पुलाव, पूड़ी, पनीर और छोला परोसा। स्टेटस को हवा में उड़ाकर खली ने मजदूरों के साथ अपना पेट भी भरा। स्टेडियम में लोगों से रू-ब-रू होकर खली ने खासतौर से एक बात कही कि अतीत का सच बोलने से स्टेटस कम नहीं होता। उन्होंने मजदूरी भी ईमानदारी से की।
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