हाईकोर्ट ने कहा, राष्ट्रपति का आदेश राजा का आदेश नहीं
प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू करने व लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ में आज भी तीसरे दिन सुनवाई के दौरान बहस जारी है।
नैनीताल। प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू करने व लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ में तीसरे दिन सुनवाई चली। भाजपा के निलंबित विधायक भीमलाल आर्य के मामले में आज केंद्र कोर्ट में दस्तावेज पेश करेगा। आज दोपहर बाद फैसला आने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की कि राष्ट्रपति राजा नहीं है। उनका आदेश राजा का आदेश नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि पूर्णशक्ति किसी को भी गलत बना सकती है और न्यायपालिका के साथ ही राष्ट्रपति भी गलत हो सकते हैं। उनके फैसले की भी समीक्षा की जा सकती है। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील पर यह टिप्पणी दी। साथ ही यह भी पूछा कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश संबंधी जो दस्तावेज उन्होंने कोर्ट को दिए, क्या इस पर न्यायालय में चर्चा हो सकती है। यह भी पूछा कि क्या उस दस्तावेज का जिक्र आदेश में किया जा सकता है।
इस पर याचिकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि कर्नाटक के एसआर बोम्मई केस में गोपनीय दस्तावेज का जिक्र किया गया है। न्यायालय ने फिर पूछा कि केंद्र की कैबिनेट के उस निर्णय को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा सकता। न्यायालय के इस सवाल पर केंद्र के अधिवक्ता ने कहा कि इस पर चर्चा की जा सकती है।
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इससे पहले केंद्र की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सदन में विनियोग विधेयक गिरने से सरकार अल्पमत में आ गई थी। उन्होंने विधि आयोग की सिफारिश और मद्रास हाईकोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह कैसे कह सकते हो कि मनी बिल गिर गया। यह कैसे प्रमाणित किया जा सकता है।
केंद्र के अधिवक्ता ने जवाब दिया कि मत विभाजन की मांग संवैधानिक है। स्पीकर मांग स्वीकारने को बाध्य हैं। उन्होंने सरकारिया आयोग की सिफारिश का हवाला दिया। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट ने कानून नहीं माना।
कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि राज्यपाल ने रिपोर्ट में नौ बागियों का जिक्र क्यों नहीं किया। सिफारिश में 27 भाजपा विधायकों का ही हवाला क्यों दिया। इस पर केंद्र के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि ये सवाल राष्ट्रपति ने नहीं उठाया। वह चाहते तो सिफारिश को पुनर्विचार को लौटा सकते थे। राष्ट्रपति ने स्क्रूटनी के बाद मानी सिफारिश। इसका मतलब साफ है कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट था।
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इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि राष्ट्रपति राजा नहीं है। उनका आदेश राजा का आदेश नहीं है। न्यायपालिका के साथ राष्ट्रपति भी गलत हो सकते हैं। कैबिनेट ने सिफारिश की, राष्ट्रपति ने मान ली। उनके फैसले ही भी समीक्षा की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने 35 विधायकों का जिक्र क्यों नहीं किया, जबकि आप इसी को आधार बना रहे हैं। राज्यपाल ने नौ बागियों का जिक्र नहीं किया तो केंद्र की कैबिनेट को कैसे पता चला कि मत विभाजन की मांग करने वाले 60 के सदन में 35 विधायक थे।
बागी विधायकों के दिनेश द्ववेदी ने दलील दी कि जब विधायकों ने मत विभाजन की मांग की तो स्पीकर ने क्यों नहीं मानी। स्पीकर को पता था कि सरकार अल्पमत में है।
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हरीश रावत की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि केंद्र की यह दलील गलत है कि विधानसभा निलंबित है, भंग नहीं। उन्होंने कहा कि बोम्मई केस के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार संसद में प्रस्ताव पारित किए बगैर विधानसभा को भंग नहीं कर सकता। इसलिए केंद्र ने ऐसा किया।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति, राज्यपाल या केंद्र तय नहीं कर सकते कि मत विभाजन की मांग मानी जाए या नहीं। यह स्पीकर का अधिकार है। राज्यपाल ने केंद्र को भेजी किसी रिपोर्ट में संवैधानिक संकट का जिक्र नहीं किया है। हाउस में ही बहुमत का फैसला होता है।
कोर्ट ने सिंघवी से सवाल किया कि स्पीकर ने विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग क्यों नहीं मानी, जबकि नियम है कि एक भी सदस्य मांग करता है तो मत विभाजन होना चाहिए। स्पीकर हाथ खड़े करा सकते थे, लेकिन ध्वनि मत से विधेयक पारित कैसे कर दिया। इस पर सिंघवी ने कहा कि स्पीकर और मुख्यमंत्री गलती करते हैं तो नियमानुसार कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन इस आधार पर 356 का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
पूर्व सीएम के स्टिंग पर कोर्ट में सिंघवी ने कहा कि स्टिंग को भी राष्ट्रपति शासन का आधार बताया गया। उन्होंने कहा कि सीडी में हरीश रावत कह रहे हैं मेरे पास इतना पैसा नहीं है और जर्नलिस्ट कह रहे हैं कि बाकी मैं अरेंज कर लूंगा। दूसरी बात पर तत्कालीन सीएम कह रहे हैं कि मैं उन्हें बेहतर विभाग दे दूंगा वो जो करना चाहें कर लें।
हरीश रावत के अधिवक्ता ने कहा कि ये दो ही बातें मुख्य हैं। इसमें हॉर्स ट्रेडिंग साबित कहां से हो जाता है। सीडी पर कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि हरीश रावत ने पांच करोड़ देने की बात कही, क्या से सही था।
गौरतलब है कि बीते रोज भी सुनवाई में एक बार फिर हाईकोर्ट ने पूछा था कि राष्ट्रपति शासन लगाने का पर्याप्त आधार क्या है। साथ ही बहस के दौरान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को गिराने पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की कि कोई भी सरकार भ्रष्टाचार के बिना पांच साल नहीं चल सकती। यदि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार गिराई तो देश में कोई सरकार नहीं बचेगी।
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