भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लिया था लोहा, यह सैनिक आज भी करता सीमा की रक्षा
1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले महावीर चक्र (मरणोपरांत) विजेता राइफल मैन जसवंत सिंह रावत आज भी सीमा की रक्षा करते हैं।
लैंसडौन, [अनुज खंडेलवाल]: शरीर तो मिट जाता है पर जज्बा हमेशा जिंदा रहता है। यह कहावत 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले महावीर चक्र (मरणोपरांत) विजेता राइफल मैन जसवंत सिंह रावत पर सटीक बैठती है। इसीलिए वह आज भी अमर हैं। जिस पोस्ट पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे, भारत सरकार ने उसे जसवंत गढ़ का नाम दिया है।
राइफल मैन जसवंत सिंह को भले ही वीरगति प्राप्त किए 54 वर्ष गुजर चुके है, लेकिन सैनिकों को विश्वास है कि इस रणबांकुरे की आत्मा आज भी देश की रक्षा के लिए सक्रिय है। सेना में मान्यता है कि जसवंत सिंह की शहादत के बाद भी उनकी आत्मा न सिर्फ भारतीय सैनिकों की निगरानी करती है, बल्कि ड्यूटी में सोने वाले सुस्त सैनिकों को चांटा मारकर चौकन्ना भी करती है। राइफल मैन जसवंत सिंह को सेना में 'बाबा जसवंत' के नाम से भी जाना जाता है। इस बहादुर सैनिक की स्मृति में (जिस पोस्ट में जसंवत सिंह शहीद हुए थे) अरुणाचल प्रदेश के नूरानांग में जसवंत गढ़ नाम से एक स्मारक बनाया है जो सभी सैनिकों के लिए धार्मिक स्थल है।
पौड़ी जिले के ग्राम बांडयू में जसवंत सिंह 19 वर्ष की आयु में 19 अगस्त 1960 को सेना में भर्ती हुए। 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध लड़ा। 17 नवंबर 1962 को चौथी बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए तैनात हुई तो चीनियों ने इस दौरान भारी-गोलाबारी शुरू कर दी। राइफल मैन जसवंत सिंह अपने दो साथियों लांस नायक त्रिलोक सिंह व राइफल मैन गोपाल सिंह ने युद्ध में वीरता का शानदार परिचय दिया, लेकिन त्रिलोक सिंह व राइफल जसवंत सिंह गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हो गए।
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युद्ध में तीन अधिकारी, पांच जेसीओ, 148 अन्य पद व सात गैर लड़ाकू सैनिक मारे जाने के कारण चौथी बटालियन की स्थिति कमजोर होने के बावजूद वीर सैनिकों ने दुश्मन को सफल नहीं होने दिया। युद्ध में पांच एलएमजी (लाइट मशीन गन) पोस्टों से अलग-अलग पोजिशन राइफल मैन जसवंत सिंह ने अकेले ही संभाली। जसवंत सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट में दौड़-दौड़ कर गोली बारी करते रहे, ताकि दुश्मनों को यह एहसास होता रहे कि सभी पोस्टों में सैनिक मौजूद हैं। इस युद्ध में जसवंत सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए हों, लेकिन इस समय भी जसवंत सिंह की आत्मा देश रक्षा के लिए सक्रिय है।
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चीनी भी हुए नतमस्तक
1962 के युद्ध में शहीद जसवंत सिंह ने जिस तरह युद्ध में अदम्य साहस व वीरता का परिचय दिया, उसे देख चीनी सैनिक भी भौचक्के रह गए। उन्होंने राइफल मैन जसवंत सिंह के पार्थिव शरीर को सलामी देकर उसके इस जज्बे को सलाम किया।
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शहीद को भूल गई राज्य सरकार
भारत-चीन के युद्ध में अकेले दुश्मनों से लोहा लेने वाले महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह के गांव की राज्य सरकार ने आज तक सुध लेने की जहमत नहीं उठाई। जसवंत सिंह के नाम पर सरकार ने उनके गांव में कोई ऐसी योजना शुरू नहीं की है।