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इन ग्रामीणों के जज्बे को सलाम, जब तंत्र ने नहीं सुनी तो खुद तैयार कर दिया पुल

पौड़ी जनपद के पोखड़ा प्रखंड की किमगडीगाड पट्टी के सलाण गांव में ग्रामीणों की जब तंत्र ने नहीं सुनी तो उन्होंने खुद ही गदेरे (बरसाती नाले) पर पुल तैयार कर लिया।

By BhanuEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2016 07:00 AM (IST)
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कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: पौड़ी जनपद के पोखड़ा प्रखंड की किमगडीगाड पट्टी के सलाण गांव में एक दशक पूर्व सड़क तो बन गई, लेकिन गांव से 300 मीटर पहले सलाण गदेरे (बरसाती नाला) पर पुल आज तक नहीं बन पाया। नतीजा, बरसात शुरू होते ही यह गांव 'कालापानी' में तब्दील हो जाता है।

इस वर्ष ग्रामीणों ने ठान ली थी कि 'तंत्र' उनकी सुने न सुने, वे खुद इस गदेरे को बांध लेंगे। और...इसी भरोसे की परिणति है चीड़ के बड़े पेड़ों के तनों से सलाण गदेरे पर बना अस्थायी पुल। अब ग्रामीण इसी पुल के जरिए अपने दैनिक कार्यों का निष्पादन कर रहे हैं।

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पौड़ी जिले के इस दूरस्थ गांव को जोड़ने के लिए लोक निर्माण विभाग पौड़ी खंड ने वर्ष 2005-06 में गवाणी-पालीधार मोटर मार्ग से करीब एक किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया था। गांव से करीब 300 मीटर पहले पड़ने वाले बरसाती सलाण गदेरे पर पुल बनाने की जहमत नहीं उठाई गई।

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पुल के लिए ग्रामीणों के चौखट-चौखट दस्तक देने के बावजूद कहीं से समस्या का समाधान नहीं हुआ। नतीजा, हर बरसात सलाण गांव का शेष दुनिया से संपर्क पूरी तरह कट जाता है। ऐसे में पांचवीं कक्षा से ऊपर के नौनिहाल भी बरसातभर घर में ही पड़े रहते हैं।

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इन दिनों भी सलाण गदेरा उफान पर है। इस बार हमेशा की तरह लोग घरों में कैद नहीं हैं। ऐसा संभव हो पाया ग्रामीणों के संकल्प से।
असल में बरसात शुरू होने से पूर्व ही ग्रामीण ठान चुके थे कि इस बार वह सलाण गदेरे पर खुद पुल बनाकर रहेंगे। इसके लिए उन्होंने चीड़ के बड़े पेड़ों को तराशकर गदेरे पर डाला और तैयार कर लिया जीवन को चलाने के लिए एक अस्थायी पुल। जो गदेरे के उफान पर होने के बावजूद उनके जीवन को गति दे रहा है।

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सलाण की प्रधान विमला देवी के मुताबिक गदेरे पर पुल न होने के कारण बरसात में गांव का शेष दुनिया से संपर्क टूट जाता था। बावजूद इसके न तो विभाग उनकी सुध ले रहा था, न जनप्रतिनिधि ही सुनने को तैयार थे। ग्रामीणों ने अपने प्रयासों से अस्थायी पुल का निर्माण किया है।
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