Move to Jagran APP

नहीं रहे प्रसिद्ध साहित्यकार शेर सिंह पांगती, जानिए उनकी कलम का सुनहरा सफर

उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार और साहित्यकार शेर सिंह पांगती दुनिया को अलविदा कह गए हैं। 81वर्षीय पांगती ने आखिरी सांस अपने देहरादून स्थित आवास पर ली।

By raksha.panthariEdited By: Updated: Tue, 24 Oct 2017 09:02 PM (IST)
Hero Image
नहीं रहे प्रसिद्ध साहित्यकार शेर सिंह पांगती, जानिए उनकी कलम का सुनहरा सफर

पिथौरागढ़, [जेएनएन]: उत्तराखंड के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. शेर सिंह पांगती अब हमारे बीच नहीं रहे। रह गर्इ हैं तो सिर्फ उनकी यादें और उनके लिखे हुए वह शब्द जिन्होंने उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखने में अहम भूमिका निभार्इ। शेर सिंह पांगती ने उत्तराखंड की सबसे बड़ी पीड़ा पलायन को देखते हुए लेखन के क्षेत्र में कदम रखा था।   

प्रसिद्ध इतिहासकार और साहित्यकार शेर सिंह पांगती ने अपनी आखिरी सांस देहरादून स्थित अपने आवास पर ली। 81 वर्षीय पांगती के निधन के साथ ही उत्तराखंड से एक और ऐसी शख्सियत अलविदा कह गर्इ, जिनके कलम की आवाज दूर-दूर तक पहुंची है। एक दशक पहले साल 1995 में सेवा निवृत्त शिक्षक और इतिहासकार डॉ. शेर सिंह पांगती का जन्म एक फरवरी 1937 को मुन्स्यारी तहसील के भैंसखाल में हुआ था। एमए इतिहास से करने के बाद उन्होंने शिक्षण कार्य किया। उन्होंने जोहार घाटी और भोटिया जनजाति पर पीएचडी की।

भोटिया जनजाति की संस्कृति को सहेजा

शेर सिंह पांगती ने साल 2000 में अपने नानासेम के शान्तिकुंज स्थित घर पर ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम की स्थापना की। जो पूरी तरह से निजी संस्कृतिक का म्यूजियम है। इस म्यूजियम में उन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल के उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाली भोटिया जनजाति की संस्कृति, परम्पराएं और रहन-सहन पर आधारित इतिहास, यंत्र, बर्तन, हस्तशिल्प, पहनावे, खाद्यान्न को सहेजकर रखा। 

डॉ. पांगती ने सेवानिवृत्ति के पश्चात न्यूजीलैंड सहित कई देशों का दौरा किया और जोहार घाटी एवं पहाड़ के पलायन को देखते हुए लेखन के क्षेत्र में उतर आए। जिसके बाद उन्होंने कर्इ किताबें भी लिखीं। इस बीच डॉ. पांगती के निर्देशन में देहरादून में पहाड़ी होली गायन पर एलबम शूट किया गया। 

शेर सिंह के शब्दों से थम रहा था पलायन

शेर सिंह पांगती का मानना था कि जो जड़ों से कट जाता है, उसको आने वाला कल और समाज भी भुला देता है और जो जड़ों को नहीं छोड़ता उसे सदियों तक लोग याद रखते हैं। कलम के धनी मुनस्यारी के डॉ. शेर सिंह पांगती ने देश की चीन सीमा से लगे क्षेत्र से पलायन करने वाले लोगों को यह संदेश ही नहीं दिया, बल्कि उन्हें उनकी संस्कृति से भी परिचित कराया। लोगों को उनकी बात समझ में आ गई और धीरे-धीरे पलायन पर विराम लगने लगा। 

भारत-तिब्बत व्यापार बंद होने पर ठानी 

पलायन के इस दंश को खत्म करने की सोच पांगती के मन में भारत-तिब्बत व्यापार बंद होने से आर्इ थी। दरअसल, साल 1962 में भारत-तिब्बत व्यापार चीन युद्ध से बंद हो गया। इससे चीन सीमा से लगे क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ गई। रोजगार के अभाव में सीमा से लगे गांवों के लोग पलायन करने लगे। यह देखकर शिक्षक डॉ. शेर सिंह पांगती का मन विचलित होने लगा। सीमा के इस तरह खाली होने से मन ही मन में डॉ. पांगती ने यह ठान लिया कि वह पलायन को अपने तरीके से रोकेंगे। 

सीमा से ना हो पलायन, इसलिए थामी कलम 

पांगती नहीं चाहते थे कि किसी भी सूरत में सीमा खाली हो, इसलिए उन्होंने लोगों को अपनी संस्कृति, पूर्वजों के त्याग, बलिदान को याद दिलाने के लिए कलम का साथ लिया। इसके बाद उन्होंने सीमा में रहने वाले लोगों के जीवन से नई पीढ़ी को अवगत कराने और  इसके महत्व को समझने के लिए पुराने बर्तनों से लेकर पारंपरिक वस्तुओं को एकत्रित कर संग्रहालय बनाया। साथ ही सीमा पर रहने वाले बड़े-बुर्जुगों से मिलकर क्षेत्र की किंवदंतियों, किस्सों को कहानी के रूप में प्रकाशित कर लोगों तक पहुंचाया। अपने खान, पान, वेशभूषा, बोली और भाषा से अवगत कराने के लिए सीमांत के पुराने जीवन को उकेर कर नई पीढ़ी तक पहुंचाया।

इसके साथ ही पांगती ने नई पीढ़ी को उनके पूर्वजों की जीवन शैली से अवगत कराने के लिए गांव-गांव घूमकर पुराने बर्तनों के साथ ही मकानों की खोली, द्योली एकत्रित कर मुनस्यारी में संग्रहालय का निर्माण किया। यह संग्रहालय आज पर्यटन विकास में तो मददगार साबित हो ही रहा है, साथ ही क्षेत्र से पलायन कर चुके परिवारों के लोग इससे प्रेरित होकर अपने गांवों को भी लौटने लगे हैं। 

संस्कृति, सभ्यता को समझने के लिए लिखीं 18 पुस्तकें

शेर सिंह पांगती संस्कृति, सभ्यता को समझने के लिए अब तक 18 पुस्तकें लिख चुके हैं। अभी भी उनका लेखन थमा नहीं था। वहीं मुनस्यारी के बाद अब दूर के गांवों में भी संग्रहालय स्थापित कर सीमा के मूल बाशिंदों को अपने मूल स्थान की तरफ आकर्षित करने की कोशिश चल रही है। 

यह भी पढ़ें: दुनिया को अलविदा कह गए राज्य आंदोलनकारी वेद उनियाल

यह भी पढ़ें: रुड़की में 92 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी डा. सिन्हा का निधन

यह भी पढ़ें: आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुआ दून का लाल, नम आंखों से दी अंतिम विदाई

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।