केदारनाथ धाम में धूमधाम से मनाया अन्नकूट मेला
रुद्रप्रयाग में विश्व प्रसिद्ध धाम केदारनाथ में रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व मध्य रात्रि को लगने वाला अन्नकूट मेला धूमधाम से मनाया।
By sunil negiEdited By: Updated: Thu, 18 Aug 2016 07:37 PM (IST)
रुद्रप्रयाग, [जेएनएन]: विश्व प्रसिद्ध धाम केदारनाथ में रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व मध्य रात्रि को लगने वाला अन्नकूट मेला धूमधाम से मनाया। मुख्य पुजारी शिवशंकर लिंग ने केदारनाथ में स्थित स्वयंभू लिंग पर लगाए नए अनाज का भोग एवं श्रृंगार के भक्तों ने देर रात्रि को दर्शन कर आशीर्वाद लिया। वहीं विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में भी यही परंपरा अपनाई जाती है।
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी रक्षाबंधन से एक दिन पहले केदारनाथ मंदिर में अन्नकूट मेला (भतूज) धूमधाम से मनाया। बुधवार मध्य रात्रि से शुरू हुए मेले में सर्वप्रथम मुख्य पुजारी ने भगवान शिव के स्वयंभू लिंग की विशेष पूजा-अर्चना की।
पढ़ें- अनोखी परंपराः यहां बहनों की रक्षा का भाई और पेड़ों के संरक्षण का महिलाएं लेती हैं संकल्प इसके बाद नए अनाज झंगोरा, चावल, कौंणी आदि अनाजों का लेप लगाकर शिव लिंग का श्रृंगार किया। भगवान के श्रृंगार का यह दृश्य अलौकिक होता है। लगभग एक बजे रात्रि को बाबा के कपाट आम दर्शन के लिए खोल दिए गए, सुबह चार बजे तक भक्तों ने इसके श्रृंगार के दर्शन किए।
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मान्यता है कि नए अनाज में पाए जाने वाले विष को भोले बाबा स्वयं ग्रहण करते हैं। इस त्योहार को लेकर बदरी-केदार मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर को सजाया हुआ था। सुबह चार बजे बाद भगवान को लगाया गए नए अनाज के भोग को शिवलिंग से हटाकर साफ स्थान पर विसर्जित किया। मंदिर की साफ सफाई होने के बाद ही भगवान की नित्य पूजा-अर्चना शुरू हुई। वहीं, विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, लमगौंडी के घुणेश्वर महादेव एवं कोलेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भी अन्नकूट मेले में यही परंपरा अपनाई गई।पढ़ें:-देवीधूरा में सात मिनट तक चला पत्थरों का युद्ध, चार दर्जन योद्धा और दर्शक घायल
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मान्यता है कि नए अनाज में पाए जाने वाले विष को भोले बाबा स्वयं ग्रहण करते हैं। इस त्योहार को लेकर बदरी-केदार मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर को सजाया हुआ था। सुबह चार बजे बाद भगवान को लगाया गए नए अनाज के भोग को शिवलिंग से हटाकर साफ स्थान पर विसर्जित किया। मंदिर की साफ सफाई होने के बाद ही भगवान की नित्य पूजा-अर्चना शुरू हुई। वहीं, विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, लमगौंडी के घुणेश्वर महादेव एवं कोलेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भी अन्नकूट मेले में यही परंपरा अपनाई गई।पढ़ें:-देवीधूरा में सात मिनट तक चला पत्थरों का युद्ध, चार दर्जन योद्धा और दर्शक घायल