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टिहरी झील के भीतर शान से इतरा रहा टिहरी रियासत के वैभव का प्रतीक रहा घंटाघर

राजशाही के दौर में टिहरी रियासत के वैभव का प्रतीक रहा घंटाघर टिहरी झील में डूबने के 11 साल बाद भी शान से खड़ा है।

By sunil negiEdited By: Updated: Mon, 30 May 2016 02:50 PM (IST)
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अनुराग उनियाल, [नई टिहरी] : राजशाही के दौर में टिहरी रियासत के वैभव का प्रतीक रहा घंटाघर टिहरी झील में डूबने के 11 साल बाद भी शान से खड़ा है। पिछले महीने टिहरी झील के हाइड्रो ग्राफी सर्वे में सामने आया कि झील के अंदर 110 फीट ऊंचा घंटाघर आज भी बिल्कुल सुरक्षित है और उसी गौरव के साथ खड़ा है।
अप्रैल में जिला प्रशासन ने टिहरी झील में नौकायन और साहसिक गतिविधियों के दौरान सुरक्षा प्रबंध करने के लिए टिहरी झील का सिंगल बीम से हाइड्रोग्राफी सर्वे कराया था। सर्वे का मकसद था कि टिहरी झील के अंदर डेंजर जोन का चिह्नीकरण करना, ताकि नौकायन समेत अन्य गतिविधियों के लिए खतरा पैदा न हो।

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अब हाइड्रो ग्राफी सर्वे की रिपोर्ट प्रशासन के पास आ गई है। रिपोर्ट में बताया गया है झील में समाया घंटाघर, राजमहल और रौलाकोट की बड़ी चट्टान खतरा बन सकती है। वहीं कई बड़े पेड़ भी अभी तक खड़े हैं। खास बात ये है कि 2006 में झील में डूबने के बाद राजमहल का कुछ हिस्सा तो खराब हो गया है, लेकिन घंटाघर अभी भी सुरक्षित खड़ा है।

टिहरी में घंटाघर का निर्माण वर्ष 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने कराया था। लंदन में बने एक घंटाघर के डिजायन पर 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को तैयार किया गया था। इसे बनने में तीन साल का समय लगा था। इतिहासकार महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि घंटाघर को उड़द की दाल के लेप से बनाया गया था। इसी वजह से आज तक घंटाघर पानी में रहने के बाद भी सुरक्षित है। वह कहते हैं कि सरकार को उसके संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए।

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'हाइड्रोग्राफी सर्वे में सामने आया है कि घंटाघर अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है। इस बारे में अब आगे की प्रक्रिया की शुरुआत की जाएगी। '
-सोबत सिंह राणा, अपर कार्यकारी अधिकारी, टिहरी झील विकास प्राधिकरण

गढ़कवि श्रीयाल ने लिखी थी कविता
टिहरी के घंटाघर पर प्रसिद्ध गढ़कवि जीवानंद श्रीयाल ने कविता भी लिखी थी। उस कविता में श्रीयाल ने घंटाघर के बनने से लेकर उसके आकार की पूरी जानकारी दी थी। कविता में लंदन की महारानी विक्टोरिया का जिक्र भी हुआ है। विक्टोरिया के सिंहासन पर बैठने के 50 साल पूरे होने पर ही महाराज कीर्तिशाह ने घंटाघर का निर्माण कराया था।

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